Trending Now

चंदेरी में बाबर का विध्वंस, 1500 क्षत्राणियों का जौहर

आक्रान्ता ने निर्दोष स्त्री पुरूषों को पकड़ कर बनाया गुलाम

भारतीय इतिहास के कुछ पन्ने रक्त से रंजित हैं। घटनाओं का ऐसा विवरण है जो रोंगटे खड़े करता है। आक्रांताओं के अहंकार ने लाशों के ढेर लगाये और अट्टास किया। इतिहास के पन्नों में ऐसा ही एक विवरण मध्यप्रदेश में चंदेरी का मिलता है। यह वही चंदेरी है जो आज पूरे संसार में अपनी साड़ियों की शिल्प कला के लिये प्रसिद्ध है। उन दिनों यह वस्त्र कला निर्माण और व्यवसाय का बड़ा केन्द्र था।

चंदेरी का यह विध्वंश मुगल हमलावर बाबर ने किया था। बाबर ने चंदेरी में केवल विध्वंस ही नहीं किया था बल्कि जिन सैनिकों और नागरिकों को जान बख्शी का आश्वासन देकर समर्पण कराया था उन सब बंदियों के शीश काटकर ऊँचा पहाड़ बनाया और उस पहाड़ पर अपनी जीत का झंडा फहराया था।

निर्दोष स्त्री पुरूषों को पकड़ कर गुलाम बनाया, अत्याचार किये और कुछ को बेचने के लिये खुरासान में गुलामों के बाजार में बेचने के लिये भेजा था और इसी विध्वंस के बीच महरानी मणिमाला सहित 1500 क्षत्राणियों ने चंदेरी में जौहर किया। क्षत्राणियों के इस जौहर की स्मृतियाँ स्मारक के रूप में आज भी मौजूद हैं। इस स्मारक पर पहुँचते ही सिरहन पैदा होती हैं।

Chanderi In Madhya Pradesh: A Guide To This Beautiful Town

यह युद्ध वर्ष 1528 जनवरी के अंतिम सप्ताह में हुआ था। गद्दार द्वारा चंदेरी दरबाजा खोलने की तिथि 28 और 29 जनवरी की रात है। रात भर वीरों का खून बहा, स्त्रियों की चिता जली, इसलिये कुछ इतिहासकारों ने विध्वंस की तिथि 28 जनवरी मानी और कुछ ने 29 जनवरी 1528।

चंदेरी मध्यप्रदेश के ग्वालियर संभाग और अशोकनगर जिले के अंतर्गत एक ऐतिहासिक नगर है। उन दिनों चंदेरी पर प्रतिहार वंशीय शासक मेदनीराय का शासन था। तब चंदेरी अंतराष्ट्रीय रेशम के व्यापार का बड़ा केन्द्र था। मेदिनी राय न केवल चितौड़ के शासक राणा साँगा की कमान में बाबर से युद्ध करने के लिये खानवा के मैदान में अपनी सेना लेकर गये थे बल्कि राणा साँगा उन्हे अपना पुत्र भी मानते थे। दुर्योग से खानवा के युद्ध में राणाजी की पराजय हुई।

इस युद्ध में राणा जी की हार के दो कारण रहे एक तो गद्दारी और दूसरा बाबर ने अपने तोपखाने के आगे गायों को बाँध कर खड़ा कर दिया था। गायों को सामने देखकर राणा का तोपखाना रुक गया। बाबर का तोपखाना चालू हो गया और युद्ध का नक्शा ही बदल गया। राणा जी के घायल होकर निकल जाने के बाद बाबर ने अपनी जीत का जश्न मनाया और उन सभी राजपूत राजाओं के दमन का सिलसिला शुरू किया जो राणा साँगा की कमान में बाबर से युद्ध करने खानवा पहुँचे थे। इनमें मेदिनीराय का नाम प्रमुख था।

खानवा युद्ध के बाद मेदिनी राय चंदेरी लौट आये और राणा जी के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करने लगे। चंदेरी अभियान के लिये बाबर 9 दिसम्बर 1527 को सीकरी से रवाना हुआ। इसकी खबर मेदिनी राय को लग लग गयी थी। उन्होंने सहायता के लिये मालवा के अन्य राजाओं को संदेश भेजे और आवश्यक सामग्री एकत्र कर स्वयं को किले में सुरक्षित कर लिया। चंदेरी का यह किला पहाड़ी पर बना है। यह देश के अति सुरक्षित किलों में से एक माना जाता है।

बाबर और उसकी फौज रास्ते भर लूट हत्याएँ और बलात्कार करती 20 जनवरी 1528 को चंदेरी पहुँची। बाबर ने रामनगर तालाब के पास अपना कैंप लगाया और दो संदेश वाहक शेख गुरेन और अरयास पठान को राजा मेदिनी राय के पास भेजा। संदेश वाहकों ने तीन संदेश दिये एक मुगलों की आधीनता स्वीकार करो और मुगलों के सूबेदार बनों दूसरा चंदेरी का किला खाली करदो इसके बदले कोई दूसरा किला ले लो और तीसरा अपनी दोनों बेटियों की शादी मुगल शहजादों से कर दो।

अंत में स्वाभिमानी मेदनी राय ने शर्तों को अस्वीकार कर दिया। मेदिनी राय को लगता था कि बाबर की फौज पहाड़ी न चढ़ पायेगी। लेकिन बाबर के पास तोपखाना और बारूद का पर्याप्त भंडार था। उसने एक रात में पहाड़ी को काटकर रास्ता बना लिया था और किले के दरवाजे तक आ गया।

दूसरी तरफ राजपूतों के पास न बारूद था न तोपखाना। उनके पास तीर कमान, तलवार, भाला या आग के गोलों के अतिरिक्त कुछ नहीं था।

वह 26 जनवरी 1528 की तिथि थी जब समर्पण के लिये बाबर का अंतिम संदेश राजा मेदिनीराय को मिला। संदेश पाकर राजा ने रणभेरी बजाने का आदेश दिया।

27 जनवरी को किले का द्वार खोलकर युद्ध हुआ पर तोपखाने के सामने राजपूत सेना टिक न सकी। युद्ध एक प्रहर भी न चल पाया। चूंकि बाहर तगडी घेराबंदी थी। राजा घायल हो गये उन्हे अचेत अवस्था में किले के भीतर लाकर द्वार बंद कर दिया गया। 28 जनवरी को दिन भर बाबर का तोपखाना चंदेरी किले दीवार पर गरजा रहा। दीवार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी थी।

Chanderi In Madhya Pradesh: A Guide To This Beautiful Town

महारानी मणिमाला को भविष्य का अंदाजा हो गया और वे किले के भीतर विराजे महाशिव के मंदिर में चली गई। उनके साथ राज परिवार और अन्य क्षत्राणियां थी जिनकी संख्या 1500,से अधिक लिखी है। सभी सती स्त्रियों ने पहले शिव पूजन किया फिर स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया।

जिस समय ये देवियाँ जौहर कर रहीं थी तभी किसी विश्वासघाती ने किले का दरवाजा खोल दिया। मुगलों की फौज भीतर आ गयी। किले के भीतर यूँ भी मातम जैसा माहौल था। जिसके हाथ में जो आया उससे मुकाबला करने लगा। पर यह युद्ध नाम मात्र का रहा। रात भर मारकाट हुई। यह मारकाट एक तरफा थी। हमलावरों ने किले के भीतर किसी पुरूष को जीवित न छोड़ा। स्त्रियों को बंदी बना लिया गया।

सबेरे सारी लाशे एकत्र की गयीं। उनके के शीश काटे गये काटे गये सिरों का ढेर लगाया गया और उस पर मुगलों का ध्वज फहराया गया। बाबर चंदेरी में पन्द्रह दिन रहा। किले में खजाना खोजा गया। आसपास जहाँ तक बन पड़ा लूटपाट की गयी। लाशों के ढेर किले और नगर में ही नहीं गांवो में भी लगे। मकानों को ध्वस्त किया गया। यातनायें देकर छुपा धन वसूला गया। और अय्यूब खान को चंदेरी का सूबेदार बनाकर बाबर लौट गया।

लेखक:- रमेश शर्मा