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राहुल की सड़क छाप भाषा कांग्रेस को ले डूबेगी…

“विनाश काले विपरीत बुद्धि “

राहुल गांधी को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गहरी नफरत हो- ये बात समझी जा सकती है,  लेकिन उनकी निन्दा या आलोचना के बहाने अत्यन्त घटिया शब्दों का उपयोग करते हुये, बिना शर्म-संकोच के सड़क छाप आदमी जैसी भाषा का उपयोग करने लगे-यह बात तो समझ के बाहर है।

आक्रोश सीमा से अधिक बढ़ जाये तो पागलपन के दौरे की सीमा तक जा सकता है। छुद्रता की सभी सीमायें पार हो गयीं हैं। इतना तो कांग्रेस का अदना सा कार्यकर्ता भी महसूस करने लगा है। गाली-गलौज की भाषा का उपयोग करने वालों की शोहरत बढ़ी हो ऐसा कोई उदाहरण तो सामने नहीं आया।

राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर लगाया आरोप, कहा- 'चीनी आक्रामकता के सामने भारतीय क्षेत्र को उन्हें सौंप दिया गया'

हाँ; इस मामले में राहुल गांधी की जग हंसाई जरूर शुरू हो गयी है। उनके चापलूस सहयोगी क्या समझ रहे हैं, क्या सलाह दे रहे हैं यह उनका विषय है। प्रधानमंत्री पर जब भी हमला करने की आतुरता दिखलायी गयी, उससे कांग्रेस और राहुल की ही भद्द पिटी है। अभी हाल में उनके द्वारा यह कहा गया कि चीन को देश का एक टुकड़ा देने वाला गद्दार है।

इसी सिलसिले में यह ध्यान दिलाया गया कि उनके नाना पं. जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में ही चीन ने भारत की 38000 किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया था। जिस शब्द का उपयोग विपक्ष द्वारा पं. नेहरू के बारे में नहीं कहा जा सका, वह राहुल के मुंस से निकल गया। इसी बयान में प्रधानमंत्री मोदी को कायर भी कहा था।

निशाना मोदीजी को बनाया गया था। प्रधानमंत्री के प्रति अभद्रतापूर्ण भाषा का उपयोग कर वे न केवल अपनी घृणापूर्ण मूर्खता का परिचय दे रहे हैं, बल्कि सेना के बहादुर सैनिकों को भी अपमानित कर रहे हैं जो अत्यंत कठिन हालातों में चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जबाव दे रहे हैं। इसीका ही ठोस परिणाम है कि चीनी सेना पीछे हटने तैयार हुयी है।

किसी भारतीय नेता का यह कुत्सित एवं जघन्य प्रयास अत्यन्त निन्दनीय ही माना जायेगा। भारतीय सेना ने अपने जिस शौर्य और पराक्रम के बल पर चीन को पीछे हटने को बाध्य किया है। यह साधारण काम नहीं है। भारत के सैन्य रूख ने चीन को विवश किया है। यह वही चीन है, जो अपने पड़ोसियों को रौब दिखाकर अपना हित साधता रहा है।

अड़ियल चीन इस बार भले ही झुकने को तेयार हो गया हो, पर उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। चीन ने हर पड़ोसी देश के साथ दोगला ब्यौहार किया है उसके विस्तारवादी मनसूबे से कौन परिचित नहीं है? सन् 1951 में भारत ने (जो गलती की थी) तिब्बत पर चीन द्वारा कब्जा किये जाने पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।

उसी का परिणाम है कि आज तक भारत उसकी सजा भुगतता आ रहा है। उस मूल के कारण वह तिब्बत को लांघता हुआ भारतीय भूमि पर हमला कर सका। आज राहुल गांधी इस डाल से उस डाल फुदक रहे हैं। क्या वह कांग्रेस सत्ताधारियों का निकम्मापन या कायरता नहीं थी? राहुल गांधी को न तो सामान्य-ज्ञान है न ही इतिहास की जानकारी, साधारण जानकारी भी नही।

ऐसा व्यक्ति साधारण अदने से पद पर भी सफल नहीं हो सकता। उन्हें इस बात की भी सामान्य जानकारी नहीं है कि सन् 1962 में चीन के साथ हुये युद्ध में भारत को भारी पराजय का सामना करना पड़ा था। उस समय चीन द्वारा कब्जा कर लिये गये इलाके का क्षेत्रफल 37,244 वर्ग किलोमीटर है।

यह इलाका लगभग कश्मीर घाटी के बराबर है। लगभग इतना ही क्षेत्र है- अक्साई चीन का। राहुल के सलाहकारों को बयान देने के पहले इतनी जानकारी से अवगत तो कराना ही चाहिये था। ताकि वे देश के सामने बालबुद्धि वाले अज्ञानी साबित होने से बच जाते।

महाकौशल संदेश