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कश्मीर के टिप्पणीकार को लगी फटकार…. कटाक्ष

श्रीनगर से मात्र 35 मील दूर थे कबीले , तब 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर हुए, ठीक वैसे जैसे अन्य रियासतों के हुए थे. मगर नेहरू जी ने राजा से अजीब शर्त रख दी, की हालत सामान्य होने पर आप जनमत करवा लें.

क्यूँ , क्या राजा बारात में आए थे, जो द्वार चार के बाद प्रत्येक बाराती से पूछते की भैया सफ़र में कोई परेशानी तो नहीं हुई ? फिर मान भी लो , नेहरू जी ने अब्दुल्ला जी से करीबी के चलते, बोल भी दिया था, तो ये दायित्व सरदार पटेल जी को सौंप देते, उन्होंने जैसे जूनागढ़ का विषय सुलझाया था इसे भी सुलझा लेते.

मगर तब अपनी ही सेना के प्रस्ताव , जिन्होंने क़बीलाई क्षेत्रों से अपनी भूमि वापस लेने की अनुमति माँगी, उसे अनसुना करते हुए, एक संप्रभु देश होते हुए भी, 1 जनवरी 1948 को शांति पूर्ण तरीक़े से सुलझाने अनुच्छेद 35 के तहत चले गए संयुक्त राष्ट्र चले गए थे.

कश्मीर: भूमि अधिग्रहण के लिए आर्मी, सीआरपीएफ, बीएसएफ को अब एनओसी की ज़रूरत नहीं

ये तो वैसा हुआ की भैंस अपनी लाठी अपनी मगर दुहेंगे तीसरे से पूछ के होना क्या था : युद्ध विराम – संधि – जनमत संग्रह…

5 दिसम्बर 1949 को संयुक्त राष्ट्र ने माना की अवैध क़ब्ज़ा किया गया है. इसी बीच नेहरू जी एक पक्षीय युद्ध विराम की पेशकश की, क्यूँ भाई ? और तो और उनके क़ब्ज़ाए हुए क्षेत्र को वैध मानते हुए, अंतरराष्ट्रीय सीमा स्वीकार करने का प्रस्ताव भी दिया. मगर पाकिस्तानी चचा को तो पूरा कश्मीर चाहिए था, सो उन्होंने अमेरिका से द्विपक्षीय सैनिक समझौता कर लिया.

भारत विभाजन में भारतीय की सम्पत्ति 8 बिलियन थी, जिसे भारत से आए महाजिरों में बाँटना था, मगर उसने इस सम्पत्ति का प्रयोग अपनी सेना के हथियारों में लगा दिया, और 23 सितंबर 1955 को अमेरिकी सैन्य गुट सेंटौ का सदस्य बन गया.

इसके उलट नेहरू जी हिंदी चीनी भाई भाई का खेल खेल रहे थे, और नेहरू जी “गुट निरपेक्ष“ का खेल खेल रहे थे, तब हमारी सेनाएँ उन्हें चीन के विस्तार वादी रवैए से निपटने आधुनिक हथियारों के लिए समझाती रहीं, मगर नेहरू जी ने अपने “पंचशील सिद्धांत“ से बची खुची आशा पर आबे जम जम छिड़क दिया.

फिर 1962 का युद्ध, हमारे हाथों अकसाई लद्दाख चला गया, और 1963 में चीन के साथ संधि करते हुए 5180 वर्ग मील का सामरिक हिस्सा जिसे पाकिस्तान ने अवैध क़ब्ज़ा किया था, चीन को सौंप दिया, और हमारे मध्य एशिया (अफगनिस्तान) से जुड़ सकने की आख़िरी उम्मीद जाती रही, नेहरू जी और ऐसे कितने अहसान हम पर करते, और हम भारतीय और उनके अहसानों तले दब जाते, 1964 में रहस्यमयी बीमारी की चपेट से नेहरू जी का इंतेकाल हो गया.

इतनी भूमिका इसीलिए बांधी की आपको इसमें कहीं “इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत“ नज़र आ जाए कहीं, जिस पर एक टिप्पणी कार कश्मीरी परिप्रेक्ष्य में धारा 370 पर पुनरावलोकन का प्रस्ताव दे रहे थे, सार्वजनिक “छीछा लेदर“ उपरांत पहले तो ये उनकी निजी राय है कहकर, फिर सार्वजनिक मंचों पर आधिकारिक लाइन“ पर चलने की फटकार लगा दी गई है.

बहरहाल , 18 मई 1974 को पाकिस्तानी प्रधान मंत्री भुट्टो ने कहा था “भले ही हमें घास-पात खानी पड़े लेकिन पाकिस्तान परमाणु बम का निर्माण करेगा”, और चीन के सहयोग से उसने बना भी लिए हैं. तो हासिले जिरह ये है की जब आपको भारत की सामरिक परिस्थितियों का ज्ञान ना हो तो, कृपा करते हुए  “कश्मीरियत” पर ज्ञान का अन्यथा प्रकाश ना डालें,

कश्मीर (अर्थात् पाक अनाधिकृति क़ब्ज़े सहित) हमारा है, और इसे अब्दुल्लाओं, मुफ़्तियों या फ़ारूखों की बपौती क़तई ना समझा जाए. और श्लेष मात्र भी संशय हो तो सदैव कश्मीर पर चमत्कारी मंत्र का 108 बार उच्चारण करें दूध माँगोगे खीर देंगे, कश्मीर माँगोगे चीर देंगे.

लेख़क :- लक्ष्मण राज सिंह मरकाम