राम मंदिर के लिये मिले 20 पुरातात्विक प्रमाण – डॉ. मुहम्मद
– एएसआई के पूर्व निदेशक का ‘राष्ट्रीय अस्मिता में पुरातत्व की भूमिका’ पर व्याख्यान
– राष्ट्रीय चिंतक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी के जन्म शताब्दी वर्ष की स्मृति में द्वितीय व्याख्यान
भोपाल, 21 दिसम्बर। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक पद्मश्री डॉ. के.के. मुहम्मद ने कहा कि अयोध्या में 20 ऐसे पुरातात्विक प्रमाण प्राप्त हुए हैं, जो सिद्ध करते हैं कि वहां एक बहुत बड़ा मंदिर था। मस्जिद के नीचे से बहुत सी मिट्टी की मुर्तियां मिली हैं। प्रारंभ में उत्खनन में 12 स्तम्भ मिले। बाद में 50 से अधिक स्तम्भ प्राप्त हुए। अमलिका, उत्तरवाहिनी, 263 से अधिक प्रतिमाएं, विष्णुहरि शिला फलक आदि प्राप्त हुए। ये सभी अवशेष बहुत बड़े मंदिर होने के प्रमाण थे।
श्री मुहम्मद दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के तत्वावधान में शनिवार को भारत माता चौराहा स्थित ठेंगड़ी भवन में ‘राष्ट्रीय अस्मिता में पुरातत्व की भूमिका’ विषयक व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। पद्मश्री से सम्मानित श्री मुहम्मद ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर के सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त साक्ष्यों को पीपीटी के माध्यम से दिखाया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. मोहम्मद ने कहा कि कम्युनिस्टों व जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के इतिहासकारों ने भ्रम की स्थिति पैदा की कि अयोध्या स्थित राम मंदिर सर्वेक्षण में वे नहीं थे, जबकि सच यह है कि वे बी. बी. लाल की टीम के सदस्य थे। श्री लाल ने भी अपना स्टेटमेंट उनके पक्ष में दिया। सर्वेक्षण के दौरान की तस्वीरें आज भी उनके पास हैं।
पूर्व निदेशक ने बताया कि बाबरी मस्जिद के पीछे से टीम ने प्रवेश किया था। उस पूरे क्षेत्र के बाहर क्या-क्या है, इसका बारीकी से अध्ययन किया गया तो आश्चर्यजनक तथ्य प्रकाशित हुए। इस स्थल पर मंदिर के स्तम्भ थे। उन्होंने कहा कि पुरातत्व से जुड़े लोग पत्थर देखकर बता देंगे कि मंदिर का स्तम्भ है या मस्जिद का।
इतिहासकार रोमिला थापर व इरफान हबीब पर मुसलमानों को भड़काने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि ये लोग पुरातत्वविद नहीं हैं, लेकिन इन्होंने इस प्रकरण में कई लेख लिखे। उन्होंने कहा कि 11वीं शताब्दी में कुछ गलतियां हुई हैं, यह बात मुसलमानों को माननी होगी, हालांकि उन गलतियों के लिये आज के मुसलमान जिम्मेदार नहीं हैं, लेकिन उन गलतियों के पक्ष में खड़े होंगे तो उस पाप के भागीदार होंगे। उन्होंने बताया कि जब मुसलमानों से बातचीत की गई तो कुछ मंदिर के लिये तैयार भी हो गये थे, लेकिन इरफान हबीब जैसे इतिहासकारों ने ने उन्हें भड़काया और पीछे खींच लिया।
उन्होंने कहा कि आइना-ए-अकबरी में अबुल फजल ने अयोध्या में श्रद्धालुओं के आने और पूजा करने के विषय में लिखा है, जबकि उसमें मस्जिद का जिक्र नहीं है। विलियम फिंच अपने अयोध्या आगमन का जिक्र करते हुए रामकोट के खंडहरों के अस्तित्व की पुष्टि की है।
मध्यप्रदेश के बटेश्वर मंदिर श्रृंखला संरक्षण का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान में इतना बड़ा संरक्षण का काम कहीं नहीं हुआ है। इस मंदिर पर काम करते समय पुरातत्व विभाग का दस्यु निर्भय सिंह गुर्जर ने भी सहयोग किया।
श्री मुहम्मद ने कहा कि आज सत्य को स्वीकार कर और साथ मिलकर भारत को सशक्त बनाने के लिये सभी वर्गों को साथ आना चाहिये।
शोध संस्थान के निदेशक डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने कार्यक्रम का संचालन किया और अतिथि परिचय कराया। अध्यक्षता संस्थान के सचिव दीपक शर्मा ने की। इस अवसर पर सैकड़ों चिंतक, विद्वान व विद्यार्थी उपस्थित रहे।