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आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी भारतीय अर्थव्यवस्था के निर्माण में स्वदेशी की भूमि

 

आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी भारतीय अर्थव्यवस्था के निर्माण में स्वदेशी की भूमि

प्रस्तावना – जिस प्रकार किसी व्यक्ति विशेष के जीवन में आत्मनिर्भरता एवं स्वावलम्बन का महत्व है, ठीक उसी प्रकार किसी देश के लिए भी आत्मनिर्भरता एवं स्वावलम्बन का सर्वाधिक महत्व है। 

 ” आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी भारत “से आशय है विदेशो कीबैसाखी छोड़ स्वयं के पैरों पर खड़ा भारत, अपनी आत्मा पर निर्भर भारत| भारत की आत्मा उसकी संस्कृति, सिध्दांत, ज्ञान व मूल आधारित व्यवस्थायें है, अर्थव्यवस्था जिसका की एक महत्वपूर्ण अंग  है।

आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी भारतीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकता क्यों =  आज पूरा विश्व एक भयावह कोरोना संकट  का सामना कर रहा है| भारत के लिए संघर्ष और अधिक महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि इस समय अन्य देश स्वयं को बचाने में लगे हैं एवं भारत इस वैश्विक आपदा को एक स्वर्णिम अवसर बनाने की दृष्टि से देख रहा है।

 

 

किसी भी राष्ट का वास्तविक विकास चाहे वह आर्थिक हो या सामाजिक इसे ज्ञात करने का पैमाना यह भी है कि वह सामाजिक व स्वास्थ्य संकट के समय वह किस अवस्था मे है| वह उस समय  उबरने का साहस रखता है अथवा किसी की ओर सहायता की निगाहों से ताकने में विश्वास रखता है।

इस प्रकार हम अपने राष्ट्र को आत्मनिर्भर व स्वावलम्बी बना कर अपनी  अर्थव्यवस्था को मजबूर बनाते हुए स्वदेश में उत्पादित वस्तुओं का  उत्पादन व उपयोग बड़ा कर सुदृढ़, मजबूत व विशुद्ध अर्थव्यवस्था का  मोडल विश्व पटल  पर प्रस्तुत कर सकते हैं।

दूसरा , वर्तमान परिस्थिति में चीन भारतीय सीमा पर युद्ध की स्थिति में गिरगिट का  पर्याय चाइना युद्ध के लिए कब शंखनाद कर दे यह भी ज्ञात नहीं है| इस स्थिति में चाइनीज वस्तुओं के स्थान में यदि स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन व उपयोग बढा़या जाये  तो न केवल हमारे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी वरन् चाइना को करारा  जवाब मिलेगा।

स्वदेश की भूमिका =  किसी भी देश की आर्थिक, शसामाजिक उन्नति सुखशांति व आंतरिक सुरक्षा उसके नागरिकों के सुखशांति परिश्रम कौशल पर निर्भर करती है एवम् इनके बिना संपूर्ण राष्ट्र की नैतिकता व अर्थव्यवस्था पंगु होकर अपनी विशिष्टता खो देती है।

आज हमे अपने राष्ट्र का पुनर्निर्माण करके वैभवशाली ऐतिहासिक अर्थव्यवस्था एवं परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए परिश्रम की आवश्यकता है तथा इसी परिश्रम को आत्मनिर्भर व स्वावलम्बी भारत की संज्ञा दी गई है परन्तु इस संज्ञा में स्वदेश की भूमिका सर्वोपरि है । अत: जन जन के लिए स्वदेश के मूल की महत्वता को समझना परम आवश्यक है।

हम रोजमर्रा की छोटी छोटी वस्तुओं के लिए चाइना पर निर्भर है, जो वस्तुएँ हमारे देश में सहज रूप से उपलब्ध है।हम चीनी वस्तुओं के सस्ते होने पर  एसे वशीभूत हुए कि दीप, लक्ष्मी, गणेश मूर्तियां तक चाइनीज खरीदने लगे और दीपावली खराब  हुई हमारे कुम्हार भाई की।

इस प्रकार लाखों लोग बेरोजगार हुए| हमारे देश  का बाजार  विश्व का सबसे बड़ा बाजार है अब यदि  135 करोड़ भारतवासी  सूई से लेकर कार तक स्वदेशी  उपयोग में लाये , तो न केवल हमारा राष्ट्र आर्थिक रूप से मजबूत होगा वरन् बेरोजगारी, गरीब जैसी विकट समस्याओं से भी मुक्त हो सकेगा।

   इस संकल्प के द्वारा अनेक स्तरों के उत्थान की महती आवश्यक है| जैसे कृषि उत्पाद क्षेत्रों को बढ़ावा देना, ग्रामीण स्तर पर रोजगार, उन्मूलन सृजनात्मक साधनों को उपलब्ध कराना।

एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की इस कड़ी में नागरिकों का दर्शन व चिंतन  उचित दिशा में हो।अत: स्वदेशी का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि राष्ट्र के नागरिकों के स्तर की आवश्यकता और निजी विशेषताओं को ध्यान में रख कर ही राष्ट्र निर्माण किया जाता है।

जिसे देश के लाखो श्रमिकों के श्रम से सम्मानित किया जाता है तथा उपयोगकर्ताओं की आत्मीयता जिससे बधी हुए  हैं| इस प्रकार संपूर्ण लाभांश राष्ट्र के विकास में जाता है।

 इस प्रकार स्वदेश को सुदृढ़ बनाने का संकल्प जनसाधारण तक पहुँचाकर, स्वदेशी को अपना कर, भारतीय अर्थव्यवस्था का  ” रोल मॉडल ” इस प्रकार मजबूत व सशक्त करना है कि हमारी सर्वोच्च संस्कृति से न केवल भारतवर्ष लाभान्वित हो वरन् संपूर्ण विश्व इसकी दिव्य खुशबू से सुगंधित हो उठे।

आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी अर्थव्यवस्था के निर्माण में चुनौती = हमारे समक्ष अनेक चुनौतिया है| परन्तु सबसे बड़ी चुन्नौती यह हो सकती है कि विदेशी वस्तुओं की अपेक्षा स्वदेशी वस्तुओं का मूल्य कुछ अधिक हो परन्तु राष्ट्रहित के लिए हमारे दिल में देशभक्ति की इतनी मात्रा होनी चाहिए कि हम अपना मुनाफा कम करके व कुछ अधिक पैसे खर्च करके राष्ट्र शत्रुओं को जवाब से सके।

उपसंहार  = अंत में हम सब का दायित्व यही है कि  आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिध्द करने के लिए भाषा, व्यवहार को स्वदेशी बनाते हुए देश की विशाल अर्थव्यवस्था के स्वदेशी करण में अपना सहयोग प्रदान करें।

क्योंकि आत्मनिर्भर भारत प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण एवं समाज व राष्ट्र विकास का आधार है| स्वदेशी  को अपना भारत राष्ट्र के उत्थान का एकमात्र उज्जवल मार्ग है।

राधिका नाथ,                                                                  (युवा लेखिका)