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‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ नीति के कारण हमारी विश्व में प्रतिष्ठा थी : कृष्ण गोपाल

‘‘यशस्वी भारत’’ का लोकार्पण

नई दिल्ली- अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत के प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित भाषणों के संकलन ‘यशस्वी भारत’ का लोकार्पण जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी के करकमलों से संघ के सह- सरकार्यवाह डाॅ. कृष्ण गोपाल की गरिमामय उपस्थिति में भारत के पूर्व नियंत्रक व महालेखापरीक्षक श्री राजीव महर्षि के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुआ।

1960 के बाद विश्व के सबसे विशाल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के किसी सरसंघचालक के भाषणों का यह पहला संकलन है। इससे पूर्व तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ‘श्रीगुरूजी’के भाषणों का संकलन प्रकाशित हुआ था। ‘यशस्वी भारत’ की प्रस्तावना संघ के पूर्व अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, प्रखर चिन्तक-विचारक, कई पुस्तकों के रचयिता, माधव गोविन्द वैद्य ने लिखी है।

इस अवसर पर संघ के सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने इस बात को रेखांकित किया कि हमें सम्पन्न, सामथ्र्यवान, शक्तिशाली तो बनना है लेकिन इससे आगे भारत को यशस्वी बनना है। उन्होंने कहा कि यश तब आता है जब कोई परमार्थ करता है।

प्राचीन भारत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम 18वीं शताब्दी तक दुनिया की आर्थिक महाशक्ति थे, शक्तिशाली भी थे लेकिन हमारी प्रतिष्ठा सर्वे भवन्तु सुखिनः की हमारी नीति और सभी को ईश्वर का अंश मानने के हमारे भाव के कारण थी। साथ ही उन्होंने मिश्र, बेबीलोन, स्पार्टा आदि देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि बर्बर, हिंसक और क्रूर सभ्यताएँ सौम्य सभ्यताओं का नाश कर देती हैं।

भारत के विषय में उन्होंने कहा कि हमने कोई हजार वर्षों तक ऐसे आक्रमणों से स्वयं को भी बचाया और धर्म की भी रक्षा की। उन्होंने कहा कि मोहन भागवतजी के सभी उद्बोधनों का मूल स्वर यही है कि कैसे हम सब भारतीय जाति-धर्म- भाषा के भेद मिटाकर भारत की यशस्विता और सर्वांगीण समेंकित विकास में सहभागी बन सकें।

हम अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करें जब भारत ‘विश्वगुरू’ था और एक नायक की भाँति विश्व का नेतृत्व करता था। अब भारत पुनः अंगड़ाई ले रहा है और अपनी खोई अस्मिता व प्रतिष्ठा अर्जित करने के पथ पर अग्रसर है।

जूनापीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी ने कहा कि स्थितियाँ बदल रहीं है। जाति की जकड़, स्त्रियों की स्थिति, समाज के चिन्तन में बदलाव आया है। सन्यास परंपरा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अब तथाकथित छोटी जातियों से भी सन्यासी बन रहे हैं और किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है।

उन्होंने कहा कि हिन्दू दूसरों का धर्म परिवर्तन नहीं कराते लेकिन कोरोना काल में दुनिया में जितने लोगों ने योग, आयुर्वेद और दूसरी भारतीय पद्धतियाँ अपनाईं, उससे भारतीय  विचार का पूरे विश्व में व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ है। उन्होंने कहा कि मोहन भागवतजी के चिन्तनपरक उद्बोधनों में भारत के स्वर्णिम भविष्य के निर्माण का मार्ग है।

विशिष्ट अतिथि राजीव महर्षि ने भी कहा कि संघ और सरसंघचालक मोहन भागवत के चिन्तन में सदैव ‘राष्ट्र’ रहता है और इसलिए इस वैश्विक संगठन की स्वीकार्यता समाज में निरंतर बढ़ रही है। पुस्तक में सरसंघचालक मोहन भागवत के अलग-अलग अवसरों पर दिए 17 भाषणों का संकलन है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित 286 पृष्ठों की इस पुस्तक का संपादन लोक सभा टीवी के संपादक श्याम किशोर ने किया है।