अफगानिस्तान मैं सुनियोजित हमले हो रहे हैं। भारत में स्वयं को धर्मनिरपेक्षता का चोंगा धारण किये एक खेमा ऐसा भी है, जो हिन्दुओं पर होने वाले हमलों पर आँख, कान, नाक सब कुछ बन्द कर लेता है। हिन्दुओं के अलावा किसी अन्य धर्मावलम्बी (विशेषकर मुस्लिम) पर हुयी हल्की सी सामान्य वारदात पर हायतौबा मचाने पर आमादा हो जाता है। इस समय भी यह सेकुलेरिटी की खाल ओढ़ लेने वाला तबका खामोश है, मानो बाँग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे योजनाबद्ध हमले स्वाभाविक ही हैं।
बाँग्लादेश में गत 13 अक्टूबर 2021 को कोमिल्ला के नानुआर दिधी के दुर्गा मंडप से ये हमले आरम्भ हुये थे और पूरे बाँग्लादेश में फैल गये। सात दर्जन से अधिक दुर्गा पूजा स्थल तहस- नहस कर दिये गये, पूजा के समय उपस्थित लोग भारी संख्या में आहत भी हुये। यहाँ तक कि कोमिल्ला में जब दो शव बरामद हुये, तब उसकी गम्भीरता को समझा गया। धीरे-धीरे हमले विस्तार लेते चले गये, चाँदपुर, नोआखाली रंगपुर, चटगाँव, काॅक्स बाजार, मौलवी बाजार, गाजीपुर कैनी आदि स्थानों को अपनी चपेट में ले लिया। इन स्थानों की हिंसा भयंकर खतरनाक रूप ले चुकी थी। तब जाकर प्रशासन की आँखें खुली। तब तक 64 में से 24 प्रशासनीय जिलों में दंगा विरोधी पुलिस की तैनाती हुयी। इन हमलों में हिन्दुओं के खिलाफ मामले दर्ज हुये और गिरफ्तारियाँ भी हुयीं हैं। इसके बावजूद हमले नहीं रूके।
नौआखाली का इस्कान मंदिर भी इन हमलों के दौरान बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इसके पीछे अबुल अलामौदुदी की कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी सहित अन्य मुस्लिम कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों का हाथ होना बताया जाता है। इसके संकेत पहले से मिलना शुरू हो गये थे। पिछले दिनों शेख हसीना ने कहा था कि जमात वही हालात वापिस लाना चाहती है, जिसमें खुले आम कत्ले आम हो। वैसे भी बाँग्लादेश में जब तब जमात और इस प्रकार के अन्य संगठन हिन्दुओं पर हमले करते रहे हैं, मंदिर और हिन्दू घरों को निशाना बनाया जाता रहा है। शेख हसीना भले ही उदारवादी चेहरा बताने की कोशिश करती हो लेकिन सच्चाई यह है कि वे भी इन कट्टरपंथियों के सामने कमजोर नजर आती हैं।
बाँग्लादेश के ही समाचार पत्र ‘ब्लिट्ज’ ने आबादी का खुलासा करते हुये बताया था कि सन् 1947 में पूर्वी पाकिस्तान अर्थात् बाँग्लादेश में 30 प्रतिशत से अधिक हिन्दू थे। सन् 2011 की जनगणना से पता चलता हे कि वहाँ हिन्दुओं की आबादी अब केवल आठ प्रतिशत शेष रह गयी है। बाँग्लादेश के समाचार पत्रों पर छपी घटनाओं पर ही यदि दृष्टि डाली जाये तो पता चलता है कि यहाँ हिन्दुओं को बुरी तरह अपमानित किया जाता है तथा हिन्दू महिलाओं के साथ होने वाले दुव्र्यहार आम बात बन गये हैं। बाँग्लादेश की ही एक संस्था एन.ओ. सालिश सेन्टर ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि आरम्भ में इस वर्ष सितम्बर तक हिन्दुओं पर 3679 हमले की घटनायें घट चुकी हैं। नोआखाली की स्थिति अत्यंत भयावह बनी हुयी है। यहाँ का हिन्दू बुद्धिस्ट क्रिश्चियन यूनिटी कौंसिल नाम संस्था ने चाँदपुर और नौआखाली में हुये हमलों के दौरान जानमाल को हुये नुकसान के बारे में जो तस्वीर पेश की है, वह अत्यन्त चैंका देने वाली व डरावनी है।
सन् 1946 में मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट ऐक्सन के बाद कोलकाता से लेकर बंगाल तक अनेक स्थानों पर भीषण नरसंहार हुआ था। वह 10 अक्टूबर सन् 1946 का दिन था, जिसे कोजागरा पूर्णिमा कहा जाता है। हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार के बाद हजारों हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया था।
इस प्रकार के भीषण हमले तो योजनाबद्ध तरीके से हिन्दुओं पर हो रहे हैं, तत्काल रोके जाने चाहिये। हिंसक घटनायें अभी भी रूक नहीं रहीं हैं। भारत सहित संपूर्ण विश्व के हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई यहाँ तक कि मुसलमानों को भी इस तरह की हिंसक घटनाओं को रोकने की माँग करना चाहिये। अन्यथा यह भी सम्भव है कि एक दिन वहाँ चल रहे घटनाक्रम के अन्य मुस्लिम समुदाय के अलावा किसी और को रहने न दिया जाय। यह गम्भीर प्रश्न है? हिन्दुओं के विरूद्ध कुछ भी होता रहे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। अत्यंत चिन्ताजनक स्थिति होने पर भारत की कूटनीति सक्रिय होती है, तब लोगों को पता चल पाता है। ऐसी स्थिति हिन्दुओं के लिये अत्यन्त चिन्ता का विषय होना चाहिये।