देश में नए कृषि कानूनों को लेकर काफी बहस है। किसान आंदोलन को कुछ राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए भुनाने के पूरे प्रयास में हैं। इनमें से कई वो हैं जो एक लंबे समय से मोदी विरोध के लिए नए नए हथकंडे अपना रहे हैं, लेकिन लगातार असफल हो रहे हैं।
स्थिति यह है कि आजादी के बाद जब आज किसानों के हित के लिए एक बेहतर कानून लाया गया है तो कई विपक्षी अब इस हितकारी किसान कानून का दुष्प्रचार कर रहे हैं। आजादी के बाद इस देश की खेती किसानी के सामने कई संकट रहे, सवाल यह है कि जो लोग आज कृषि कानून को लेकर किसानों को भड़का रहे हैं, क्या इन्होंने कभी भारतीय कृषि के सामने खड़े संकटों के निदान के लिए कोई प्रयास किया?
एक समय वो भी था जब हिंदुस्तान अनाज की कमी से जूझा। तब अमेरिकन कृषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलाग और भारतीय कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामिनाथन के निर्देशन में देश में हरित क्रान्ति का उत्पादन बढ़ा गया। यह 1960 के दशक की बात है।
उसके बाद इस देश में सालों साल राज करने वाली सरकारें आई, एक नई हरित क्रान्ति एवरग्रीन रिव्योलूशन की मांग देश के कृषि वैज्ञानिक लगातार करते रहे, लेकिन नई हरित क्रान्ति यानी एवरग्रीन रिव्योलूशन पर सालों साल राज करने वालों ने कोई योजना नहीं बनाई। क्यों? देश के कृषि विशेषज्ञ लगातार कहते रहे कि देश के पूर्वी भाग को भी एक हरित क्रान्ति की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा हो न पाया।
सालों साल इस देश पर राज करने वालों ने नई हरित क्रान्ति के इस विचार पर क्यों ध्यान नही दिया? कृषि कानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरने से पहले ये राजनीतिक दल अगर इस प्रश्न का जवाब देते तो ज्यादा ठीक रहता।
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत की 69 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है और इस जनसंख्या का मुख्य व्यवसाय अभी भी कृषि है। आजादी के समय देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 55 प्रतिशत था, लेकिन आज जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान घटकर मात्र लगभग 15 प्रतिशत रहा गया है।
किसानों को भड़काने वाले जिन्होंने इस देश में वर्षों तक सरकारें चलाई, क्या वो आज इसका जवाब देंगे कि जिस देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या खेती से अपना गुजारा करती है, उस खेती का जीडीपी में योगदान इतना क्यों गिरा?
जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान गिरने का एक बहुत बड़ा कारण यह रहा कि देश के किसानों ने खेती का कार्य छोड़ दिया, क्योंकि खेती में उन्हें कोई फायदा ही नहीं हुआ। बिचैलिए दलालों से ठगे जाने पर अंत में देश की बड़ी जनसंख्या ने खेती करना छोड़ दिया। ये लोग शहरों में दिहाड़ी कार्य करने चले गए। गांवों से पलायन की समस्या पैदा हुई। अपने घर गांव से प्रेम करने वाला किसान अपना घर गांव छोड़ने को मजबूर हो गया। क्यों हुआ ऐसा? सालों इस देश की सत्ता चलाने वाले क्या इसका जवाब देंगे?
बढ़ती जनसंख्या के कारण आज कृषि जोतें छोटी हो गई हैं। आंकड़ों के अनुसार देश में कुछ सक्रिय जोतों में सीमांत जोतें (एक हेक्टेयर से कम) ही ज्यादा हैं। यानी कि एक हेक्टेयर से कम के कृषि भूखण्ड सबसे ज्यादा हैं। वर्ष 2000 से 2016 के बीच सीमान्त जोतें 62 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 68 प्रतिशत तक हो गई हैं। मतलब साफ है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण एक किसान के हिस्से में अब छोटे कृषि भूखण्ड ही आ रहे हैं। ऐसे में यह एक बड़ी चुनौती लगातार बना रहा कि इन छोटे कृषि भूखण्ड से कैसे लाभ देने वाली कृषि की जाए।
लगातार छोटी होती जोतों पर फायदे की खेती करने के लिए किसानों को कभी प्रशिक्षित नहीं किया गया। देश में सालों साल सत्ताधारी दलों ने कभी इस पर समस्या पर विचार क्यों नही किया? इस समस्या की मुख्य जड़ देश की बढ़ती जनसंख्या रहा। जनसंख्या नियंत्रण के लिए क्यों कुछ नहीं किया? अब यदि जनसंख्या नियंत्रण कानून की कोई बात भी करे तो यही लोग विरोध का झण्डा लेकर सबसे आगे खड़े हो जाते हैं।
जिस तरीके से अब छोटी जोतों में कृषि ज्यादा होने लगी है तो ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि ऐसे किसानों को अपनी फसल अपनी इच्छानुसार बेचने की आजादी मिले। दर-असल किसानों की बाजार तक सीधी पहुंच न हो पाने से फायदा बिचैलिए उठाने लगते हैं। इससे किसानों को तो नुकसान होता ही है साथ ही मंहगाई भी बढ़ती है। नए कृषि कानून में किसानों को अपनी फसल स्वेच्छा से कहीं भी बेचने की आजादी दी गई है, लेकिन किसानों को भड़काने वाले इस किसान हितैषी प्रावधान का भी दुष्प्रचार कर रहे हैं। यकीन मानिए ऐसे लोग किसानों के हितैषी कभी नहीं हो सकते।
आंकड़ों के अनुसार कृषि में महिला कृषकों की संख्या बढ़ रही है। महिलाओं के द्वारा उपयोग में लाई जा रही कार्यशील जोतों का हिस्सा वर्ष 2005-06 में लगभग 11 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2015-16 में लगभग 14 प्रतिशत हो गया है। विडम्बना यह रही कि आजादी के बाद इतना सरकारें आई, लेकिन महिलाओं की स्थिति दयनीय ही बनी रही। विशेषकर ग्रामीण महिलाएं जो चिन्ताजनक स्थिति में रही। रात में वो चूल्हे पर खाना पकाती रहीं, दिन भर खेतों में कार्य भी करती रही और साथ-साथ रात के उस चूल्हे के लिए लकड़ियों की व्यवस्था भी करती रही।
स्थिति यह रही कि सालों साल सत्ता में रही सरकारें गांवों में खाना पकाने के गैस चूल्हे तक न पहुंचा पाये। आज स्थिति तब कुछ सुधर पाई जब वर्तमान केन्द्र सरकार ने उज्जवला योजना के सहारे गांव-गांव में गैस चूल्हा पहुंचाया। किसानों को भड़काने वालों ने अपने सत्ता काल में इन महिला किसानों के बारे में क्यों नही विचार किया था?
आंकड़ों के अनुसार भारत में 89 प्रशित भूजल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। वर्तमान में भूजल को लेकर सबसे बड़ी चिन्ता भूजल के स्तर का लगातार नीचे जाना है। पंजाब जैसे राज्य में भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण भूजल का स्तर काफी नीचे जा चुका है, जो काफी चिन्ताजनक स्थिति है।
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि भूजल का स्तर ऐसे ही नीचे जाता रहा तो 2050 तक भारत में कृषि के लिए सिंचाई की बड़ी समस्या हो जाएगी। दरअसल एंसा इसलिए हुआ क्योंकि पंजाब जैसे राज्य में किसान सिर्फ गंेहूँ, धान के ज्यादा उत्पादन पर ध्यान देने लगे। किसानों को भड़काने के बजाय अगर उन्हें जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाता तो ज्यादा अच्छा होता। कृषि कानूनों का दुष्प्रचार करने के बजाय यदि किसानों को खेती की रोटेशन तकनीकी के लिए प्रेरित किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता। ताकि पंजाब जैसे राजय में ग्राउण्ड वाटर के नीचे जाने की समस्या का कुछ निदान हो पाता।
कृषि क्षेत्र में उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग ने आज खेतों की उर्वरकता को बहुत हानि पहुंचा दी है। देखने में आया है कि यूरिया के ज्यादा उपयोग ने कई राज्यों में खेतों को बंजर बना दिया। साथ ही यूरिया के अति उपयोग से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचने की बात भी सामने आई है। खासकर इससे नाइट्रोजन चक्र के प्रभावित होने का खतरा रहता है, जो एक बड़ा पर्यावरणीय नुकसान है। कृषि विशेषज्ञ बनकर जो लोग आज नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वो इस समस्या के निदान के लिए यदि कुछ सुझाव लेकर आगे आते तो ज्यादा अच्छा होता।
वर्तमान केन्द्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। निसंदेह यह नए कृषि कानूनों के सहारे ही होगा। किसानों को भड़काने वाले भड़काने का यह काम छोड़ यदि किसानों को तकनीकी ज्ञान देने, खेती के साथ लाभदायक पशुपालन का ज्ञान देने, उन्नत बीजों का प्रयोग, खाद एवं उर्वरकों का उचित प्रयोग, सिंचाई की उचित जानकारी, जैस जागरूकता कार्यक्रम चलाते तो ज्यादा अच्छा होता। दुष्प्रचार करने वाले सदैव याद रखें कि देश का सम्मानित अन्नदाता है किसान। उसे भड़काना, गुमराह करना उसके साथ छल करने जैसा है।