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भारत में गौवंश: विशेष महत्व

कसी राष्ट्र की संस्कृति, राष्ट्र में विकसित सांस्कृतिक मूल्य और उनके प्रतीक चिन्ह उस राष्ट्र के प्राण होते हैं और प्राण रहित शरीर की जो दशा होती है वही दशा सांस्कृतिक मूल्यों एवं जीवन मूल्यों के प्रतीक चिन्हों के नष्ट हो जाने पर होती है। भारतीय एवं हिन्दू संस्कृति के प्रमुख प्रतीक चिन्हों एवं तत्वों में ‘‘ग’’ अक्षर से बनने वाले प्रमुख तत्व है – गौ,  गंगा और गायत्री मंत्र।

धार्मिक महत्व – गौ और गौवंश जिसके अंतर्गत गाय और गौ-संतति (नर और मादा) आते हैं, भारतीय जीवन में अपना विशेष महत्व रखते हैं। हम गौ में मातृत्व का दर्शन करते हैं और वह उसी तरह पूज्य और सम्माननीय है जैसे माँ। संस्कृत ऋचाओं में गौ को अपत्य कहा गया है।

भारतीय मनीषा और भारतीय सांस्कृतिक जीवन के पुरोधा महामना मदनमोहन मालवीय ने गौ-दुग्ध को अमृत की संज्ञा दी है। एक बार इंग्लैण्ड की यात्रा में उनसे पूछा गया कि भारत में सबसे अच्छा दूध और सबसे अच्छा जल किसका है। महामना ने उत्तर दिया कि दूध तो सबसे बढ़िया भैंस का होता है और सबसे उत्तम जल यमुना-जल है। मालवीय जी से फिर प्रश्न किया गया कि यदि भैंस का दूध सर्वोत्तम दूध है और यमुना जल सर्वश्रेष्ठ जल है तो आप गौ- दुग्ध और गंगाजल को वरीयता क्यों देते हैं और भैंस का दूध और यमुना जल को क्यों नहीं पी लेते। उनका उत्तर था कि आपने दुग्ध और जल की बात की है, गौ दुग्ध और गंगा जल तो अमृत है।

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भारतीय जीवन में पूजन और सत्कर्मों में यहां तक कि पितरों और पिण्डदान करने में भी। गौ -दुग्ध का ही प्रयोग किया जाता है। भैंस का दूध पीने वाला भैंसा  ताकतवर, स्थूल तो होता है, परन्तु मन्द बुद्धि होता है गौ-दुग्ध पीने वाला छिड़ा या बैल समझदार होता है और भैंसा उतना क्रियाशील/ फुर्तीला नहीं होता जितना गौ-दुग्ध पीने वाला बछड़ा या बैल होता है।

गौ-दुग्ध, गौ-मूत्र, गोबर, गौ-घृत एवं गाय के दूध से बना हुआ दही-ये पंचगव्य माने जाते हैं जो पूजन और संस्कारों के समय उपयोग में लाए जाते हैं तथा नाड़ी का शोधन करते हैं। धार्मिक दृष्टि से, शिव के साथ नन्दी एवं कृष्ण के साथ गौ माता अपना ही महत्व रखते हैं।

औषधीय महत्व- गौ-दुग्ध और उससे उत्पन्न होने वाले पदार्थ एवं गौ-मूत्र और गोबर अपनी औषधीय महत्ता भी रखते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सर्वोत्तम खाद गोबर की खाद चाहे वह गोर गाय का हो या भैंस का, खेती के लिए अत्युत्तम खाद मानी गई है। भारतीय ही नहीं, रूसी वैज्ञानिकों द्वारा भी। रासायनिक यूरिया खाद का उपयोग जैसा अनुसंधानों से पता चलता है कि भूमि की उर्वरा शक्ति को कम करता है तथा पैदा हुए पदार्थ को अस्वास्थ्य कर और निःस्वाद बना देता है। उसमें स्वास्थ्यवर्धक तत्वों की भी कमी हो जाती है। गोबर की खाद एण्टी-बायोटिक होती है। भारतीय मनीषा का कहना है और अनुभव में भी आया है कि तुलसी का पौधा जहाँ पर होता है वहाँ दैवी बिजली गिरने पर निष्प्रभावी होती है।

आर्थिक महत्व- गाय का गोबर उपल बना कर ईंधन के रूप में भी प्रयुक्त होता है। आज के युग में गोबर पर अनेक अनुसंधान हो रहे हैं, औषधीय भी और रासायनिक भी। गोबर संयंत्र द्वारा बिजली एवं भोजन पकाने वाली गैस के उत्पादन का काम भी चल रहा है।

गौ वंशज यातायात के साधन के रूप में तथा खेती में जुताई व मड़ाई के कार्य में भी प्रयोग में लाए जाते हैं। ये बात ध्यान देने की है कि बूढ़े से बूढ़ा बैल या गाय थोड़ा से चारा लेकर भी उसको जीवन पर्यन्त गोबर व गौ-मूत्र देकर अदा करते रहते हैं।

आज खेती में प्रयोग होने वाले ट्रेक्टर अधिक खर्चीले साबित हो रहे हैं और ट्रैक्टर व ट्राली के प्रयोग में लाया जाना वार्ला इंधन हमें विदेशी दासता के बंधन में बांधे है तथा किसानों को कर्जदार बना देता है और किसान उजड़ जाता है।

राष्ट्रीय एवं राजनैतिक महत्व- भारत में गौ मातृत्व है केवल इसलिये नहीं कि वह दूध व अन्य उत्पाद प्रदान करती हैं। इसके राष्ट्रीय व राजनैतिक स्वरूप भी हैं जिसको विस्मृत करने के कारण ही विदेशियों ने हमारे राष्ट्र भारत को छिन्न-भिन्न करने का मौका पाया। भारत के बारे में विदेशियों द्वारा व्यक्ति किये गए मत भ्रम पैदा करने वाले रहे हैं। किसी भू-सम्पत्ति के वर्णन का एक निश्चित सिद्धान्त यह है कि यदि भू-सम्पत्ति का वर्णन क्षेत्रफल और सीमांकन के द्वारा किया गया है और दोनों वर्णनों में वैभिन्य है। (अन्य शब्दों में यदि सीमांकन द्वारा वर्णित भूखण्ड व उसका क्षेत्रफल द्वारा वर्णित रूप में अंतर है, अंतद्र्वंद्व है) तो उस दशा में सीमांकन द्वारा जो वर्णन और चित्रण है वह उस भू-क्षेत्र के वर्णन और  व चित्रण में महत्वपूर्ण माना जाएगा व उसे क्षेत्रफल द्वारा दिए गए वर्णन से अधिक प्रभावी माना जाएगा। यह भारत के ब्रिटिश कालीन और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्थित सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित भी किया जा चुका है। इस सिद्धान्त को दृष्टि में रखकर विभाजन पूर्व के हिन्दुस्थान के नक्शे को देखें तो इसके उत्तर में हिन्दुकुश पर्वत और दर्रा-ए-खैबर से लेकर पूर्व में खासी घाटी तक फैला विशाल हिमालय क्षेत्र है और दक्षिण में सिंधु या इन्दु सरोबर है। हिन्दु शब्द इस प्रकार हिन्दुस्थान, नामक भूखण्ड की, क्षेत्रीयता का नाम है। इस शब्द की व्युत्पत्ति के लिए उत्तर में हिमालय के शिखर से लेकर दक्षिण में इन्दु सरोवर या हिन्द महासागर तक फैला भू-भाग जिसके पश्चिम में बहती हुई विशाल नदियाँ पूर्व में ब्रह्मपुत्र  व इरावदी  है तथा मध्य में गंगा, यमुना, महानदी, गोमती गोदावरी,  कावेरी, तुगभद्रा आदि हैं। पर गौर करें। हिमालय के शिखर से हिमालय का प्रथम अक्षर ‘‘हि’’ लिया गया और इन्दु सरोवर का ‘‘न्दु’’ लिया गया। इस प्रकार हि$न्दु$स्थान= हिन्दुस्थान बना। ये हिन्दु शब्द अरबों या फारसियों की देन नहीं है ये उससे भी पुराना है और ये शब्द ग्रीक ग्रंथ जिन्दा अवेस्ता में भी मिलता है। जो ईसा से 5000-6000 वर्ष पहले ग्रीक सभ्यता का या इससे भी पुरान ग्रन्थहै। हिन्दू शब्द स्थान का द्योतक है। इस प्रकार राष्ट्रीय दृष्टिकोण से भी गौ हमारी माता है और ये हमारे राष्ट्रीय चिन्तन का प्रतीक हैं।

साभार- महाकौशल सन्देश