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किसान आंदोलन की ओट में देशद्रोही शक्तियों की हुड़दंग

प्रत्येक युग में इस धरती पर देव- दानव -मानव का अस्तित्व रहा है। फिर वह सतयुग का देवासुर संग्राम हो, त्रेता युग का राम रावण युद्ध या द्वापर युग में कंस -दुर्योधन का आसुरी साम्राज्य, सभी युगों में आसुरी शक्तियों ने तांडव अवस्य किया है और तब राष्ट्र की सज्जन शक्ति -देव शक्तियों ने संगठित होकर इन आसुरी मायावी शक्तियों को परास्त- पराभूत भी किया था।

पुराणों में वर्णन आता है कि एक समय आसुरी शक्तियां इतनी प्रबल हो गई थी कि उसका प्रतिरोध नहीं हो पा रहा था, अतः देवताओं ने अपनी- अपनी शक्तियों के अंश प्रदान करके एक संगठित महाशक्ति का निर्माण किया। जिसे दुर्गाशक्ति के रूप में जाना जाता है। उस दुर्गा शक्ति ने शुंम्भ -निशुंभ ,मधु – कैटभ जैसे असुरों का संहार किया।

ऐसी ही सज्जन शक्ति को संगठित, जागृत करने का कार्य त्रेतायुग में भगवान श्री रामचंद्र जी ने भी किया व अंततः धर्म युद्ध हुआ। आसुरि माया रावण इत्यादि का संहार हुआ व धर्म की स्थापना हुई और सज्जन शक्ति की स्थापना रामराज्य के रूप में साकार हुई। द्वापर युग में भी कंस- दुर्योधन ,कालयवन के रूप में असुरता ने मानवता को निगलने की कोशिश की तब युगावतार श्रीकृष्ण ने पांडवों- ग्वाल वालों को निमित्त बनाकर दुष्ट प्रवृत्तियों का संहार किया, धर्म की स्थापना की व सज्जनों का कल्याण किया।

प्रत्येक युग में इतिहास ने अपने को दोहराया है व सत्य-धर्म की विजय हुई है ।

पिछले कुछ वर्षों से भारत व विश्व में जो घटनाक्रम चल रहा है। वह इतिहास की पुनरावृति ही है चाहे वह चीनी असुर की मनमानी, दुस्साहस ,अतिक्रमण हो, अमेरिकी व्हाइट हाउस का तांडव ,पाक की नापाक करतूतें हो ,ब्रिटेन का उपनिवेशवाद पोप की निरंकुशता द्वारा मध्यकाल में हुए नरसंहार हो, वैश्विक इस्लामी जिहादी घटनाक्रम ,ईसाई मतांतरण, सीरिया में जिहादी उन्मादी नरसंहार ,यूएसए में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर वाली घटना, फ्रांस में जिहादी नरसंहार हो, वर्मा (म्यांमार) जिहादी नरसंहार हो, ये सभी आसुरि शक्तियों का तांडव, अराजकता का प्रदर्शन ही तो है।

 भारतीय परिपेक्ष में 1984 का सिख नरसंहार ,19 जनवरी 1990 कश्मीरी नरसंहार, 2002 गुजरात का गोधरा कांड ,असम के दंगे ,जम्मू के चिट्टी चूड़ा गांव में सिख नरसंहार, उरी सेक्टर में सैनिकों पर हमला, जम्मू में सेना के काफिले पर हमला, शाहीन बाग दिल्ली का धरना, दिसंबर 2019 के जिहादियों द्वारा किए दिल्ली दंगे अथवा जनवरी 2021 में छद्म किसान आंदोलन यह सभी नरसंहार, हत्याकांड, हुड़दंग एक प्रायोजित षड्यंत्र है।

यह देशद्रोही शक्तियों की सोची समझी साजिश है। इसी श्रंखला की कड़ी दिल्ली का छद्म किसान आंदोलन भी है। जिसमें खालिस्तानी,पाकिस्तानी ,बामी ,कामी, खांग्रेस ,सपा ,बसपा ,जेहादी इत्यादि देश विरोधी शक्तियों का संयुक्त मोर्चा है । एक राष्ट्रीयशक्ति, विकासवाद ,सज्जन शक्ति राष्ट्रीय अस्मिता के खिलाफ घिनौना षड्यंत्र है। जिसे विदेशी ताकतों से सहयोग ,संरक्षण व फंडिंग प्राप्त हो रही है।

भारत के महाशक्ति ,वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने- प्रकट होने के पूर्वानुमान से यह अमानवीय विदेशी शक्तियां पाक, चीन इत्यादि बौखलाए ही नहीं भयभीत भी हैं । अतः भारतवर्ष को आंतरिक परेशानियों में फसाए रखना चाहते हैं ताकि भारत आगे न बढ़ सके व उनके नापाक मंसूबे पूरे हो सकें।

दूसरा कारण भारत में वर्तमान कुशल नेतृत्व को बदनाम करना, रोड़े खड़े करना व राष्ट्र/ सरकार को अस्थिर करना, प्रगति अवरुद करना भी है। विगत 7 वर्षों से देश ने सर्वतोमुखी प्रगति की जो वैश्विक गति पकड़ी है, उससे यह राष्ट्र-द्रोही शक्तियां, ताकते भयभीत होकर छल -छद्म पूर्ण सभी तरीके से विकासवाद, प्रगतिवाद ,मानवतावाद ,राष्ट्रवाद को परास्त करने की असफल कोशिश करने में जुट पड़ी हैं। चाहे वह टुकड़े-टुकड़े गैंग हो, अवार्ड वापसी गैंग, अर्बन नक्सली इत्यादि के रूप में दिखाई दे रहे हैं।

किसान तो बहाना है ,असल में मोदी को हराना है। वर्तमान राष्ट्रीय नेतृत्व के द्वारा राष्ट्रीय व वैश्विक , आन्तरिक- वाह्य सुधार कार्य किए जा रहे हैं। इनसे भारतवर्ष की दुनिया में जो जय जय कार हो रही है । उससे यह अराष्ट्रीय शक्तियां कुंठा व भय से ऐसे त्राहिमाम कर रहीं हैं यानी बिलबिला उठी हैं।

वास्तव में यह भड़ास कृषि कानून कि नहीं, यह भड़ास है-एनआरसी ,सीएए , धारा 370 समाप्ति, ट्रिपल तलाक खत्म ,देश के जागते स्वाभिमान की, अयोध्या मे श्रीराम मंदिर निर्माण व लुटे हुए कश्मीर में बदलाव की है।

भारत अब जाग रहा है। देश का समाज जो विगत 65 वर्षों से मानसिक गुलामी अथवा बौद्धिक परावलम्वन से जूझ रहा था, वह अब ऊवर रहा है। प्रकाश की किरण फूट चुकी है ।अंधेरे का अंत नजदीक है। आसुरी शक्तियां अपना अंत नजदीक जानकर अपना आखिरी दांव चल रही हैं।

एक कहावत है कि- ”चीटी के पर निकल आए हैं।” बस यही स्थिति इस समय देश व विश्व की आसुरि शक्तियों की अकुलाहट से परिलक्षित होती है। दिया अब बुझने को है, इसलिए लप-लपा रहा है ।सृष्टि का अटल सत्य यही है कि हमेशा से ही प्रकाश ने ही अंधकार को निगला है।

अतः प्रत्येक युग के अंत में एक महासंग्राम सत्य व असत्य की शक्तियों के बीच अवश्य भी होता चला आ रहा है । बस यही बेला हम सभी के बीच अब उपस्थित हो चुकी है। और हमें यह निर्णय करना है कि हम धर्म के साथ हैं अथवा अधर्म के, हम स्वार्थ के साथ हैं अथवा परमार्थ के, हमें लोकहित सर्वोपरि है अथवा क्षणिक स्वार्थ ,हमें किस का चयन करना है?

इस विषम मेला में यह ऐतिहासिक घड़ी है। आज सारी मानव जाति परिवर्तन के महान छड़ों से गुजर रही है। अतः निर्णय विवेकपूर्ण, दूरदर्शिता ,नैतिकता ,धर्म के पलड़े में ही होना चाहिए । हमें यह विचार करना चाहिए कि हमारे समर्थन -सहयोग से कौन विजयी होने वाला है युधिष्ठिर या दुर्योधन? सृजन अथवा विनाश? प्रकाश अथवा अंधकार? धर्म या अधर्म? यही निरणायक, परीक्षा की घड़ी है। अतः ‘ वसुधैव कुटुंबकम’ को ध्यान में रखकर ,अपने युगधर्म ,कर्तव्य को ठीक तरीके से पहचान कर निर्णय लें। अपना कर्तव्य निभाएं ,एक भारत -श्रेष्ठ भारत का निर्माण करें।

ऐसा कहा जाता है कि- जहां रोग पैदा होता है वहीं उसकी औषधि भी पैदा होती है। अतः हम ही समाधान का हिस्सा हैं और यदि ऐसा नहीं है, तब हम ही समस्या हैं ।अर्थात आज का हमारा कर्तव्य कल के हमारे भाग्य का निर्धारण करेगा। यह जानकर व मानकर अपनी उचित रीति-नीति व कर्तव्य का निर्धारण करें।

समस्याएं वैश्विक स्तर की हैं अतः कोई भी बच नहीं सकेगा। उदहारण के लिये जब किसी गांव में जब आग लगती है तब सभी को उसे बुझाने हेतु दौड़ना पड़ता है। यही स्थिति कुछ आज भी विनिर्मित हुई है देश व विश्व में। अत:कोई यदि यह सोचता है कि- हमें क्या करना है ,यह तो उनका कार्य है। तो वह निरा मूर्ख ही है, क्योंकि बचेगा वह भी नहीं। किसी न किसी स्तर पर प्रभावित वह भी होगा ही।

जब तक बुद्धि आएगी, कुछ एहसास होगा तब तक देर हो चुकी होगी फिर समाधान के उपाय कारगर साबित नहीं होंगे। अतः समाज के बुद्धिजीवी ,प्रबुद्ध नागरिकों, जागृत आत्माओं ,राष्ट्र भक्तों, सृजन शिल्पीयों को आगे आकर समाज का नेतृत्व करते हुए, समाज को संगठित करते हुए ,युग की समस्याओं के पूर्ण समाधान हेतु तत्पर ही नहीं प्राण -प्रण से अपनी महती भूमिका का संपादन करना चाहिए। यही अपेक्षित है ,यही राष्ट्रधर्म -युगधर्म भी है। यही आपातकालीन धर्म कर्तव्य है। जिसे पूरा करने की आज आवश्यकता आन पड़ी है।

यही इतिहास पुरुष बनने का समय है अतः इसे पहचाने व शोर्य- पराक्रम के साथ, वीर योद्धा बनकर धर्म कर्तव्य का निर्वहन करें। तभी अपना भारतवर्ष दुनिया का सिरमौर -विस्वगुरु बनेगा।

-डॉ. नितिन सहारिया
(प्रांत संगठन सचिव, इतिहास संकलन समिति महाकौशल)