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जनजाति योद्धा ‘तिलका माँझी’…

जनजाति योद्धा ‘तिलका माँझी’…

भारत के औपनिवेशिक युद्धों के इतिहास में पहला क्रांतिकारी होने का श्रेय जबरा पहाड़िया तिलका माँझी को जाता है, जिन्होंने राजमहल (झारखंड) की पहाड़ियों में ब्रितानी हुकूमत से लोहा लिया था। तिलका ने अंग्रेजों द्वारा हथियाए गये धन को छुड़ाकर गरीबों की मदद की। उन्‍होंने भारतीय गुरिल्ला युद्ध-पद्धति को अपनाकर अंग्रेजों के छक्‍के छुड़ा दिए।

तिलका माँझी ने अंग्रेजी शासन की बर्बरता और जघन्य कार्यों के विरूद्ध कड़ा प्रतिकार किया और एक लंबी लड़ाई छेड़ी थी। उन्‍होंने प्रख्‍यात संथाल आंदोलन का नेतृत्व भी किया।
वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तिलका माँझी का नाम देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और बलिदानी के रूप में लिया जाता है।

तिलका को अंग्रेज सरकार ने 1785 में गिरफ्तार कर फाँसी दे दी। फाँसी के संदर्भ में कुछ स्‍थानों पर 1784 का भी उल्‍लेख मिलता है।

प्रारंभिक जीवन व अंग्रेजी अत्याचार…

तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानपुर के तिलकपुर गाँव में एक संथाल जनजाति परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुन्दरा मुर्मू था। अपनी साहसिकता के कारण तिलका माँझी जबरा पहाड़िया के नाम से भी जाने जाते हैं।

अंग्रेजों की अत्‍याचारी नीतियों ने तिलका को किशोरावस्‍था में ही झकझोरकर रख दिया। निर्धन वनवासियों की भूमि, खेती, जंगलों व वृक्षों पर अंग्रेज शासक अपना अधिकार किए हुए थे।

प्रथम संग्राम
वनवासियों और अंग्रेजों के बीच हो रहे संघर्ष ने तिलका को क्रांतिकारी बनाया। एक दिन तिलका ने शनैचर (बनैचारी जोर) नाम के स्थान से अंग्रेजों के विरूद्ध संग्राम का आह्वान कर दिया।

माँझी के नेतृत्व में वनवासी लोग कदम, भागलपुर, सुल्तानगंज तथा दूर-दूर तक जंगली क्षेत्रों की तरफ बढ़ रहे थे। वे राजमहल की भूमि पर अंग्रेज सैनिकों से टक्कर ले रहे थे। इस समय अंग्रेज सरकार (1767) इनके द्वारा संचालित चुहाड़ प्रतिकार के कारण परेशान हुई थी।

तिलका माँझी के नेतृत्‍व में वनवासी लोग अंग्रेजों पर भारी पड़ने लगे तब स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अंग्रेजों ने क्लीव लैंड नामक अधिकारी को सुपरिटेंडेंट नियुक्त कर राजमहल भेजा।

क्लीव लैंड अपनी सेना और पुलिस के साथ राजमहल की पहाडि़यों में तैनात हो गया।

संथाल आंदोलन व क्लीव लैंड की हत्या
1781-84 के बीच योद्धा तिलका माँझी के नेतृत्‍व में हुए अनेक प्रकार के संग्रामों के दौरान उन्‍होंने अंग्रेजों को ललकारते हुए कहा था कि –
‘यह भूमि धरती माता है, हमारी माता है, इस पर हम किसी को लगान नहीं देंगे।’

जंगल, तराई तथा गंगा, ब्राम्ही आदि नदियों की घाटियों में तिलका माँझी अपनी छोटी सी स्‍वदेशी हथियारों वाली सेना लेकर अंग्रेजों के विरूद्ध लगातार संघर्ष करते हुए मुंगेर, भागलपुर, संथाल व परगना के पर्वतीय इलाकों में छिप-छिपकर लड़ाई करते रहे।

राजमहल का सुपरिटेंडेंट क्लीव लैंड एवं आयर कूट की अंग्रेजी सेना के साथ वीर तिलका माँझी की कई स्थानों पर जमकर संघर्ष हुआ।

अंग्रेजों से संग्राम करते-करते भागलपुर की ओर बढ़ गए।

13 जनवरी, 1784 को उनका सामना क्‍लीव लैंड से हुआ, जिसे उन्‍होंने अपने तीरों से मार गिराया। क्लीव लैंड की मृत्यु का समाचार पाकर अंग्रेज सरकार में भय का वातावरण छा गया।

अंग्रेजी हुकूमत ने हर हाल में तिलका को ढूँढकर फाँसी देने का निर्णय लिया।

गिरफ्तारी
एक रात तिलका माँझी और उनके क्रांतिकारी साथी जब एक पारंपरिक उत्सव में नृत्‍य-गान कर रहे थे, तभी अचानक एक गद्दार सरदार जाउदाह ने आक्रमण कर दिया। इस अचानक हुए आक्रमण से तिलका माँझी तो बच गये, किन्तु अनेक देश भक्तवीर वीरगति को प्राप्‍त हुए। कुछ को बन्दी बना लिया गया।

तिलका माँझी ने वहां से भागकर सुल्तानगंज के पर्वतीय अंचल में शरण ली। भागलपुर से लेकर सुल्तानगंज व उसके आसपास के पर्वतीय इलाकों में अंग्रेजी सेना ने उन्हें पकड़ने के लिए जाल बिछा दिया।

वीर तिलका माँझी एवं उनकी सेना को अब पर्वतीय इलाकों में छिप-छिपकर संघर्ष करना कठिन जान पड़ा। अन्न के अभाव में उनकी सेना को भूख की मार सताने लगी।

वीर माँझी और उनके सैनिकों के आगे एक ही युक्ति थी कि छापामार युद्ध लड़ी जाए।

तिलका माँझी के नेतृत्व में संथाल जनजाति ने अंग्रेज सेना पर प्रत्यक्ष रूप से धावा बोल दिया। लेकिन क्लीव लैंड की जगह उन्हें वारेन हेस्टिंग से लड़ना पड़ा। उसके पास बहुत अधिक अस्त्र-शस्त्र से लैस सेना थी।

तिलका माँझी के पास कम संसाधन थे और वे युद्ध के दौरान धोखे से पकड़ लिए गए।

बलिदान
तिलका माँझी को गिरफ्तार कर अंग्रेज भागलपुर ले आये एवं अमानवीय व्यवहार करते हुए उन्हें 4 घोड़ों के पीछे मोटी रस्सियों से बाँधकर घसीटा गया।

सन् 1785 में एक वट वृक्ष में रस्से से बांधकर तिलका माँझी को अंग्रेजों ने फाँसी दे दी।

तिलका माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को गुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी, जो 90 वर्ष बाद 1857 में स्वाधीनता संग्राम के रूप में पुनः फूट पड़ी थी।

क्रांतिकारी तिलका माँझी की स्मृति में भागलपुर में कचहरी के निकट, उनकी एक मूर्ति स्थापित की गयी है। उनके नाम पर विश्‍वविद्यालय भी है। तिलका माँझी भारत माता के अमर सपूत के रूप में सदा याद किये जाते रहेंगे।