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अमर शहीद स्वामी श्रद्धानन्द

श्री स्वामी जी महाराज का जन्म फाल्गुन बदी 13 संवत् 1913 विक्रमी  सन् 1856 ई. को तलवन (जालंधर) के एक प्रसिद्ध, सम्पन्न और ईश्वर-परायण खत्री घराने में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला नानकचन्द्र था। स्वामी जी का जन्म का नाम बृहस्पति था परन्तु पिता ने उनका नाम मुंशीराम रखा था जो सन्यास लेने तक प्रचलित रहा। स्वामी जी के 3 भाई और 2 बहनें थीं। स्वामी जी की विद्यालयीन शिक्षा-यज्ञोपवीत हो जाने के पश्चात् बनारस से आरम्भ हुई और लाहौर में वकालत की परीक्षा पास कर लेने  पर समाप्त हुई।

संवत् 1934 में जालंधर के प्रसिद्ध रईस और साहूकार राय सलिगराम की सुपुत्री शिव देवी जी के साथ उनका विवाह हुआ। श्री मुंशीरामजी की आयु 35 वर्ष की ही थी तभी संवत् 1948 में इस देवी का देहान्त हो गया।

उनके दो पुत्र श्री हरिशचन्द्र और श्री इन्द्र तथा 2 पुत्रियाँ श्रीमति वेद कुमारी और अमृतकला थीं। कुछ दिनों तक श्री मुंशीराम जी ने नायब तहसीलदारी की, किंतु आत्म सम्मान की रक्षार्थ यह नौकरी छोड़कर वकालत का स्वतंत्र व्यवसाय अपनाया। बरेली में महर्षि दयानन्द के व्याख्यान सुने और उनके दर्शन किये।

Swami Shraddhanand – Shuddhi Movement - VSK Telanganaसन् 1902 में गुरूकुल कांगड़ी की स्थापना की। सन् 1908 में सार्वदेशिक सभा की स्थापना कराई। आपने भारतीय आर्य कुमार महासम्मेलन और हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की। सन् 1910  में सन्यास ग्रहण किया।

सन् 1919 में राजनैतिक आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और दिल्ली के चाँदनी चैक में घंटाघर पर गोरखों की संगीनों के सामने अपनी छाती खोलकर अपनी निर्भीकता और अच्छे उद्देश्य के लिए मर-मिटने तक की भावना का अमिट  परिचय दिया।

4 अप्रैल 1919 को दिल्ली शाही जामा, मस्जिद के मंच से ‘‘त्वं हितः पिता वसो त्वं माता’’ वेद-मंत्र द्वारा ईश्वर के माता और पिता के स्वरूप का वर्णन किया और ओम् शांतिः शांतिः के साथ अपना भाषण समाप्त किया। सन् 1920 में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष का भार सम्भाला और अपना भाषण परम्परा के विरूद्ध हिन्दी में पढ़ा।

सन् 1921 में दलितोद्धार सभा की स्थापना की। स्वामी जी की प्रेरणा पर ही अछूतोद्धार को कांग्रेस के कार्यक्रम का अंग बनाया गया। सन् 1924 में दिल्ली में कन्या गुरूकुल देहरादून की स्थापना की। देहली से उर्दू तेज और हिन्दी अर्जुन निकाला। अखिल भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा की स्थापना करके उनको दृढ़ किया और सहस्त्रों मलकाने राजपूतों को मुसलमान से हिन्दु बनाया। हिन्दु संगठन के कार्य को बढ़ाने के उद्देश्य से हिन्दु महासभा में सम्मिलित हुए और उसके संचालकों से सैद्धांतिक मतभेद हुए तो वहां से बाहर निकल आए।

23 दिसम्बर सन् 1926 की सायंकाल 4 बजे जिस दिन निमोनियाँ की लम्बी बीमारी के बाद उन्होंने पथ्य लिया था, उसी दिन अब्दुल राशिद नामक एक मतांध यवन ने गोली मारकर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। अपना सुधार करके ही उन्होंने दूसरों के सुधार में योग दिया।