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चीन: महाशक्ति बनने की महत्वाकाँक्षा

चीन: महाशक्ति बनने की महत्वाकाँक्षा…..

चीन भरोसे लायक तो नहीं है। उसकी छल-कपट भरी नीतियों का अभी तक का निष्कर्ष यही है कि ऐन-केन प्रकारेण वह पड़ोसी देशों की भूमि, हाँगकाँग और ताईवान को तिब्बत की तरह हड़प कर अपने कब्जे में ले लेना चाहता है। उसकी दुनिया में अपनी तानाशाही थोपने की मंशा पर लगाम लगाना इसलिये जरूरी है ताकि उसकी दुर्भावना के परिणाम स्वरूप विश्वशांति के लिये कोई संकट उपस्थित न होने पाये।

चीन की कम्युनिष्ट सरकार अपनी सैनिक और आर्थिक शक्ति के माध्यम से दुनिया के अनेकानेक देशों, विशेष कर चीन की भूमि से सटे 14 और समुद्री सीमा के किनारे स्थित 6 पड़ोसी देशों को किसी न किस बहाने धमकाने का प्रयास करता रहता है। इसकी दादागिरी के कारण तिब्बत, पूर्वी तुर्कीस्तान (चीनी नाम शिजियांग), दक्षिण मंगोलिया जैसे उपनिवेश असुरक्षित एवं आतंकित महसूस करते हैं। अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी धौंस देने से वह कहाँ चूकता है।

सन् 1951 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया और वह क्रमशः बढ़ता हुआ भारत की सीमाओं को छूने की हिमाकत करने लगा है यहाँ तक कि वह अरूणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताकर 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर भी अपना दावा जताने लगा। उसकी दुःखती नब्ज तिब्बत है। इस विवाद को नया आयाम दिया जाना सामयिक कदम होगा। तिब्बत पर चीन की अवैध उपस्थिति को चुनौती दी जाना चाहिये।

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इतना ही नहीं उसे मुक्त करने से हरेक प्रकार के प्रयासों को मदद दी जानी चाहिये। इस क्रम में तिब्बत की निर्वासित सरकार को मान्यता दिये जाने वाले विकल्प पर भी गम्भीरता से विचार करने की जरूरत है। अमरीकी संसद में पिछले महीने तत्सम्बंध में प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित भी किये हैं। इतना ही नहीं यूरोप के कम से कम दो हजार शहरों में नगर पालिका भवनों पर प्रतिवर्ष दस मार्च को तिब्बत का झण्डा फहराया जायेगा। यह अंतर्राष्ट्रीयता समुदाय के लिये एक अनौखा संदेश भी है।

भारत ने सन् 1951 में चीन को तिब्बत में आसानी से कब्जा कर लेने दिया तथा सन् 1954 में पंचशील समझौता किया-इनसे भारत के हितों को अनेक क्षेत्रों में हानि उठाना पड़ी है। यह पं. नेहरू द्वारा की गयी ऐतिहासिक भूल थी। अब वक्त आ गया है, जब उस गलती को सुधार लिया जाये। उस समय भी भारत ने तिब्बत को एक स्वायत्त प्रान्त के रूप में नहीं बल्कि भारत को वहाँ अपने दो वाणिज्य दूतावास चलाने और सेना की टुकड़ियाँ रखने, व्यापार मंडियाँ चलाने आदि की सुविधा भी मिली हुयी थी, जो उसने उन्हें भी छोड़ दिया था। गत अनेक वर्षों से चीन सरकार तिब्बत ल्हासा में वाणिज्य दूतावास खोलने की भारत की माँग को भी ठुकराती चली आ रही है। ऐसी तमाम बातों को अब संदर्भ में लिया जाकर सख्त निर्णय लिये जाने की जरूरत है।

कोरोना महामारी का जनक चीन ही है, उसका वायरस वुहान से सारी दुनिया में फैला है, जानबूझ कर छोड़ा गया है या गलती से-यह जाँच की विषय हो सकता है लेकिन फैला तो दुनिया भर में हैं, लाखों लोग उससे प्रभावित हुये हैं, साथ ही साथ भारी संख्या में कालकतलित भी। यद्यपि अमेरिका, जर्मनी, जापान और आस्ट्रेलिया सहित अन्यान्य देश चीन के खिलाफ सख्त कार्रवाही हो-ऐसी मंशा जता भी चुके हैं। भारत को इस विश्व व्यापी अभियान में अपनी भूमिका का भी निर्वाह करना चाहिये।

विश्व की महाशक्ति बनने की महत्वाकाँक्षी लालसा पालकर रखने वाले चीन को एक नहीं अनेक मोर्चों पर मात देने के तरीकों को अमल में लाया जाना चाहिये जिससे उसका वह अहंकारी नशा चूर-चूर हो सके। आत्मनिर्भर भारत अभियान उस दिशा में चला एक प्रभावी कदम सिद्ध हो सकता है। इस मामले में उन तमाम देशों को भी अपना सक्रिय सहयोग देना चाहिये जो चीन से त्रस्त हैं। चीन की अर्थ व्यवस्था चरमराने लगे – इसके प्रयास तेजी से प्रारम्भ किये जा चुके हैं।

साभार महाकौशल संदेश