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आइए महाप्रयाण दिवस पर माँ भारती के   इस स्वातंत्र्यवीर को नमन करें…

“मातृभूमि तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की…”

आज स्वात्रत्य वीर सावरकर का महाप्रयाण दिवस है। सावरकर जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे जीनियस क्रांतिकारी और विचारक थे। ये वही महापुरुष थे जिन्होंने द वार आफ इंडियन इंडिपेंस: 1857.. लिखकर यह बताया कि यह भारत का प्रथम स्वात्रंत्य समर था, जिसे अँग्रेज़ीदा इतिहासकार आज भी सिपाही विद्रोह बताते हैं।

पुणे के प्रतिष्ठित फारग्युशन कालेज से ग्रैजुएट और लंदन से बार एट लाँ सावरकर जी इतिहासकार के साथ लेखक, कवि, नाटककार और विचारक थे। उन्होंने हिंदुत्व की थ्योरी देते हुए कहा कि भारत पुण्यभू पर जन्मा हर व्यक्ति हिंदू है चाहे वह किसी भी पंथ का अनुगामी हो। जिन दिनों महात्मा गांधी का राजनीति में प्रवेश हुआ।

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उन दिनों सावरकर का यश और प्रभाव चरमोत्कर्ष पर था। ये ऐसे महान क्रांतिकारी थे कि इनके बढ़ते वैश्विक प्रभाव से ब्रिटिश सरकार सशंकित हो उठी और इन्हें गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया तथा एक साथ दोहरे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सावरकर लोकमान्य तिलक के प्रिय होने के बावजूद लगातार कांग्रेस की राजनीतिक दुरभिसंधि के शिकार होते चले गए।

सावरकर अखंड भारत के पक्षधर और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आदि उद्घोषक थे। स्वतंत्रता संग्राम में वे पंद्रह वर्षों से ज्यादा समय तक कठोर कारावास में रहने वाले एकमात्र संग्रामी थे, फिर भी कांग्रेस इन पर अँग्रेजों से मिले होने का प्रचार करती रही

आजादी के बाद भी सावरकरजी जीवनपर्यंत देश की सरकार के निशाने पर रहे। आज भारतीय जनता पार्टी जिस मुकाम पर खड़ी है उसका वैचारिक बीजारोपण सावरकर जी ने ही किया। उन्हें भले ही सरकारों ने भारतरत्न का पात्र न समझा हो,

पर उनका व्यक्तित्व व कृतित्व इस कागजी सम्मान से बहुत ऊपर, बहुत विशाल है। सावरकर जी की हिंदू राष्ट्रवाद की थ्योरी ने हमेशा ही बौद्धिकों को मथा है… आज भी यही सबसे गंभीर विमर्श का विषय है।

हिन्दुत्व : हिंदू कौन है? (Hindutva: Who is a Hindu?)

-विनायक दामोदर सावरकर द्वारा 1923 में लिखा गया एक आदर्शवादी पर्चा है। यह पाठ शब्द हिन्दुत्व (संस्कृत का त्व प्रत्यय से बना, हिन्दू होने के गुण) के कुछ आरम्भिक उपयोगों में शामिल है। यह हिन्दू राष्ट्रवाद के कुछ समकालीन मूलभूत पाठों में शामिल है।

सावरकर ने यह पर्चा रत्नगिरि जेल में कैद के दौरान लिखा। इसे जेल से बाहर तस्करी करके ले जाया गया तथा सावरकर के समर्थकों द्वारा उनके छद्म नाम “महरत्ता” से प्रकाशित किया गया।सावरकर जो कि एक नास्तिक थे, हिन्दुत्व को एक सजातीय, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक पहचान मानते थे,

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सावरकर के अनुसार हिन्दू भारत वर्ष के देश भक्त वासी हैं जो कि भारत को अपनी पितृ भूमि एवं पुण्यभूमि मानते हैं। सावरकर सभी भारतीय धर्मों को शब्द “हिन्दुत्व” में शामिल करते हैं तथा “हिन्दू राष्ट्र” का अपना दृष्टि कोण पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले “अखण्ड भारत” के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

“the Aryans who settled in India at the dawn of history already formed a nation, now embodied in the Hindus…. Hindus are bound together not only by the tie of the love they bear to a common fatherland and by the common blood

That courses through their veins and keeps oTur hearts throbbing and our affection warm but also by the tie of the common homage we pay to our great civilisation, our Hindu culture.” (p. 108)