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“जबलपुर से झंडा सत्याग्रह उद्घोष और 18 जून को झंडा दिवस मनाया गया”

यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में अमृत महोत्सव के आलोक में केन्द्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार माननीय प्रहलाद सिंह पटेल द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जबलपुर के झंडा सत्याग्रह को राष्ट्रीय स्तर पर न केवल स्मरण कराने वरन् इतिहास में न्यायोचित रुप से रेखांकित कर दर्ज कराने के लिए अनंत कोटि आभार आज अत्यंत गर्व और गौरव का विषय है,

जबलपुर से 18 मार्च 1923 को झंडा सत्याग्रह का शुभारंभ हुआ, और नागपुर से इसने व्यापक रुप लिया,जिसका 18जून 1923 को “झंडा दिवस” के रुप में देशव्यापीकरण हुआ और मनाया गया था। 17 अगस्त 1923को अपनी सफलता की कहानी लिखता हुआ, समाप्त हुआ।

झंडा सत्याग्रह की पृष्ठभूमि और इतिहास आरंभ अक्टूबर 1922 से ही हो गया था जब असहयोग आंदोलन की सफलता और प्रतिवेदन के लिए कांग्रेस ने एक जांच समिति बनाई थी और वह जबलपुर पहुंची तब समिति के सदस्यों को विक्टोरिया टाऊन हाल में अभिनंदन पत्र भेंट किया गया और तिरंगा झंडा (उन दिनों चक्र की जगह चरखा होता था) भी फहरा दिया गया.

समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरें इंग्लैंड की संसद तक पहुंच गईं. हंगामा हुआ और भारतीय मामलों के सचिव विंटरटन ने सफाई देते हुए आश्वस्त किया कि अब भारत में किसी भी शासकीय या अर्धशासकीय इमारत पर तिरंगा नहीं फहराया जाएगा। इसी पृष्ठभूमि ने झंडा सत्याग्रह को जन्म दिया।

मार्च 1923 को पुनः कांग्रेस की एक दूसरी समिति रचनात्मक कार्यों की जानकारी लेने जबलपुर आई जिसमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी, जमना लाल बजाज और देवदास गांधी प्रमुख थे। आप सभी को मानपत्र देने हेतु म्युनिसिपल कमेटी प्रस्ताव कर डिप्टी कमिश्नर किस्मेट लेलैंड ब्रुअर हेमिल्टन को पत्र लिखकर टाऊन हाल पर झंडा फहराने की अनुमति मांगी लेकिन हेमिल्टन ने कहा कि साथ में यूनियन जैक भी फहराया जाएगा इस बात पर म्युनिसिपैलटी के अध्यक्ष कंछेदी लाल जैन तैयार नहीं हुए।

इसी बीच नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पं. सुंदरलाल ने जनता को आंदोलित किया कि टाऊन हाल में तिरंगा अवश्य फहराया जाएगा। तिथि 18 मार्च तय की गई क्योंकि महात्मा गांधी को 18 मार्च 1922को जेल भेजा गया था और 18मार्च 1923 को एक वर्ष पूर्ण हो रहा था।

18 मार्च को पं. सुंदरलाल की अगुवाई पं. बालमुकुंद त्रिपाठी, बद्रीनाथ दुबे जी, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान,तथा माखन लाल चतुर्वेदी जी के साथ लगभग 350 सत्याग्रही टाऊन हाल पहुंचे और उस्ताद प्रेमचंद ने अपने 3 साथियों सीताराम जादव, परमानन्द जैन और खुशालचंद्र जैन ने मिलकर टाऊन हाल पर तिरंगा झंडा फहराया दिया।

कैप्टन बंबावाले ने लाठीचार्ज करा दिया जिसमें श्रीयुत सीताराम जादव के दांत तक टूट गए थे, सभी को गिरफ्तार किया और तिरंगा को पैरों तले कुचल कर जप्त कर लिया। अगले दिन पं सुंदरलाल जी को छोड़कर सभी मुक्त कर दिए गए इन्हें 6 माह का कारावास हुआ उसके बाद से इन्हें तपस्वी सुंदरलाल जी के नाम से जाना जाने लगा। इस सफलता के उपरांत उत्साहित होकर नागपुर से व्यापक स्तर पर झंडा सत्याग्रह का आरंभ एवं प्रसार लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व हुआ जिसमें जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने न केवल भाग लिया वरन् गिरफ्तारी दी।

श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान भारत की पहली महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं जिन्होंने झंडा सत्याग्रह में अपनी गिरफ्तारी दी। 18 जून को झंडा सत्याग्रह का देशव्यापीकरण हुआ और झंडा दिवस मनाया गया।

झंडा सत्याग्रह व्यापक स्तर पर फैल गया और आखिरकार 17अगस्त 1923 को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के उपरांत झंडा सत्याग्रह वापस ले लिया गया। इस समझौते के अंतर्गत नागपुर के सत्याग्रही मुक्त कर दिए गए परंतु जबलपुर के सत्याग्रही अपनी पूरी सजा काटकर ही लौटे।

लेख़क – डॉ. आनंद सिंह राणा
संपर्क – 7987102901