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चीन से राहुल-सोनिया ने 90 लाख लिया!

चीन से राहुल-सोनिया ने 90 लाख लिय…..

देश में लगभग 70 वर्षों तक सत्ता पर काबिज रही राष्ट्रीय पार्टी का अपनी विचारधारा से इतर अन्य पार्टी (कम्युनिष्ट) की विचार धारा से प्रभावित होना या झुकाव को अन्यथा नहीं लिया जा सकता लेकिन (प्रथम एवं पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू) कांग्रेस के प्राण प्रेरणा स्त्रोत माने जाने वाले व्यक्ति ने पंचशील समझौते को लेकर धोखा खाया और तिब्बत को हड़पने का चीन को अवसर दिया। यह पंचशील समझौता भारत और तिब्बत के सम्बंधों पर हुआ था।

वैसे भी कम्युनिष्टों का पंचशील से कुछ लेना देना नहीं। उस पार्टी के साहित्य में इसका कोई स्थान नहीं है। नेहरू ने चीनी कम्युनिष्टों को तिब्बत हड़पने का सुविधाजनक अवसर दिया। इसके बदले में चीन ने भारतीय और तिब्बती जनता के आक्रोश को भ्रमित करने के लिये पंचशील समझौते का नाटक किया। यह समझौता भारत और तिब्बत के बीच व्यापार और अन्य सम्बंधों के बारे में था।

नेहरू चूंकि कम्युनिज्म से प्रभावित रहे हैं इसलिये वे भी धोखा खा गये। तब भी और अब भी तिब्बतियों को अपना शांतिपूर्ण वैचारिक सांस्कृतिक, राजनैतिक अभियान चलाने में मदद की जाना चाहिये। भारत को अपनी सुरक्षा और तिब्बत की स्वतंत्रता के लिये भारत से आवाज उठनी चाहिये। उस चीन से उनके उत्तराधिकारी कहे जाने वाले सोनिया-राहुल की राजीव गाँधी फाऊंडेशन को चीन से 90 लाख रूपये प्राप्त होने का आरोप है, तब प्रश्न और आशंकायें तो आम मतदाता के मस्तिष्क को कचैटेंगी ही।

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इसके पहले चीनी कम्युनिष्ट पार्टी से एम.ओ.यू. का आरोप लगा था। इतनी बड़ी राकम चीनी दूतावास से राजीव गाँधी फाऊंडेशन को डोनेशन के रूप में मिलना-शंका-आशंकाओं का बबंडर तो उठाता ही है। यह भी आरोप लगा कि काँग्रेस पार्टी ने चीन के सामने घुटने टेके। इसके एवज में काँग्रेस द्वारा चीन को फायदे पहूँचाये।

इस की सत्यता को इस बात से जाना जा सकता है कि सन् 2005-06 की राजीव गाँधी फाऊंडेशन की रिपोर्ट में और चीनी कम्युनिष्ट पार्टी को पार्टनर और दिल्ली स्थित चीनी दूतावास को डोनर (दानदाता) की सूची में दिखाया गया है। इसके अलावा राजीव गाँधी फाऊंडेशन की सन् 2006-07 की विदेशी सहायता की रिपोर्ट में साफ बताया गया है कि उसे चीनी दूतावास से 90 लाख की आर्थिक मदद मिली थी।

यह भी आरोप लगाये जा रहे हैं कि काँग्रेस और चीन का कोई गुप्त रिश्ता है। इस शंका के उठने के कई कारण हैं। सन् 2017 में जब चीन के साथ भारत का डोकलाम विवाद प्रारम्भ हुआ था और गम्भीर रूप से गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी, उस समय काँग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गाँधी गुप्त रूप से भारत में चीन के राजदूत के साथ गुफ्तगू कर रहे थे।

गाँधी-नेहरू परिवार की राष्ट्रघाती नीति और नीयत पर प्रश्न उठ खड़े हुये हैं जिनके कारण सन् 1962 में चीन ने भारतीय भूमि का 43 हजार वर्गमील के हिस्से पर कब्जा कर लिया जो अब तक बना हुआ है।

काँग्रेस ने अपने लगभग 70 वर्षों के शासन के दौरान इस हिस्से को वापिस लेने के लिये कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाये? अभी वर्तमान समय में भी जब देश का विपक्ष गलवान घाटी मामले में देश के साथ है, तब काँग्रेस पार्टी का झुकाव चीन की तरफ क्यों दिखाई देता है? ऐसे अवसर पर भी जो देश के लिये कठिनाई भरा है, पर गाँधी परिवार सवाल पर सवाल खड़े कर सेना का मनोबल गिराने में लगा हुआ है।

सन् 2008 में काँग्रेस ने चीन की कम्युनिष्ट पार्टी के साथ एक एम.ओ.यू. किया था, जिसमें राहुल गाँधी स्वयं हस्ताक्षर कर रहे थे। उस समय सोनिया गाँधी और चीन के वर्तमान राष्ट्रपति श्री जिनपिंग भी उपस्थित थे, जैसा कि चित्र में दिखाई दे रहा है। देश जानना चाहता है कि चीन ने इतनी बडी रकम राजीव गाँधी फाऊंडेशन जिसकी चेयरपर्सन श्रीमति सोनिया शामिल हैं, क्यों और किस उद्देश्य से दी थी?

वैसे भी देश के विभाजन के लिये काँग्रेस को ही जिम्मेदार माना जाता रहा है। लोग ये भी जानना चाहते हैं कि पार्टी से पार्टी रिश्ते की डोर बाँधने के पीछे का रहस्य क्या है?

भारत में आपालकाल के 21 महीने काँग्रेस की ऐसी ही मनमानी करतूतों का बदनुमा दाग है। उसे इमरजेंसी की काला अध्याय भी कहा जाता है। आपातकाल लगाकर बेकसूर लोगों को जेलों में ठूँस दिया गया था।

उस समय के सभी विपक्षी नेता जेलों में थे। 25 जून 1975 का दिन। यह सिलसिला चला मार्च-1977 तक। नयी पीढ़ी को शायद यह बात न भी मालूम हो कि 25 जून की रात को काँग्रेस ने अपनी सत्ता की पिपासा को पूरा करने के लिये देश की लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक मर्यादाओं को एक तरफ ताक पर रखकर आपातकाल की घोषणा कर सर्व सामान्य वर्ग को गुलामी से ज्यादा बदतर बेड़ियों में जकड़ दिया था।

पूरे देश में तानाशाही, कोई सर्वसाधारण से लेकर देश के लगभग सभी विपक्षी नेताओं को 19 महीने तक जेलों में ठूँसकर रखा गया था। 250 से अधिक पत्रकार भी जेलों में रखे गये थे। उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम सारे देश में हाहाकार, सैंकड़ों असमय काल कवलित हुये । लाखों पर मुकदमें चले।

स्वतंत्र भारत के इतिहास का यह काला एवं दुर्भाग्यपूर्ण दिवस था। काँग्रेस द्वारा थोपा गया कुकृत्य था। आने वाली एवं वर्तमान पीढ़ी को इसके इतिहास को जान बूझकर छिपा कर रखा गया। इस कृत्य के बारे में उसे जानकारी होना चाहिए।

प्रश्न पर प्रश्न उठ रहे हैं- कि राहुल-सोनिया गाँधी के राजीव फाऊंडेशन को चीन से आर्थिक सहायता लेने की क्या जरूरत आ पड़ी थी? इसकी मुखिया काँग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी है। इसके बोर्ड में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य अनेक वरिष्ठ काँग्रेसी नेता शामिल हैं। गाँधी और काँग्रेस के कई नेता यह साधारण मामला नहीं है। इसका जबाब देना भी कठिन है।  इस तरह की किसी संस्था द्वारा विदेशी दूतावास से धन लेना सवालों के घेरे में तो आता ही है। गुपचुप रूप से काँग्रेस द्वारा चीन से धन लेना -गम्भीर बात है। यह धन तब लिया गया था जब काँग्रेस केन्द्रीय सत्ता की सुख-भोग रही थी।

काँग्रेस के राजकुमार की बचकानी हरकत तो जबतब सामने आती ही रही है। आज जब चीन की भारत पर आक्रामकता खतरनाक स्तर पर जा पहुँची है, उस समय राहुल गाँधी देश में अन्य विपक्षी दलों की तरह एक जुटता न दिखाते हुये चीन की आक्रमकता का पक्ष लेते हुये ही नजर आ रहे हैं। राजीव और कांग्रेस का आचरण चीन के हौसले को बल देने वाला ही साबित हो रहा है।

काँग्रेस का वर्तमान रवैया एक तरफ जहाँ अफसोस जनक है, वहीं दूसरी तरफ राष्ट्र को कमजोर करने वाला भी है यह भारत के लिये ऐसा कठिन समय है, जब एक तरफ चीन आँखें तरेड़ रहा है, वहीं पाक भी रह-रहकर उकसाने वाली कार्रवाही कर रहा है, तीसरे मोर्चे पर रवैया नेपाल का भी ठीक नहीं कहा जा सकता।

काँग्रेस नेतृत्व के वरिष्ठ जन इन माँ-बेटे के बौद्धिक दिवालियेपन के कारण अपना राजनैतिक भविष्य सम्भालने के चक्कर में पलायन का रास्ता देखने लगे हैं। इस अवसर पर चापलूसों का बोलवाला बढ़ता चला जा रहा है। राहुल के सफेद झूठ बोलने के राजनैतिक कदम के कारण पग-पग पर पुराने सच्चे काँग्रेसियों की राह में बड़ी-बड़ी कठिनाईयाँ आ खड़ी हुयीं हैं, जिनका सार्वजनिक जीवन में जबाब देना भी मुश्किल भरा हो गया है। इन झूठी एवं तथ्यों से विपरीत बातों से उनकी फजीहत हो रही है।

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काँग्रेस की चीनी भक्ति का इससे बढ़िया उदाहरण क्या हो सकता है कि चीन की एक घुड़की से अपने ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरूणाचल यात्रा रूकवा दी थी। ऐसा रहा है काँग्रेस का इतिहास।

काँग्रेस आज गलवान घाटी जैसी विश्वासघातपूर्ण घटना पर घड़याली आँसू बहा रही है, उसे यह तथ्य भी नहीं भूलना चाहिये कि काँग्रेस के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने श्रीलंका में भारत के 1200 सैनिक लिट्टे के हाथों मरवा दिये थे, तब काँग्रेस का नेतृत्व वहाँ भारत की कौन सी सीमा की रक्षा करवा रहा था?

साभार महाकौशल संदेश