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काँग्रेस दिनों दिन जनता से दूरी बना रही है – डाॅ. किशन कछवाहा

भारत तेरे टुकड़े होंगे जेएनयू में लगे नारे, संसद पर हुये हमले के समय जब ‘अफजल हम शर्मिन्दा हैं,’ तेरे कातिल जिन्दा हैं, के नारे से न्यायापालिका को ललकारा गया, किसानों की वेशभूषा में लाल किले पर तिरंगे को अपमानित करने खालिस्तानी देखे गये- तब इस 134 साल पुरनी काँग्रेस की क्या प्रतिक्रिया रही है- इसे देश की जनता और देश के प्रति आस्था और प्रेम रखने वालों के दिल पर क्या और कैसा आघात पहुँचा होगा?

इस प्रकार की काँग्रेस की रीति-नीति के परिपेक्ष्य में जनता यदि दूरी बना ले तो इसमें अस्वाभाविक क्या है? माना तो यही जाता है कि काँग्रेस ने स्वयं इस देश की आस्था, लोकतांत्रिक परम्पराओं और राष्ट्रपे्रम से दूरी बनायी है। राजनैतिक दल का विरोध करना तो समझा जा सकता है, लेकिन उसके लिये राष्ट्र का ही विरोध किया जाने लगे तब उसे क्या मानना चाहिये?

प्रधानमंत्री देश का होता है किसी एक दल का नहीं। उसकी सुरक्षा की बड़ी-जिम्मेदारी है। पंजाब में जिस तरह की घटनाक्रम इस मामले में घटा, वह अत्यंत निन्दनीय और खतरनाक था और शर्मनाक भी। पंजाब में काँग्रेस की सरकार है, वह जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। प्रथम दृष्टया यह मामला आपराधिक भी है, और षाड़यांत्रिक भी। उसके संकेत भयावह हैं, उनकी रैली को बाधित करने की कई दिन पहले से ही खुले आम घोषणायें की जा रही थीं।

Amid COVID Spike, Congress, SP Cancel Political Rallies; BJP, AAP, Others Yet to Take a Call

प्रधानमंत्री की रैली में शामिल नहीं होने के लिये लोगों को डराया-धमकाया जा रहा था। रैली के दिन रैली में शामिल होने जा रहे लोगों को बलपूर्वक रोकने के घृणित प्रयास भी हुये थे। इस बात की जानकारी यदि पंजाब सरकार और उसके अफसरों को न हो ऐसा कैसे सम्भव है? ऐसा अनियंत्रित माहौल देखते हुये भी प्रदर्शनकारियों को एक तो इकट्ठा होने दिया गया और दूसरा उन्हें हटाया क्यों नहीं? यह सब एक षड़यंत्र के तहत नहीं था तो ऐसा सब कुछ होने क्यों दिया गया? क्या देश के प्रधानमंत्री का पंजाब प्रदेश से कुछ लेना देना नहीं है? क्या पंजाब प्रदेश देश का हिस्सा नहींहै? कानून अपनी पहल करे-ऐसी देश की आम जनता की अपेक्षा है।

देश की जनता का मानना है कि इस प्रकरण में एक प्रकार से देश के प्रधानमंत्री का ही अपमान हुआ है, यह देश का अपमान है। राजनीतिक विचारधारा के मतभेद का यह अर्थ तो नहीं देश के किसी राज्य की सरकार प्रधानमंत्री की सुरक्षा से ऐसा घिनौना खिलवाड़ करे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा में बरती गयी कोताही से लोकतंत्र को ही आहत करने का पाप किया गया है, वह राजनैतिक विरोध की मंशा से? यह कृत्य जनाक्रोश पैदा करने वाला तो है ही, उतना ही घृणित भी है। राजनैतिक विद्वेष के चलते काँग्रेस ने मोदी की जान को खतरे में डाल दिया। जिस ढंग से कांग्रेस और उसके नेता इस गलती पर अपना बचाव कर रहे हैं, वही साबित करता है, कि उनकी कथनी और करनी में बड़ा अंतर है।

सुखद परिवर्तन: गहरी सीख
झुंझनु राजस्थान का एक जिला है, जो जयपुर से 160 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यहाँ लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर गंगियासर ग्राम में एक अत्यन्त लोकप्रिय रायमाता का मंदिर है, जहाँ पर दूर-दूर से श्रृद्धालुगणों के आगमन का ताँता लगा रहता है।

झुंझनु के मुस्लिम सम्प्रदाय से संबंध रखने वाले जिलाधिकारी ने अपना रौष दिखाते हुये मंदिर परिसर से ही रास्ता निकालने के लिये मंदिर की तारबंदी तोड़ दी। मंदिर के महन्त ने इसका विरोध किया और इस विरोध में हिन्दू लोग भी वहाँ एकत्रित होने लगे।

काँग्रेस की इस क्षेत्र की विधायक रीटा चैधरी जो कि जाट समुदाय से आती हैं, ने भी हिन्दुओं और साधुओं से कहा कि यदि वे शान्ति चाहते हैं तो इस रास्ते के लिय सहमत हो जायें। ऐसा कहे जाने पर जाट समाज ने अपना विरोध तो दिखाया है और विधायक महोदया से कहा कि हमारे वोटों के बिना अगले बार कैसे जीतोगी? आसपास के थानों से पुलिस बुला ली गयी। लेकिन महन्त जी के आव्हान पर आसपास के सन्तमहात्मा भी भारी संख्या में एकत्रित हो गये। साथ ही हिन्दु समाज के लोग भी इकट्ठे हो गये।

अंततः पुलिस तारबंदी कर वापिस लौट गयी प्रशासन को अपना रूख बदलना पड़ा। यह जीत हिन्दू एकता की थी। भले ही राजस्थान में कांग्रेस की सरकार हो लेकिन कांग्रेसी विधायक को साम्प्रदायिक सद्भाव का सच्चा अर्थ, जाट, राजपूत एवं अन्य हिन्दू समाज के लोगों ने एकत्रित होकर समझा दिया।

इस छोटी सी घटना के बारे में सभी को समझ लेना आवश्यक है कि हम विरोध का रूख बनाये रखना भी सीखें-यदि ऐसा करना प्रारम्भ कर दिया जाय तो आम तौर पर तुष्टिकरण के प्रयास को असफल बनाया जा सकता है।

काफी लम्बे समय से हिन्दू-धर्माचार्यों ने अपने आप को मंदिर-मठों तक अपने को सीमित कर रखा था लेकिन बदली परिस्थितियों ने अपना मौन तोड़ने को बाध्य कर दिया है। इस तथ्य को समझा जाना चाहिये। यह घटना एक सुखद परिवर्तन लेकर आयी है, साथ ही इसी में एक सीख भी निहित है।

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डाॅ. किशन कछवाहा