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कोरोना संकट (बीमारी) का आध्यात्मिक इलाज

”नर सेवा ही नारायण सेवा है।”

दुनिया में मात्र भारतवर्ष ही ऐसा राष्ट है जो अति प्राचीन, सनातन, अद्वितीय, अनुपम व अध्यात्मिक है।

भारत वर्ष के पूर्वजों, ऋषि-मुनियों के लिए ब्रह्मांड में ऐसा कुछ भी नहीं रहा जो दुर्लभ, दुसाध्य, अहस्तगत रहा हो। इस ब्रह्मांड के प्रत्येक रहस्य, ज्ञान-विज्ञान-दर्शन, विधाओं, विभूतियों, शक्तियों को भारत ने अर्जित/ प्राप्त किया था।

यहां तो अर्जुन स शरीर स्वर्ग जाने व एक बाण में गंगा प्रकट करने की सामर्थ्य रखता है। अकेले महर्षि परशुराम ने संपूर्ण पृथ्वी को असुरों से विहीन कर दिया था। महर्षि विश्वामित्र ने एक नवीन सृस्टि का निर्माण आरंभ कर दिया था। भारत के हिमालय में ऐसी दिव्य औषधियां हैं जो मृत व्यक्ति में प्राणों का संचार कर सकती हैं।

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देवात्मा हिमालय में ऐसी-ऐसी विभूतियां ऋषि सत्ताएं हैं जिनके लिए यह संपूर्ण पृथ्वी हथेली पर रखे आंवले से अधिक कुछ नहीं है। यहां के अगस्त मुनि ने संपूर्ण समुद्र को ही पी लिया था। यहां तो लोहे को सोना बनाने वाला पारस है। भारत में तो ‘राम’ के नाम से पत्थर भी पानी में तैर जाते हैं। भारत का एक विवेकानंद सारी दुनिया को हिलाने की सामर्थ रखता है। भारत की आध्यात्मिक शक्ति/दैवीशक्ति की सामर्थ्य अतुल्य, अपरिमित व अजेय है। जिसके आगे कुछ भी दुर्लभ, दुसाध्य नहीं है। भारतवर्ष (देवभूमि/पुण्यभूमि) की महिमा अपरंपार है।

आज जब कोरोना बीमारी से रोते-बिलखते, असहाय, परेशान से समाज को देखता हूं तो बड़ा कष्ट होता है व आश्चर्य भी। क्योंकि हमने अपने को पहचाना ही नहीं है। हमें अपनी आध्यात्मिक शक्ति की विस्मृति जो हो गई है। इसलिए कि हम वाहामुखी हो चले हैं। जबकि हम भारतीय अंतर्मुखी हुआ करते थे। हम पश्चिमी ज्ञान में इलाज ढूंढ रहे हैं। हमें अपनी ऋषियों की आध्यात्मिक विरासत/विधाओं का विस्मरण हो गया है। हम कुछ ज्यादा ही भौतिकतावादी, क्षणिकबादी जो हो गए हैं।

अब इलाज/समाधान के दो प्रकार (विकल्प) हैं।
(01) भौतिक उपाय
(02) आध्यात्मिक उपाय

भौतिक उपायों विकल्पों की सामर्थ्य नगण्य है, क्षणिक है किंतु दूसरा विकल्प अध्यात्म् की सामर्थय अतुल्य, अद्वितीय, अपरिमित है। जिसकी क्षमता (सामर्थ) भौतिक के मुकाबले लाखों-करोड़ों गुना अधिक है। भारतवर्ष के प्राचीन बन्ड्मय को उठाकर देख लीजिए जब भी पृथ्वी पर महासंकट आया है। तब उसका समाधान आध्यात्मिक शक्ति से ही संभव हुआ था अतः अब हम पुन: समाधान के सूत्र भारतीय संस्कृति की ऋषि परंपरा में ढूंढे यानी Back to vedas / ज्ञान की ओर लौटे/ आध्यात्मिक विरासत की ओर लौटें, आध्यात्मिक समाधान ही वास्तविक, स्थाई, कारगर ,समाधान का विकल्प है।

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प्राचीन काल में चाहे स्वर्ग का सिंहासन की कामना हो , रिद्धि-सिद्धि, शक्तियों, दिव्यास्त्र, वरदान, पुत्र इत्यादि सभी मनोकामनाओ कि पूर्ति के लिए ‘यज्ञ’ किया करते थे क्योंकि यह सृष्टि यज्ञ से ही चल रही है। ‘यगौ वै विष्णु,/यागौ वै ब्रह्मा ‘यज्ञ ही विष्णु और ब्रह्मा है। यज्ञ में ब्रह्मास्त्र की शक्ति/ सामर्थ्य है। यज्ञ से ही इंद्रजीत (मेघनाथ) वह दिव्य रथ प्राप्त करने वाला था जो अजेय था। महाराज दशरथ ने भी पुत्र कामना हेतु श्रृंगी ऋषि से पुत्रेषठी यज्ञ कराया था। राजा बलि स्वर्ग के इंद्रासन की कामना से 100 अश्मिमेध यज्ञ ही तो कर रहा था। ‘यज्ञ’ की सामर्थ अपरिमित, अतुल्य, अनुपम , अगर्न्य है। अतः ‘देव-दानव-मानव’ सभी ने इतिहास में /युगों में यज्ञ का आश्रय लिया था।

जड़ी-बूटियों, औषधियों को जब घी में मिलाकर श्रद्धा पूर्वक दैवी शक्तियों को जब आहुति (हविष्य) दी जाती हैं तब देवी शक्तियां अनुदान-वरदान, कृपा बरसाने को आतुर हो जाती हैं । व मानवता को निहाल कर देती हैं। प्राचीन काल में दुर्भिक्ष, महामारी, दैवी प्रकोप आसन संकटों को दूर करने हेतु यज्ञ ही किए जाते थे ।वर्तमान की कोरोना वायरस रुपी वैश्विक संकट यह’ दैवी प्रकोप’ ही है अतः अब भगवान की ही शरण हम सब को बचा सकते हैं।

( करणीय कार्य )

(01) प्रतिदिन भारतवर्ष के एक करोड़ घरों में यज्ञ/हवन होने लगे, सभी लोग भारतीय दिनचर्या से जीवन जीने लगे ।
(02)प्रतिदिन सुबह-शाम 30-30 मिनट गायत्री महामंत्र व महामृत्युंजय मंत्र का जप सभी करें।
(03) सप्ताह में एक बार परिवार के सभी सदस्य पंचगव्य का एक चम्मच पान करें ‘पंचगव्य प्राश्ंम महापातक नश्नं’ देसी गौ के पांचो पदार्थ घी, दूध, दही ,मूत्र ,गोबर( रस) समान मात्रा में मिलाकर बनाएं ।
(04) गोमूत्र, तुलसी पत्र, गिलोय का प्रतिदिन सभी सेवन करें।
(05) घरों में प्रतिदिन/साप्ताहिक रामायण व श्रीमद्भागवत गीता का पाठ हो ।
(06) प्रत्येक व्यक्ति ‘तरुरोपण यज्ञ’ करें अर्थात 5-5 वृक्ष लगाएं।
(07) भारतीय संस्कृति के पांच आधार (गौ, गंगा, गीता, गायत्री, गुरु) को जीवन में स्थान देवें।
(08) गौ के साथ अत्याचार बन्द हो। गोपालन विराट रूप में ह। ‘गौ सर्वदेव मयी’ गौ सेवा के सभी देवताओं की पूजा हो जाती है।
(09) जीवन में धर्म, परोपकार, दया, करुणा स्थान देवें अपनी जीवन रीति नीति उज्जवल बना लें।
(10) प्रतिदिन ‘दुर्गा दैवाया कव्च्ज़्म’ / ‘राम रक्षा स्त्रोत’ / ‘गायत्री चालीसा’ / ‘बजरंग बाण’ इत्यादि का श्रधापूर्वक पाठ करें।

नोट– पिछले दिनों मानव जाति ने गौ, स्त्री, साधु (ब्राह्मणों) मानव जाति के साथ भारी पापाचार, अत्याचार विभिन्न रूपों में किया है। उसी के परिणाम स्वरूप यह प्रकृति प्रकोप/ दैवी प्रकोप है। आसन्न संकट उत्पन्न हुआ है, भले ही भौतिक रूप से जिम्मेदार कोई भी हो किंतु होता सब कुछ’ ईस कृपा’ से ही है अतः आध्यात्मिक समाधान “गायत्री मंत्र/ महामृत्युंजय मंत्र का जप व घरों में नित्य यज्ञ” ही वह ब्रह्मास्त्र है ।

“ऐही सम विजय उपाय न दूजा” ही सबसे बड़ा व अंतिम विकल्प है समाधान का। कृपया इसे आज से ही करें व अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं।

जय जय सियाराम !!
वंदे भारत मातरम !!

लेखक:- डॉ. नितिन सहारिया