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जनजातीय बहुल राज्यों में घटती हिन्दू जनसंख्या प्रतिशत किसकी ओर इशारा है?

आंकड़े हमेशा ही विवादस्पद होते हैं, भारत में बहुसंख्यक हिन्दू समाज की दशकीय जनसँख्या वृद्धि प्रतिशत में मामूली सा घटाव शायद, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई जगह ना पाए, मगर हिन्दू समाज में हासिये पर खड़े जनजाति जब अन्य धर्मों में मतांतरित हो जाते हैं तो वो संविधान की धार्मिक स्वतंत्रता के तहत अपने विवेक से मतान्तर  नहीं होते, वे तो अपनी सांस्कृतिक पहचान के लुप्त होने से कहीं अधिक, अपने जीवन अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. ये आदिवासी कभी मामूली सी बीमारी के इलाज या थोड़े बहुत पैसों के प्रलोभन या अच्छी शिक्षा के आस्वासन से मतांतरित हो रहे हैं.

इन स्वस्थ्य सुविधाओं, अच्छी शिक्षा या आजीविका के साधन सुनिश्चित करने का दायित्व सरकारों का ही है, मगर जब सरकारें अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाती तो धर्मान्तरण के व्यापारी अपनी बाहें पसार के आदिवासियों की गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा को धर्म के बदले खरीद लेते हैं.

भारत के परिदृश्य में किसी आदिवासी का हिन्दू धर्म से अन्य धर्म में मतांतरित हो जाना विकास का प्रतिक है, टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलते आदिवासी, वामपंथी मीडिया को तो विकसित नज़र आते हैं, मगर हज़ारों वर्षों की उनकी सांस्कृतिक पहचान मिट जाना किसी को भी नज़र नहीं आता.

‘अंग्रेजीदां’ हो जाना शायद नौकरी पा सकने की संभावनाएं बढ़lता हो, अपनी जड़ों से कट जाना छुपा ले जाता है, संस्कृति विविन होने का दर्द शायद शहरों में पला, कभी न समझ पाएं, समझे भी तो कैसे? जो खुद ग्रीन कार्ड पाने की लड़ाई लड़ रहे हों.

अगर कोई गैर आदिवासी, आदिवासियों के हिन्दू धर्म से अन्य धर्मों में मतांतरण की बात उठाता है तो सारा “सेकुलर” बौद्धिक वर्ग उसके पीछे चील और गिद्ध के जैसे झपट पड़ते हैं, कि देखो “कम्युनल वाद” फैला रहा है, इसलिए इस दुर्लभ कार्य को किसी आदिवासी को ही करना होगा और चीख-चीख कर बोलना होगा कि हाँ हमारी गरीबी, भुखमरी के बदले हमें कोई और धर्म की भीख नहीं चाहिए, हमें सुशासन चाहिए जो हमारा संवैधानिक अधिकार है.

मगर ये चीख पुकार ही आंकड़ों की बलि चढ़ा दी जाएगी, इसलिए आपके सामने हम केवल और केवल आंकड़े रखेंगे, निर्णय आपको लेना है कि आप कैसा आदिवासी समाज चाहते हैं, संस्कृति विहीन मतांतरित या संस्कृति समृद्ध स्वावलम्बी? निर्णय आपका है, क्यूंकि सरकारों के कानों तक आवाज भी आपकी ही सुनी जायेगी…

धार्मिक बाज़ारवाद हमेशा से ही सरकारों से दो कदम आगे रहा है, इसलिए जब वर्ष 2000 के आसपास आदिवासियों को प्रलोभन द्वारा धर्मान्तरित करने की शिकायतें बढ़ी तो सरकारों ने जैसे ही इसके लिए सुरक्षात्मक नियम बनाये धार्मिक व्यवसायियों ने अपनी राण निति ही बदल ली.

इसे वे अप्रत्यक्ष धर्मान्तरण मॉडल कहते हैं, इसकी खोज उन्होंने हमारे ही सिस्टम से ही की. किसी भी धर्मांतरण का तथ्यात्मक ज्ञान दशकीय जनगणना में ही पता चल पlता है, इसलिए सीधे टकराव से बचने के लिए, धार्मिक बिचोलियों ने आदिवासियों को प्रत्यक्ष रूप से मतांतरित करना बंद कर दिया है, अब वे केवल विभिन्न NGO के नाम से सेवा कार्यों का ढोंग करते हैंऔर जनगणना के एक अथवा दो वर्ष पहले से जनगणना के किस धर्म का कॉलम भरना है, इसका प्रशिक्षण दिया गया.

अगर सीधे-सीधे हिन्दू आदिवासी जनगणना में “मुस्लिम/क्रिस्चियन” आदिवासियों में गिने गए तो ये विवेचना का प्रश्न हो सकता है, इसलिए आदिवासियों को “अन्य धर्म/ other रिलिजन” के कॉलम को भरने हेतु प्रशिक्षण दिया गया और जैसा प्रयास 2001 की जनगणना में शुरू हुआ वो 2011 की जनगणना में फलीभूत भी होने लगा.

झारखण्ड राज्य इस पैटर्न का सबसे सफल उदाहरण है, वैसे अन्य आदिवासी बहुल राज्यों में भी इसी पैटर्न की पुनरावृत्ति 2021 में करने की पूरी तैयारी कर ली गई है.

पहले आदिवासी हिन्दू से “अन्य धर्म” में प्रत्यक्ष रूप से मतांतरित किये जाएंगे और धीरे धीरे “अन्य धर्म” के आदिवासी मुस्लिम/ क्रिस्चियन” में परिवर्तित कर दिए जाएंगे. इस प्रक्रार सीधे-सीधे टकराव भी नहीं होगा और न्यायिक प्रक्रिया से भी बचा जा सकेगा, ये रणनीति आगे जाकर वैमनस्य के नए विवाद खड़े करेगी.

आइये जनगणना के विभिन्न आंकड़ों का अवलोकन करते हैं:-

 

 

उपरोक्त आंकड़ों से साफ़ दिखाई दे रहा है की अन्य रिलिजन अथवा बिना रिलिजन की दशकीय जनसंख्या वृद्धि सौ प्रतिशत से भी अधिक रही है, ये वृद्धि केवल जनजातीय बहुल राज्यों में हो रही है, चूँकि इन राज्यों में हिन्दू जनसँख्या का प्रतिशत अधिक है, इसी कारण जिले विशेष जो की आदिवासी बहुल हैं उनके द्वारा हिन्दू से अन्य रिलिजन का चुनाव हाईलाइट नहीं हो रहा है.

इस लेख में मेरा उद्देश्य केवल एक वैश्विक षड़यंत्र से आपको रूबरू करने का है. भारत के आदिवासी समाज के संस्कृति और धर्म में भेद कर पाना मुश्किल है अगर धर्म बदल गया तो संस्कृति नष्ट हो जाएगी और वामपंथी अपनी साजिश में कामयाब हो जाएगें….

(लेखक:लक्ष्मण राज सिंह मरकाम:)

यह लेखक के अपने विचार हैं.