Trending Now

नहीं सहेंगे संस्कृति पर आघात

वर्तमान केन्द्र सरकार सांस्कृतिक विरासत के भू-क्षेत्रीय इतिहास के चरणबद्ध अध्ययन और उसके पुनरूत्थान और संरक्षण पर विशेष ध्यान दे रही है, क्योंकि किसी देश के उत्थान में संस्कृति की महती भूमिका होती है। यही कारण ही मुगल आक्रान्ता भारत की संस्कृति नष्ट-भ्रष्ट कर अपनी संस्कृति थोपने की भरसक कोशिश करते रहे हैं। इस तबाही के लिये शास्त्रों का भी उपयोग किया गया। अब भारत ने करवट बदली है और वह अपने पुराने वैभव की ओर जाने के लिये चल पड़ा है। उसे पुनः विश्वगुरूपद पा लेना है।

स्वामी दयानन्द और स्वामी विवेकानन्द जैसे समाज सुधारकों ने गत कालखंड में हुयी क्षति और पुनः उस गौरव क्षमता को पुनः प्राप्त कर लेने की आवश्यकता को समझ लिया था। इसीलिये उन्होंने भारतीयों से अपनी जड़ों की ओर लौटने का आग्रह भी किया था।

अंग्रेजों ने भी अपने शासन के दौरान इस तथ्य को महसूस कर लिया था कि भारतीय संस्कृति की जड़ें गहरी हैं, वे हर भारतीय को प्रभावित किये हुये हैं। इसके लिये अपनी शिक्षा प्रणाली को लागू कर इस संस्कृति को मिटाने की कोशिशें की गयीं। लेकिन वे इस तथ्य को नहीं समझ सके कि नालंदा जैसे विश्वविख्यात शिक्षा केन्द्रों के विनाश के बाद भी यह अजर- अमर-ज्ञान का स्रोत छोटी छोटी शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से जारी रखा गया था। इस कारण वे भी भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के प्रयासों में असफल हुये । यद्यपि उनके दुष्प्रभावों-दुष्प्रयासों का प्रभाव आज की पीढ़ी तक भुगत रही है।

15 अगस्त 2022 को भारत की आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इस दिन हर घर, हर दुकान, खेत- खलिहानों में तिरंगा फहराया जायेगा।

भारतीय ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ मंत्र पर सदियों से आस्था रखते हुये उसी मार्ग के अनुगामी बने हुये हैं। विश्व भर से जो भी जन या जन समूह भारत में आश्रय  की तलाश में आया, उन्हें केवल आश्रय ही नहीं दिया वरन् व्यापार, आजीविका के साधन भी उपलब्ध कराये ताकि वे शांति और सम्मान के साथ अपना जीवन यापन भी कर सकें। इतना ही नहीं उन्हें उनकी आस्था-उपासना उनके ही पंथ के अनुसार करने दी गयी। लेकिन कतिपय क्षुद्र आक्रान्ताओं ने (तुर्की और मुगल) आक्रमणों के दौरान भारत की एकता और अखंडता पर प्रहार किया और अपने पंथ के अनुसार मतान्तरण के कुकृत्य में लग गये। उन्होंने और बाद में क्रिश्चियन मिशनरियों ने भी तरह-तरह के हथकण्डे अपनाये।

आज वही मानसिकता भारतीय संविधान के लचीलेपन का फायदा उठाकर भावनात्मक रूप से कई पाकिस्तान तैयार करने का मंसूबा पाल बैठी है, जिसके कारण हिन्दु समाज अपने आपको असहज महसूस कर रहा है। वहां उनकी उपेक्षा हो रही है, तथा प्रताड़ित भी किया जा रहा है।

ये परिस्थितियाँ आगाह कर रहीं हैं, इतिहास दोहराने की कोशिशें हो रही हैं। अतः अब चेत जाने की आवश्यकता है। विगत कालखंडों में जो कुछ गलत हुआ है, उन उन वैषभ्यताओं को दूर करने व उनमें सुधार तत्काल हो ऐसी मांग उठने लगी है। क्योंकि गलत इतिहास पढ़ाया गया और जो हमारे गौरव के सूत्र थे, उस जानकारी से हमें योजनापूर्वक वंचित रखा गया।

अब गुजरात के विद्यालयों में श्रीमद्भागवद्गीता पढ़ाने की तैयारी के साथ साथ गुजरात तकनीकी विश्वविद्यालय ने मास्टर ऑफ आर्टस् के अंतर्गत हिन्दू स्टडीज पर स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू करने जैसे सराहनीय कार्य आरम्भ किये जा रहे हैं।

माँ काली का असीमित और असीम आशीर्वाद भारत के साथ है। देश इसी आध्यात्मिक ऊर्जा एवं विश्व कल्याण की भावना को लेकर निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है पश्चिम बंगाल की काली पूजा तो विख्यात है ही।

कनाडा की एक भारतीय मूल की महिला लीना मणिमेकलई द्वारा ‘‘काली’’ फिल्म के माध्यम से जगत जननी ‘‘काली माँ’’ का विकृत रूप प्रस्तुत करने का घृणित प्रयास किया गया है। दुर्भाग्य से देश के ही कतिपय निम्नस्तरीय तत्वों ने लीना मेकलई का खुला समर्थन भी किया। ऐसे तमाम तत्व देश के मान बिन्दुओं पर जब तब आघात पहुंचाने का दुष्प्रयास करते भी रहते हैं।

भारत की सांस्कृतिक धरोहर अमूल्य है। उसके संरक्षण व संवर्धन के प्रयासों में सनातनी समाज ने गत आठ सौ वर्षों से अधिक कालखण्ड में झंझावातों का मुकाबला भी किया है। इतिहास की सच्चाई ज्यों-ज्यों सामने आती जा रही है, इन नीमकमुन्नों की बैचेनी बढ़ती जा रही है।

सनातन धर्मियों ने सदा सत्य तक पहुंचने की कोशिश की है, लेकिन पत्थरबाजी सड़क पर नहीं की। इसके बावजूद राजनैतिक व वैचारिक प्रति द्वन्दिता या व्यक्तिगत निहित स्वार्थों के वशीभूत कतिपय तत्व बहुसंख्यक समाज के सांस्कृतिक ‘प्रतीकों’ को निशाना बनाकर अपनी भड़ास निकालते रहते हैं। छठी शताब्दी की अफगानिस्तान स्थित वामियान स्थित बुद्ध मूर्तियों को तालिबान ने नष्ट किया था।

 भारत के प्राचीन समृद्ध ज्ञान के कारण ही उसे विश्व गुरू माना गया था। हमारी सांस्कृतिक विरासत ज्ञान सम्पदा, ज्ञान-विज्ञान को हर क्षेत्र में उत्कृष्ट माना गया। था। यह चिन्तन तो करना ही पड़ेगा कि इतनी समृद्ध परम्परा को हमने कैसे खो दिया? यदि उस संस्कृति को, समृद्धता को समझना है, उस पर गर्व करना है, तो उस संस्कृति में पुनः प्राण फूंकने होंगे।

देश की कर्तव्य क्षमता में निखार लाकर ही देश को बदलते परिवेश में आगे ले जाया जा सकता है। इस हेतु युवाओं को मोर्चा सम्हालना होगा। इसके लिये उन्हें कालजयी नेतृत्व की क्षमता प्रदान करना भी आवश्यक होगा। वही देश के अन्दर घात लगाये बैठे उपद्रवियों और देश द्रोहियों के लिये सक्षम जबाव भी होगा।

संस्कृति तो किसी राष्ट्र की आत्मा होती है। भारत हमारे लिये जमीन का एक टुकड़ा नहीं है, वह हमारी भारत माता है  और उसे विश्व के शिखर पर ले जाने की सोच रखने वाला हमारे लिये आदरणीय है। यही भारतीयता है, यही आत्मीयता है, यही इंसानियत है।

शक्ति का स्रोत आस्थायें हैं, वे ऊँची उठेंगी तो ही शरीर को सत्कर्म करते और मस्तिष्क  सद्विचारों में निरत रहते पाया जा सकेगा। इस भूमि में जन्में, इसकी संस्कृति व संस्कारों को अपने व्यक्तित्व में समेटे हुये लोग भारतीय हैं।

हमारा मुख्य लक्ष्य देशभक्ति की भावना को जगाना होना चाहिये और उस देशभक्ति का आधार स्वर्णिम अतीत, लक्ष्य सिद्ध करने वाला वर्तमान व समुज्जवल भविष्य होना चाहिये।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सूत्र:- 9424744170