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ज्ञान कला और संगीत की देवी का उत्सव- बसंत पंचमी

भारतीय संस्कृति विश्व की महानतम संस्कृतियों में से एक है। हमारे यहां हर ऋतू के साथ लोक संस्कार, अध्यात्म व पर्व -उत्सव जुड़े हुए हैं। ऐसा ही एक उत्सव है बसंत पंचमी।

“प्राकट्येन सरस्वत्या वसंत पंचमी तिथौ।
विद्या जयंती सा तेन लोके सर्वत्र कथ्यते।।”

बसंत पंचमी का दिन भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होने के कारण संपूर्ण विश्व में ‘विद्या जयंती कहा जाता है। सरस्वती हिंदू धर्म की प्रमुख देवी है जो ब्रह्मा की मानस पुत्र है। ये शुक्ल वर्ण वाली, श्वेत वस्त्र धारिणी श्वेतपद्मासना कही गई है जिनका वाहन हंस है। इनमें विचारणा, भावना व संवेदना का त्रिविध समन्वय है।

माँ सरस्वती के हाथों में शोभित वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर कला की अभिव्यक्ति है। देवी सरस्वती विद्या और बुद्धि देने वाली है। इन्हें वागीश्वरी, शारदा देवी, शतरूपा, वीणावादिनी सहित अनेक नामों से जाना और पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति भी इन्हीं ने की थी इसीलिए इन्हें संगीत की देवी भी कहा जाता है। सर्वप्रथम श्री कृष्ण ने देवी सरस्वती का पूजन माघ शुक्ल पंचमी को किया था तभी से इस दिन सरस्वती के पूजन का प्रचलन है।

बसंत को ऋतुओ का राजा कहा जाता है। बसंत प्रकृति का यौवन है। बसंत पंचमी जीवन व प्रकृति की सकारात्मक ऊर्जा की प्रतीक है। इस ऋतु के आते ही प्रकृति का सौंदर्य अपने शबाब पर होता है। प्रकृति का कण-कण नवचेतना से भर जाता है। टेसू के फूल चहुओर बिखरे होते हैं। गुलमोहर की निराली छटा आंखों को सुकून देती है। सरसों की पीली आभा खेतों में सोने की तरह चमकती है। गेहूं में बालियां खिलने लगती है। आम वृक्षों पर बौर इतराने लगते हैं और तितलियों का रंग बिरंगा समूह उपवनों में मंडराने लगता है।

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वैसे तो पूरा माघ मास ही उत्साह, उमंग प्रदान करने वाला है परंतु बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का जन्मदिन होने से एक अलग ही अलौकिक व आध्यात्मिक चेतना का प्रवाह संपूर्ण परिवेश में रहता है। इस दिन पीले वस्त्र पहने जाते है। घरों में केसरयुक्त खीर,पीले लड्डू और केसरिया भात बनाए जाते है। हल्दी व चंदन का तिलक किया जाता है।

बसंत पंचमी के दिवस से जुडी एक लोककथा है कि सृष्टि के प्रारंभिक दिनों में ब्रह्मा जी ने विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की संरचना की। उन्होंने जीव, जंतु और मनुष्य की रचना की लेकिन वे अपने सृजन से खुश और आश्वस्त नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि कहीं कुछ कमी है जिस कारण चारों ओर मौन ही पसरा रहता है। उन्होंने विष्णु जी से यह बात कही और उनसे सहमति लेकर अपने कमंडल से जल हाथों में ले उसे पृथ्वी पर छिङका। पृथ्वी पर जल की बूंदें गिरते ही उसमें कंपन सा होने लगा। इसके पश्चात वृक्षों के मध्य से एक स्त्री रूपी अद्भुत शक्ति प्रकट हुई जिसकी चार भुजाएं थी।

इस शक्ति के एक हाथ में वीणा दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी अन्य हाथो में पुस्तक और माला थी। ब्रह्मा जी के अनुरोध पर देवी ने वीणा का स्वर छेडा और वीणा के नाद से सृष्टि के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई। हवा में सरसराहट, पानी में कोलाहल की ध्वनि गूंजने लगी और ब्रह्मा जी ने उन्हें वाणी की देवी सरस्वती कहा। कृष्ण ने गीता में ऋतुनाम कुसुमाकर कह बसंत को अपनी विभूति माना।

बसंत जिसमें भव्यता है, दिव्यता है, गौरव है, तरुणाई है चेतना है।इस दिन नाटककार, कवि लेखक, गायक आदि कला जगत से जुड़े लोग वीणापाणि की पूजा और आराधना करते हैं ताकि मां का असीम आशीष उन पर और उनकी कला पर सदैव बना रहे। उन्हें अपने कला कौशल से प्रसिद्धि मिले और उनकी कला युग-युगांतर तक कायम रहे।

ऋग्वेद में कहा गया है कि “प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिवजनीवति धीनामणी त्रयवतु” अर्थात सरस्वती देवी परम चेतना है। सरस्वती के रूप में यह हमारी प्रज्ञा, बुद्धि और मनोवृति की संरक्षिका है। हमारे आदिकालीन साहित्य के प्रसिद्ध कवियों जैसे देव सेनापति, बिहारी, पद्माकर ने इसे ऋतू उत्सव, मदनोत्सव, मधुरऋतु, ऋतुराज, कुसुमाकर संज्ञा प्रदान कर वसंत को गौरव प्रदान किया है। आधुनिक कवियों में भी निराला, पंत, ने बासंती प्रकृति का मनोहारी वर्णन किया है। बिहारी लिखते हैं-

“कहलाने एकत बसंतअहि मयूर, मृग बाघ।
जगत तपोवन सो कियो दीरघ दाघ निदाघ।।”

बौद्धिक क्षमता का विकास करने, चंचल चित्त की चंचलता दूर करने और उसे एकाग्र करने में सरस्वती साधना का बहुत ही महत्व है। सरस्वती की साधना भय से मुक्ति देने वाली, अज्ञान का अंधकार मिटाने वाली है। कवि पद्माकर की यह पंक्तियां बसंत के अद्भुत प्रभाव की अनुभूति से हमें सरोबार कर जाती है-

कूलन में, केलि में, कछारण में कुंजन में, क्यारिन में, कलिन में, क्लीन किलकंत है। कहे पद्माकर परागन में, पौनहूं में, पानन में, पीक में, पलासन पंगत है। द्वार में, दिसान में, दूनी में, देस-देसन में, देखो दीप दीपन में, दीपक दिंगत है। बिथिन में, ब्रज में ,नवेलिन में, बेलिन में, बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है।

बसंत की तरह ही हमारे जीवन में आल्हाद हो, सकारात्मकता हो, प्रेम हो, उमंग हो इसी के साथ बसंत पंचमी की हार्दिक मंगलकामनाएं।

लेखक:- मनीषा शर्मा
संपर्क सूत्र:- 9827060364