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चीनी सामान का बहिष्कार: कारगर और प्रभावी बने

चीनी सेना के भारतीय क्षेत्रों में अतिक्रमण की चेष्टा के फलस्वरूप भारतीय व्यापारियों एव  आम जनता में भी चीन द्वारा उत्पादित वस्तुओं के बहिष्कार की चर्चा जोर पकड़ती जा रही है। इस नीति पर आगे बढ़ने से भारत को दो फायदे होंगे। एक तो देश आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते नजर आने लगेगा दूसरे चीन पर आर्थिक दबाव भी बढ़ेगा।

सन् 2017 में डोकलाम क्षेत्र में युद्ध की धमकी दिये जाने के परिणाम स्वरूप तथा सर्जिकल स्ट्राईक के समय चीन द्वारा पाकिस्तान का साथ दिये जाने की स्थिति में भी ऐसा ही वातावरण निर्मित हो गया था। उस समय भारतीय बाजारों में चीनी सामानों की बिक्री में 25 प्रतिशत तक कमी आ गयी थी। इस बार लोगों में गुस्सा चरम पर है।

गत 31 मई को प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भी देश की जनता के आव्हान (मन की बात) में आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के माध्यम से देश को ऊँचाईयों तक ले जाने की बात कही थी। सभी लोग इस तथ्य से भलीभांति अवगत हैं कि इस समय भारतीय बाजार सस्ते होने और टिकाऊ न होने के बावजूद चीनी सामानों से अटे पड़े हैं।

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सन् 2018-19 में चीन से भारत ने 70 अरब डॉलर मूल्य के सामानों का आयात किया। जबकि भारत चीन को 17 अरब डॉलर का निर्यात करता है। यद्यपि चीन का रवैया हमेशा से आक्रामक और अविश्वसनीय रहा है, इसलिये इस दिशा में भी चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुये गम्भीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है।

यद्यपि चीन की अर्थव्यवस्था पाँच गुनी अधिक है-यह चिन्तनीय विषय हो सकता है। देश के करोड़ों उपभोक्ताओं द्वारा चीनी माल के बहिष्कार की भावना को लेकर आगे तो बढ़ा जा सकता है। भारत के भी अनेक ऐसे महत्वपूर्ण पक्ष हैं जिनके आधार पर इस मामले में पग मजबूती से आगे बढ़ाये जा सकते हैं। यह वही कदम है जिनके सहारे चीन पर आर्थिक दबाव बनाया जा सकता है।

इस समय दुनिया भर में भारत की अपनी साख बनी हुयी है। विश्व के महत्वपूर्ण एवं बड़े उपभोक्ता बाजार के रूप में भारत की गिनती होती है। इतना ही नहीं भारतीय बाजार तेजी से गति पकड़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में भारत में स्वदेशी की भावना का स्वयं उद्रेक होता है तो लाजिमी है कि इसका न केवल लाभ मिलेगा वरन् इसी माध्यम से चीन को स्वतः चुनौती भी मिलती जायेगी। कई आर्थिक मामले कुछ इस प्रकार के भी हैं जिनकी तुलना में चीन भी अभी पीछे है।

भारत के पास कुशल और सक्रिय पेशेवर भारी संख्या में सहज ही उपलब्ध हैं, जिनका सही मायने में उपयोग भी होगा। कोरोना महामारी के कारण चीन के बारे में विश्वभर में नाराजी व्याप्त है। अनेक कार्यरत कम्पनियाँ अन्यत्र चीन से बाहर जाने की मानसिकता पाले हुये हैं। वे भी देर-अबेर अपना कामकाज समेट ही लेंगी।

आक्रामक मानसिकता वाला देश होने के कारण चीन के आसपास के देश भी आतंकित हैं। अब तो उसकी स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी है कि अमरीका, आस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों से भी अब उसके पैर उखड़ना शुरू हो गये हैं। जो धन उसने उद्योगों में जहाँ-तहाँ लगा है, कोरोना के कारण उसके सभी आमदनी के जरिये क्रमशः बन्द होते जा रहे हैं। बेरोजगारी बढ़ने लगी है, उद्योग क्रमशः बन्द होते चले जा रहे हैं।

मक्कार चीन को एक बड़ा झटका दिया जाना समय की माँग है। उसे आर्थिक मोर्चे पर घेरना जरूरी है। चीन की अर्थ-व्यवस्था निर्यात पर टिकी है। वह भारत को ही एक लाख करोड़ के सामान का निर्यात करता है। सरकार सरचार्ज बढ़ा सकती है और शनैः शनैः उसके माल का बहिष्कार भी कर सकती है।

इन दोनों देशों के बीच लगभग 6 हजार करोड़ रूपयों का व्यापार होता है। इसे एक दम समाप्त कर देने की बात कहने में जितनी सरल है, उतनी क्रियान्वित करने में नहीं। इसे धीरे-धीरे ही कम या समाप्त किया जाना सम्भव है।

चीन दोगला देश है, इसे भारत ही नहीं विश्व के अन्य सभी देश भी मानने लगे हैं, और उन्होंने सावधानी भी बरतना शुरू कर दी है, पर हम सोये थे अब चोट पर चोट खाने के बाद भी जाग जायें जितनी जल्दी सजग हो जायें उतना ही हमारे लिये बेहतर होगा।

चीन भी इस बात से अवगत है कि भारत उसके कारोबार के लिये एक बड़ा बाजार है। वह कोई न कोई चालाकी भरा रास्ता निकाल लेने का फिर भी प्रयास करेगा ताकि ट्रेडबार की स्थिति पैदा न हो सके। अन्य सेक्टरों की बात न भी करें तो ड्रग्स एंड इंटरमीडियरोज सेक्टर की 68 फीसदी कम्पनियाँ चीन से होने वाले आयात से ही चलती हैं।

चीन के व्यापार पर देरअबेर प्रतिबंध तो लगाना ही होगा क्योंकि इसी माध्यम से उसकी अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचायी जा सकती है। हालांकि भारत को कई मोर्चों पर कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। भले ही थोड़े समय के लिये ये बात तो सोलह आना सही है कि इस दगावाज चीन को एक बड़ा झटका देना अत्यन्त आवश्यक हो गया है।

धोखेबाजी उसके डी. एन.ए. में है। सन् 1962 से अब तक एक भी मामले में वह विश्वस्त साबित नहीं हो सका। उसकी धूर्तता के लिये सबक सिखाना समय की माँग है। चीन की कथनी और करनी के अंतर का लम्बा इतिहास है। कम से कम अब तो भारत उसके झांसे में न आये।

प्रश्न अब भारत की अस्मिता और संप्रभुता का है इसलिये कोई भी निर्णय हानि-लाभ को न देखते हुये लिया जा सकता है। आश्चर्य तो इस बात का है कि हमारी दृष्टि दूरंदेशी नहीं रही। चीन भारत से 3839 करोड़ का कच्चा माल (लोहा) खरीद कर, भारत को ही बारह हजार करोड़ के स्टील प्रोडक्ट के रूप में बेचता है।

11,958 करोड़ रूपये मूल्य के स्टील के सामान भारत द्वारा खरीदे जाते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण सामने हैं। जो हमारी कार्यप्रणाली की कमियों की ओर इशारा करते हैं। इसी प्रकार दवा निर्माण के मामले में भारत की गणना विश्व के शीर्ष देशों में होती है, लेकिन कच्चे माल के लिये भारत चीन पर निर्भर रहता है। इस प्रकार की विसंगतियों की ओर समय रहते ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।

इस तथ्य की बहुत कम लोगों को जानकारी है कि चीन से भारत आने वाले सामान का रिटेल ट्रेडर्स करीब 17 अरब डॉलर तक का व्यापार करते हैं। इसमें ज्यादातर खिलौने, घरेलू सामान, मोबाईल, इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रानिक और कास्मैटिक उत्पाद तथा अन्य वस्तुयें भी शामिल हैं।

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यदि इन सामानों को चीन से मँगाना बन्द दिया जाय तो हमारे देश में ही ये सामान घरेलू कम्पनियाँ बनाने लगेंगी जिससे बहुत बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलेगा। यह एक अच्दा संकेत है कि आयातकर्ता व्यापारियों का संगठन ‘‘भारतीय सामान हमारा अभियान’’ नाम से एक विशेष अभियान चलाने में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह कर रहा है।

लगभग 3000 चीनी उत्पाद हैं। इनका प्रचार बन्द कर देने का भी अनुरोध किया गया है। एक अनुमान के आधार पर भारत चीन को इस आधार पर 5.7 लाख करोड़ का नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन इसके साथ ही साथ कठिन परिस्थिति यह भी है जिसे सुलझाना अत्यन्त आवश्यक है।  वह यह है कि चीन की 35 से अधिक कम्पनियों का निवेश सन् 2008 से लेकर सन् 2019 तक दस करोड़ डॉलर के आसपास तक पहुंच चुका है। इसमें अलीबाबा, फोसून समूह, बैंगलूर की एस्टेट कम्पनी भी शामिल हैं।

एक सुझाव यह भी है कि चीन सं आयात कम करने के लिये 200 से अधिक सामानों के आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी कर दी जाय। कुछ ऐसी वस्तुयें भी हैं जिन पर डम्पिंग ड्यूटी भी लगाई जा सकती है। भारत में गलवान घाटी की हिंसक घटना को लेकर चीनी निवेश वाली कम्पनियों पर भी भारी गुस्सा है। एक एंटी-चाईना लहर चल रही है। निर्णय सरकार को करना है, कि वह क्या चाहती है? चीन में भी भारतीय यूनिट लगी है।

आभार महाकौशल संदेश