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एक संस्कृति, एक संहिता…..!

तेईस नवम्बर, 1948 को विस्तृत चर्चा के बाद संविधान में अनुच्छेद 44 जोड़ा गया था। इसके तहत सरकार को निर्देश दिया गया कि वह देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करे। संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि अलग-अलग पंथों के लिए अलग-अलग कानूनों के स्थान पर सभी भारतीयों के लिए पंथ, जाति, भाषा, क्षेत्र और लिंग निरपेक्ष एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होनी चाहिए।

अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाई गई भारतीय दंड संहिता, 1861 में  बनाये गये पुलिस एक्ट, 1872 में एविडेंस एक्ट और 1908 में बनाये गये सिविल प्रोसिजर कोड सहित सैकड़ों अंग्रेजी कानून सभी भारतीय नागरिकों पर समान रूप से लागू है।

पुर्तगालियों द्वारा 1867 में बनाया गया पुर्तगाल सिविल कोड गोवा के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू है। लेकिन विस्तृत चर्चा के बाद बनाए गए अनुच्छेद 44 (समान नागरिक संहिता) को लागू करने के लिए कभी भी गम्भीर प्रयास नहीं किया गया। आज तक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ का एक मसौदा भी नहीं बनाया गया। परिणामस्वरूप इससे होने वाले लाभों के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है।

समान नागरिक संहिता को आने से अब मोदी भी नहीं रोक सकते - Now no one can stop implementation of Uniform Civil Code

समस्याएं अनेक- भारतीय नागरिक संहिता के लाभों की बात तो अलग, इसके लागू न होने से जो समस्याएं सामने हैं, पहले उनकी बात।

  1. मुस्लिम कानून में बहुविवाह (एक पति-चार पत्नी) की छूट है लेकिन अन्य पंथों में ‘एक पति-एक पत्नी’ का कठोर नियम लागू है। बांझपन या नपुंसकता जैसा उचित कारण होने पर भी दूसरा विवाह अपराध है और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में इसके लिए 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है। जेल से बचने के लिए कई लोग इस्लाम को अपना लेते हैं। भारतीय मुसलमान चार निकाह कर सकता है, जबकि पाकिस्तान में पहली बीबी की इजाजत के बिना शौहर दूसरा निकाह नहीं कर सकता।

  2. मुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की उम्र निर्धारित नहीं है और माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है। इसीलिए 11-12 वर्ष की उम्र में भी लड़कियों का निकाह किया जाता है जबकि अन्य पंथों में लड़कियों की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों के विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका है कि 20 वर्ष से पहले लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होती और 20 वर्ष से पहले गर्भ धारण करना जच्चा-बच्चा दोनों के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है। इसलिए लड़का-लड़की के विवाह की न्यूनतम उम्र 21 साल करना बहुत जरूरी है।

  3. तीन तलाक अवैध होने के बावजूद तलाक-ए-हसन एवं तलाक-ए-अहसन आज भी मान्य है और इनमें भी तलाक का आधार बताने की बाध्यता नही है। केवल 3 महीने प्रतीक्षा करनी होती है। लेकिन अन्य मतों में केवल न्यायालय के माध्यम से ही विवाद- विच्छेद किया जा सकता है। मुसलमानों में प्रचलित तलाक की न्यायपालिका के प्रति जवाबदेही नहीं होने के कारण मुस्लिम औरतों को हमेशा भय के वातावरण में रहना पड़ता है। तुर्की जैसे मुस्लिम बहुल देश में भी किसी तरह का मौखिक तलाक मान्य नही है। हिन्दू, ईसाई, पारसी दम्पत्ति आपसी सहमति से भी मौखिक विवाह- विच्छेद की सुविधा से वंचित हैं।

  4. मुस्लिम कानून में मौखिक वसीयत एवं दान मान्य है, लेकिन अन्य मतों में केवल पंजीकृत वसीयत एवं दान ही मान्य है। मुस्लिम कानून में एक तिहाई से अधिक सम्पत्ति की वसीयत नहीं की जा सकती जबकि अन्य मतों में समस्त सम्पत्ति की वसीयत की जा सकती है।

  5. मुस्लिम कानून में उत्तराधिकार की व्यवस्था अत्यधिक जटिल है, पैतृक सम्पत्ति में पुत्र एवं पुत्रियों के मध्य अत्यधिक भेदभाव है, अन्य मतों में भी विवाहोपरान्त अर्जित सम्पत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित हैं और उत्तराधिकार के कानून जटिल हैं। विवाह के बाद पुत्रियों का पैतृक सम्पत्ति में अधिकार सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है और विवाहोपरान्त अर्जित सम्पत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित हैं।

  6. मुस्लिम बच्चे गोद नहीं ले सकता और अन्य मतों में भी पुरूष प्रधानता के साथ बच्चा गोद लेने की व्यवस्था लागू है।

उपरोक्त सभी विषय मानव अधिकार से सम्बन्धित हैं जिनका न तो किसी पंथ या मजहब से संबंध हैं और न इन्हें पांथिक-मजहबी व्यवहार कहा जा सकता है। फिर भी आजादी के 73 साल बाद भी पंथ-मजहब के नाम पर भेदभाव जारी है। हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के माध्यम से ‘भारतीय नागरिक संहिता’ की कल्पना की थी ताकि सबको समान अधिकार मिलें और देश की एकता और अखंडता मजबूत हो। लेकिन वोट बैंक की राजनीति के कारण भारतीय नागरिक संहिता सबके लिए लागू हो सकती है तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ क्यों नहीं लागू हो सकती ?

एक नहीं, अनेक लाभ – नागरिक संहिता लागू करने के अनेक लाभ होंगे, जैसे-

  1. देश और समाज को सैकड़ों जटिल कानूनों से मुक्ति मिलेगी।

  2. वर्तमान समय में अलग-अलग ब्रिटिशकालीन कानूनों से सबके मन में हीन भावना पैदा होती है। सभी भारतीय नागरिकों लिए एक ‘भारतीय नगरिक संहिता’ लागू होने से सबको हीन भावना से मुक्ति मिलेगी।

  3. ‘एक पति-एक पत्नी’ की अवधारणा सभी भारतीयों पर समान रूप से लागू होगी और बांझपन या नपुंसकता जैसे अपवाद का लाभ सभी भारतीयों को, चाहे वह पुरूष हो या महिला, हिन्दू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई, एक समान रूप से मिलेगा।

  4. न्यायालय के माध्यम से विवाह-विच्छेद करने का एक सामान्य नियम सबके लिए लागू होगा। विशेष परिस्थितियों में मौखिक तरीके से विवाह विच्छेद करने की अनुमति भी सभी नागरिकों को होगी, चाहे वह पुरूष हो या महिला, हिन्दू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई।

  5.  पैतृक सम्पत्ति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को एक समान अधिकार प्राप्त होगा और सम्पत्ति को लेकर मत, जाति, क्षेत्र और लिंग आधारित विसंगतियाँ समाप्त होंगी, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई।

  6.  विवाह-विच्छेद की स्थिति में विवाहोपरान्त अर्जित सम्पत्ति में पति-पत्नी को समान अधिकार होगा, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, पारसी या ईसाई।

लेख़क :- अश्विनी उपाध्याय