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‘बढ़ती जनसंख्या’ एक अभिशाप

आज यह सर्वविदित है कि हमारे प्रिय देश भारत में बढ़ती जनसंख्या एक भयानक रूप ले चुकी है? जिससे देश में विभिन्न धार्मिक जनसंख्या अनुपात निरंतर असंतुलित हो रहा है। आज की बढ़ती जनसंख्या भारत के लिए अभिशाप बन चुकी है। हम अपने अस्तित्व पर आने वाले संकट के प्रति सतर्क व सावधान कब होंगे?

यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि जब 1947 में पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में मुस्लिम बहुसंख्यक हुए तो देश का विभाजन हुआ था। यह जनसंख्या बल का दुष्प्रभाव था जिससे तत्कालीन राजनीति ने विवश होकर धर्म के आधार पर देश का विभाजन किया। क्या यह अनुचित नहीं कि जहां जहां मुस्लिम संख्या बढ़ती जाती है। वहां-वहां उनके द्वारा साम्प्रदायिक दंगे भड़काने से वहां के मूल निवासी पलायन करने को विवश हो जाते हैं? तत्पश्चात वहां केवल मुस्लिम बहुल बस्तियाँ होने के कारण उनमें अनेक अलगाववादी व आतंकवादी मानसिकता पनपने लगती है।

इसके अतिरिक्त अधिकांश कट्टरवादी मुस्लिम समाज लोकतांत्रिक चुनावी व्यवस्था का अनुचित लाभ लेने के लिए अपने संख्या बल को बढ़ाने के लिये सर्वाधिक इच्छुक रहते हैं। अधिकांश मुस्लिम बस्तियों में यह नारा लिखा हुआ मिलता है। कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी सियासत में उसकी उतनी हिस्सेदारी।’

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जनसंख्या के सरकारी आंकड़ों से भी यह स्पष्ट होता रहा है कि हमारे देश में इस्लाम सबसे अधिक गति से बढ़ने वाला सम्प्रदाय/धर्म बना हुआ है। इसको ‘जनसंख्या जिहाद’ कहा जाये तो अनुचित न होगा क्योंकि इसके पीछे इनका छिपा हुआ मुख्य ध्येय है कि हमारे धर्मनिरपेक्ष देश का इस्लामीकरण किया जाये।

निसंदेह विभिन्न मुस्लिम देश टर्की, अल्जीरिया, ट्यूनिशिया, मिस्र, सीरिया, ईरान, यू.ऐ.ई., सऊदी अरब व बांग्लादेश आदि ने भी कुरान, हदीस, शरीयत आदि के कठोर रूढ़िवादी नियमों के उपरांत भी अपने-अपने देशों में जनसंख्या वृद्धि दर कम करी है। बढ़ती हुई जनसंख्या संसाधनों को खा रही है। औद्योगिकीकरण होने के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है व बढ़ती आवश्यकता वस्तुओं की मांग पूरी करने के लिए मिलावट की जा रही है।

इसके अतिरिक्त वायु प्रदूषण, कूड़े-कर्कट के जलने पर धुआँ, प्रदूषित जल व खाद्य-पदार्थ, घटते वन व चारागाह, पशु-पक्षियों का संकट, गिरता जल स्तर व सूखती नदियाँ, कुपोषण व भयंकर बीमारियाँ, छोटे-छोटे झगड़े, अतिक्रमण, लूटमार, हिंसा, अराजकता, नक्सलवाद व आतंकवाद इत्यादि अनेक मानवीय आपदाओं ने भारत भूमि को विस्फोटक बना दिया है।  फिर भी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी की गति को सीमित करने के लिए सभी नागरिकों के लिए कोई एक समान नीति नहीं हैं।

उपरोक्त वृद्धि के अतिरिक्त बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार आदि से निरंतर आने वाले घुसपैठिये व अवैध व्यक्तियों की संख्या भी लगभग 7 करोड़ होने से एक और गम्भीर समस्या हमको चुनौती दे रही है।

सम्पूर्ण विश्व के 149 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में भारत का क्षेत्र मात्र 2.4 प्रतिशत है जबकि हमारी पुण्य भूमि पर विश्व की कुल जनसंख्या लगभग 7.5 अरब का 17.9 प्रतिशत बोझ है। आज हमारे राष्ट्र की कुल जनसंख्या 134 करोड़ से अधिक हो चुकी है। और जो चीन की लगभग 138 करोड़ जनसंख्या के बराबर होने की ओर बढ़ रही है। जबकि पृथ्वी पर चीन का क्षेत्रफल हमसे लगभग 3 गुना अधिक है। इस प्रकार हम 402 व्यक्तियों का बोझ प्रति वर्ग किलोमीटर वहन करते हैं। जबकि चीन में उतने स्थान पर केवल 144 व्यक्ति ही रहते हैं। इसी प्रकार पाकिस्तान में 260, नेपाल में 196, मलेशिया में 97, श्रीलंका में 232 एवं तुर्की में मात्र 97 व्यक्तियों का प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पालन हो रहा है। हम से ढाई गुना बड़े क्षेत्रफल वाले आस्ट्रेलिया की जनसंख्या जितनी ही संख्या प्रति वर्ष हमारे देश में बढ़ रही है। अतः भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को शांति, स्वस्थ व सुरक्षित जीवन के साथ-साथ समाजिक सद्भाव एवं सम्मानित जीवन जी सके इसलिए हम सब राष्ट्रवादी चिन्तित हो रहे हैं।

आभार महाकौशल संदेश