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हिन्दू साम्राज्य के अधिष्ठाता शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज के पुरूषार्थ एवं साहस देखने के बाद लोगों को भरोसा हो गया था कि हिन्दुराष्ट्र की सुरक्षा करना है, और मुस्लिम आक्रान्ताओं पर विजय हासिल करना है, तो उसका हल ढूँढकर हिन्दू समाज हिन्दूधर्म, संस्कृति राष्ट्र को प्रगति पथ पर अग्रसर कोई कर सकता है, तो वह एक ही व्यक्ति है, जिसका नाम है, शिवाजी।

उनके अद्भुत साहस को देखकर कवि भूषण जैसे मूर्धन्य विद्वान औरंगजेब की चाकरी को लात मार कर दक्षिण में पधारे और उन्होंने शिवाजी महाराज के सामने अपनी ‘शिवा वाहिनी’ जैसी ओजस्वी रचना का गायन कर उनके उत्साह में वृद्धि की। वे स्वयं देशभक्त थे। वे धन और मान के लालची भी नहीं थे।

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छत्रपति शिवाजी माँ तुलजा भवानी के भक्त थे। हिन्दू हृदय सम्राट पश्चिम में भारतीय गणराज्य के महानायक का जन्म पुणे के जुनार स्थित शिवनेरी दुर्ग में शाह जी भौंसले और माता जीजाबाई के घर हुआ था।

दादा कोंण देव के दिशा निर्देशन में शिवाजी ने युद्ध कौशल की तमाम कलायें अल्प काल में ही सीख ली थी। उन्हें गुरिल्ला या छापामार युद्ध शैली का आविष्कारक माना जाता है।

छत्रपति शिवाजी ने बीजापुर सल्तनत से 3000 सैनिकों को मौत के घाट उतार कर अपने सैनिकों में अपूर्व उत्साह का संचार किया था। बीजापुर सल्तनत की दुरावस्था देखकर औरंगजेब आशंकित हो उठा था। परिणाम स्वरूप उसने सन् 1659 में आदिलशाह ने अपने सबसे विश्वस्त और बहादुर समझे जाने वाले सेनापति अफजल खान को हमला करने के लिये भेजा। शिवाजी और अफजल खाँ 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के किले के पास एक झोपड़ी में मिले।

अफजल खाँ ने शिवाजी पर धोखे से वार किया, वे अपने कवच के कारण बच गये लेकिन तत्काल संभले और अपने वधनखे से प्रहार कर अफजल खाँ को मार डाला।

इस प्रकार औरंगजेब ने शिवाजी पर हमले के अनेक प्रयास किये लेकिन वह सफल नही हो सका। 6 जून 1674 का दिन स्मरणीय बन गया जब (ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी) को रायगढ़ स्थित किले में उनका राज्यारोहण समारोह पूरी भव्यता के साथ सम्पन्न किया गया। इस समय तक दक्षिण के सभी राज्य हिन्दू साम्राज्य के अन्तर्गत लाये जा चुके थे। इसमें खान देश, बाजीपुर, कारवार, कोल्कापुर, जाजिरा, रामनगर और बेलगाम आदि रियासतों के साथ- साथ बेल्लौर और जिंजी को भी अपने आधिपत्य में ले लिया गया था तंजावुर और मैसूर भी उनके आधीन हो चुके थे।

वे अत्यधिक प्रखर शासक सिद्ध हुये। वे हिन्दू धर्म व परम्परा के प्रबल पक्षधर थे। शिवाजी ने काफी कुशलता से अपनी सेना को सज्जित किया था। उनके साथ एक विशाल नौ सेना (छ।टल्) भी थी।

शिवाजी महाराज ने समाज में किये जाने परिवर्तन बहुत ही सोच समझ कर किये और साहस के साथ बेधड़क कदम उठाये। तलवार की नौंक पर जो इस्लामीकरण के प्रयास किये जा रहे थे, उन उन विदेशी मुसलमानों को चुन-चुन कर निकाल बाहर किया। अपने ही समाज को मुस्लिम हो चुके समाज के उस वर्ग को आत्मसात करने की प्रक्रिया भी अपनायी। इस बात का भी ध्यान आसपास के मुस्लिम हिन्दू प्रजा पर किसी प्रकार का अत्याचार न कर सकेें।

उन्होंने चिपलूण के पास स्थित परशुराम मंदिर का पुनर्निर्माण कराया और औरंगजेब को काशी विश्वेश्वर मंदिर तोड़े जाने के बाद कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुये पत्र भी लिखा।

मानवीय गुणों के आदर्श के रूप में छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का हर पहल हमारे लिये प्रेरणा स्त्रोत एवं मार्गदर्शक है। लोगों में हर्ष का वातावरण था कि हिन्दू समाज की पाँच सौ साल पुरानी समस्या हो गया था। शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक सम्पूर्ण हिन्दू राष्ट्र के लिये एक संदेश था कि यही विजय का मार्ग है, वह भी एक मात्र-इसी पर चलो। उनका मानना था कि भारत एक सनातन देश है, यह हिन्दुस्थान है और यहाँ पर अपना राज्य होना ही चाहिये। अपने धर्म का विकास होना ही चाहिये।

आभार महाकौशल सन्देश