Trending Now

सबल समाज के पक्षघर: डॉ. अम्बेडकर….

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलित वर्ग को सम्मान के साथ जीवन जीने के मार्ग दिखाया। डॉ. अम्बेडकर के विचारों को सही ढंग से तभी समझा जा सकता है, जब लोग अपने सीमित वैचारिक दायरे से बाहर आकर सोचे-समझें। वे ऐसे सुलझे हुये महामानवों में से एक थे,
जिनके प्रयासों से आज देश में एकता और अखंडता अक्षुण्ण रही है। उन्हें अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं का इतना गहरा ज्ञान था कि उन्होंने अनुसूचित वर्ग के लोगों को एकता के सूत्र में बांधे रखने के सदैव अथक प्रयास किये। जबकि समाज में कतिपय संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों ने समाज को बांटने का निन्दनीय कृत्य किया।

उनके कारण ऐसे लोग अपने प्रयासों में कामयाब नहीं हो सके क्योंकि अनुसूचित वर्गों ने बाबा साहब के आदर्शों का अनुसरण किया, उनकी उपेक्षा नहीं की। इस कारण डॉ. अम्बेडकर भारतीय समाज में आदरणीय रहे हैं। वे जीवन पर्यन्त केवल दलितों के साथ ही नहीं, बल्कि देश के पूरे वंचित समाज के साथ खड़े थे।
आज के आर्थिक उदारीकरण के दौर में उनका दर्शन और अधिक प्रासंगिक हो गया है। बाबा साहब ने अपने विचारों के माध्यम से यह ठोस व्यवस्था दी कि देश में कोई भी व्यक्ति किसी का हिस्सा न हड़पे, इसके लिये समाज को सजग और सशक्त बनाये जाने के आवश्यकता है। वही कार्य बाबा साहब ने किया भी।
डॉ. अम्बेडकर के आदर्शों को ठीक ढंग से समझे बिना दलितों के उत्थान की बात करना अधूरी रहेगी। डॉ. अम्बेडकर एक युग पुरूष थे। उन्होंने दलित समाज को कुंठाओं और कुरीतियों से मुक्ति दिलाकर स्वाभिमान का जीवन जीने का रास्ता दिखाया। उन्होंने भारतीय समाज से ऊँच-नीच के भाव को समाप्त करने का एक महाअभियान प्रारम्भ किया।
डॉ. अम्बेडकर हिन्दू दर्शन की श्रेष्ठता को स्वीकार करते थे और इस बात से आश्चर्यचकित भी थे कि इस श्रेष्ठता के बावजूद अस्पृश्यता का कलंक कैसे प्रवेश कर पाया? जो दर्शन प्राणि मात्र में ईश्वर का अंश देखता हो, वहां अपने बंधुओं में यह अस्पृश्यता का भव कैसे और कहां से प्रवेश पा गया। इस प्रश्न ने उन्हें बार-बार उद्वेलित किया।
डॉ. अम्बेडकर को स्पष्ट मानना था कि प्रत्येक हिन्दू वैदिक रीति से यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार रखता है। इसके लिये उनके द्वारा मुम्बई में ‘समाज समता संघ’ नाम संगठन की स्थापना की गयी। उन्होंने इस संगठन के माध्यम से अछूतों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष करने की प्रेरणा दी।
इसी सिलसिले में सन् 1928 में लगभग 500 महार जाति के लोगों को जनेऊ धारण करवा कर एक बड़ा अभियान चलाया। डॉ. अम्बेडकर का यह स्पष्ट मानना था कि ‘हम हिन्दू हैं। हिन्दू धर्म की परम्पराओं पर चलने का हमारा पूरा अधिकार है।’
डॉ. अम्बेडकर ने अपने एक ब्राह्मण मित्र व निकटस्थ सहयोगी श्री देवराज नाईक की उपस्थिति में रत्नागिरी जिले में ‘दलित जाति परिषद’ के अधिवेशन में चिपलूण नामक स्थान पर वेदमंत्रों की ध्वनि के मध्य बीस हजार अछूत माने जाने वाले वर्ग के लोगों को यज्ञोपवीत धारण करवाया था।
इस अधिवेशन की अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने स्वयं की थी। वे अस्पृश्य बस्तियों में व्यापक गंदगी अशिक्षा, कुरीतियों तथा शराब को भी दलितों के अस्पृश्य होने का कारण मानते थे। डॉ. अम्बेडकर ने मालावार में लगातार 5 महीने तक सेवा कार्य करते हुये बस्तियों ने आश्चर्य परिवर्तन लाकर दिखाया भी।

डॉ० भीमराव अम्बेडकर का शैक्षिक दृष्टिकोण – 14 अप्रैल जन्मदिवस विशेष

14 अप्रैल 1819 में मध्यप्रदेश-इन्दौर के महू नामक कस्बे में जन्में बालक भीमराव को गरीबी, उपेक्षा और अभाव का प्रारम्भ से ही सामना करना पड़ा था। महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले स्थित अम्बावाड़े गांव का यह परिवार मूल निवासी होने के कारण आम्बेडकर कहलाया। पांच वर्ष की आयु में ही माता का साया सिर से छिन गया। स्कूल में उसे अलग बैठना पड़ता था।
प्यास लगने पर स्वयं पानी पीने उसे मना था। बालपन में तो यह नही समझ पाया कि उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों होता है? कुछ बड़ा होने पर अनुभव हुआ कि महार जाति में जन्म लेने के कारण उसके साथ ऐसा भेदभाव किया जाता है। डॉ. अम्बेडकर ने सभी प्रकार के अन्यायों के खिलाफ जीवन भर संघर्ष किया और समता पर आधारित शान्ति की खोज में निर्वाण को प्राप्त हुये।
महान नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी का मानना था कि ये समाज सुधारक ही नहीं, सामाजिक क्रान्ति के संघर्षशील अग्रदूत थे। उनकी गणना स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, महात्मागांधी, डॉ. अम्बेडकर जैसे युग प्रर्वतक राष्ट्र पुरूषों के रूप में की जायेगी। भारतीय संविधान के निर्माण में डॉ. अम्बेडकर ने किस प्रकारअकेले संविधान की रचना का दायित्व निभाया,
इसका संविधान परिषद की कार्यवाही में स्पष्ट उल्लेख मिलता है।संविधान परिषद के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भी संविधान के निर्माण में डॉ. आम्बेडकर के योगदान के लिये उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। समरसता की तो वे सजीव मूर्ति थे। उनके सामाजिक समरसता के कार्य एवं विचार हमें सदैव राष्ट्रीय नवनिर्माण की प्रेरणा देते रहेंगे।
बाबा साहब के साहित्य के साथ भी पूरी तरह न्याय नहीं हुआ। उनकी 600 पृष्ठ, 13 अध्याय की पुस्तक ‘‘थाट्स ऑन पाकिस्तान’’ को दबा दिया गया। केवल महाराष्ट्र सरकार ने बहुत बाद में उसे स्थान दिया। बाबा साहब स्वयं इस पुस्तक को अति महत्वपूर्ण मानते थे। वे स्वयं इसे ‘साम्प्रदायिक राजनीति का ज्ञानकोष’ कहा करते थे।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि इस पुस्तक के लिखने में उनकी सारी ऊर्जा समाप्त हो गयी। इस पुस्तक में बाबा साहब ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता के तुष्टीकरण का प्रबल का विरोध किया है।आखिर क्या है इस पुस्तक में जिससे आज के अम्बेडकरवादी दूर भाग रहे हैं। इस पुस्तक में भारत विभाजन की मानसिकता तथा मुसलमानों के साम्प्रदायिक उन्माद के सत्य का विश्लेषण किया है।
इस पुस्तक में बाबा साहब ने भारतीय इतिहास में मुस्लिम आक्रामकता और अत्याचारों का निर्भीकता से वर्णन किया है। उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि पूरा इतिहास मुस्लिम हमलावरों के कुकर्मो से भरा पड़ा है, जिसमें बलात् धर्मपरिवर्तन सामूहित नरसंहार, हजारों मंदिरों का विनाश और मस्जिदों का निर्माण, जजिया, लूट को भूल पाना कठिन  होगा।’’
अध्याय 5 में उन्होंने लिखा है ’’यथार्थवादी व्यक्ति को यह बात समझ लेनी चाहिये कि मुसलमान हिन्दुओं को काफिर  समझते हैं, जो बचाये जाने से अधिक मार डालने लायक है।’’
अध्याय 7 में उन्होंने लिखा है ‘‘हिन्दू मुस्लिम एकता के लिये गांधीजीको कुछ हिन्दुओं के बलिदान में भी परेशानी नहीं थी। मुसलमान हिन्दुओं के प्रति बड़े अपराधों के दोषी थे, तब भी गांधी ने मुसलमानों को दोषी नही ठहराया। प्रतिष्ठित मुसलमानों ने, कांग्रेसी मुस्लिम नेताओं ने इन अपराधों की निन्दा नहीं की।
’’बाबा साहब की एक मात्र प्रमाणिक जीवनी के लेखक धनंजय कीर ने डॉ. अम्बेडकर की तुलना वीर सावरकर से की है। अध्याय 12 में श्रीमति एनी बेसेन्ट, लाला लाजपत राय, रवीन्द्रनाथ टैगोर के विचारों को उद्धृत कर लिखा है कि मुसलमानों की प्राथमिक निष्ठा अपनी मातृभूमि में नहीं इस्लामी देशों में है। डॉ. अम्बेडकर पहले भारतीय थे
जिन्हें किसी विदेशी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की डिग्री प्राप्त हुयी। वे कानून के श्रेष्ठतम ज्ञाता थे। वे क्रान्तिकारी तो थे ही, वे श्रेष्ठ प्रशासक और श्रेष्ठ दार्शनिक भी थे। उनका व्यक्तित्व सागर जैसा गहरा, पर्वत जैसा ऊँचा एवं आकाश जैसा व्यापक था। 6 दिसम्बर 1956 को उनका देहावसान हो गया।
समग्र रूप से बाबा साहब अम्बेडकर की भूमिका भारतीय संस्कृति व हमारे राष्ट्रीय इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। वे अपने समय की महान विभूति थे, लेकिन उनके विचारों का उचित प्रचार-प्रसार नहीं हुआ बल्कि उनके विचारों को गलत तरीके से पेश कर निन्दा तक की गयी।
Ambedkar converts to budhism after studying Islam, Christianity, Sikh religionउनके द्वारा किये गये सामाजिक समरसता के कार्य एवं विचार हमें सदैव नवनिर्माण की प्रेरणा देते रहेंगे। डॉ. अम्बेडकर को लेकर प्रख्यात पत्रकार एवं लेखक श्री रामशंकर अग्निहोत्री ने एक उपन्यास ‘‘नया मसीहा’’ लिखा है। इस उपन्यास की प्रस्तावना पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने लिखी है। श्री वाजपेयी द्वारा लिखित प्रस्तावना आज भी प्रासंगिक है।
वरिष्ठ लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
संपर्क सूत्र:- 94247 44170