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नौ करोड़ ग्रामीण घरों तक नल कनेक्शन सरकार की अभूतपूर्व उपलब्धि –  डाॅ. किशन कछवाहा

जलवायु – पर्यावरण को लेकर एक चैंका देने वाली खबर सामने आयी है। यह आश्चर्यजनक भी है और आम आदमी से लेकर सम्पन्न लोगों को भी झकझोर देने वाली है। खबर का स्वरूप यह है कि खान-पान की जो हमारी आदतें हैं उससे ही धरती का तापमान बढ़ रहा है। विश्व भर के 10 अरब लोगों की खाने पीने की आदतों का बुरा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ रहा है। सिर्फ इसी वजह से लेकर ग्रीन हाऊस गैसों (जी.एस.जी.) का उत्सर्जन होता है।
सेन्टर फाॅर साईंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की स्टेट ऑफ इंडियाज एन्वायरमेंट – 2022 की रिपोर्ट में इस तथ्य का खुलासा हुआ है। यह जानकारी सभी को चिन्तित करने वाली है। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि फल- सब्जी, अनाज की पैदावार, उपभोग, वितरण और निस्तारण की पूरी प्रक्रिया के दौरान इतना जी.एच.जी. का उत्सर्जन हो जाता है, जितना अन्य कारणों से नहीं होता।
ब्राउन टू अर्थ’ के प्रबन्ध निदेशक रिचर्ड महापात्र का मानना है कि इसके अलावा इस परिवर्तन के आर्थिक पहलू भी हैं। 16 देशों के 37 वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों के अनुसार लाॅसेट कमीशन आन फुड, प्लेनेट एंड हेल्थ ने खाद्य प्रणालियों के लिये कतिपय वैश्विक लक्ष्य निर्धारित किये हैं। आयोग ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य आहार का प्रस्ताव पेश किया है, जो आगामी दस वर्षों में शहरी उत्सर्जन में 60 प्रतिशत तक की कमी ला सकता है।
सी.एस.ई. की वरिष्ठ शोधकर्ता वैज्ञानिक विभा वाष्र्णेय का मानना है कि यूरोप और अमेरिका के शोधकर्ताओं के एक समूह ने भी हाल ही में इन आँकड़ों पर अपनी सहमति जतायी है। उनके मतानुसार यह सच है और इस तथ्य से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि पौधे, प्रकाश-संश्लेषण क्रिया के माध्यम से वातावरण में विद्यमान कार्बन-डायआॅक्साईड निकालते हैं, लेकिन वे विघटित होने की स्थिति में बड़ी मात्रा में गैस भी छोड़ते हैं।
खाद्य-प्रणाली, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीकों से भी उत्सर्जन में अपना योगदान देती है। खेतों और चारागाहों तक जाने के लिये रास्ता बनाने के लिये पेड़ों की कटाई, कार्बन सोखने के एक बड़े कारण को दूर कर देती है। जीवाश्म ईंधनों का उपयोग करने वाली कृषि-मशीनरियों का संचालन या कृषि रसायनों और उर्वरकों का निर्माण भी (जी.एच.जी.) का उत्सर्जन करता है।
दूसरी तरफ वर्तमान समाज जोखिमों से जूझता नजर आ रहा है। इस तथ्य को कौन नकार सकता है कि पर्यावरण को और अधिक नुकसान से बचाने के लिये अनियंत्रित वैज्ञानिक और तकनीकी विकास को रोकना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। वहीं आर्थिक विकास, रोजगार, सृजन, सामाजिक सुरक्षा, पर्यावरण, सामाजिक न्याय, संवैधानिक मूल्य जैसे विषयों का अवमूल्यन हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति (आई पी सी सी) ने गत दिनों जारी की गयी अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यदि भारत में उत्सर्जन में कटौती नहीं की गयी तो असहनीय गर्मी, भोजन और पानी की कमी तथा समुद्र के जलस्तर में बढ़ोत्तरी से लेकर गम्भीर आर्थिक क्षति तक हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन 2022 प्रभाव, अनुकूलन और संवेदनशीलता विषय पर आईपीसी सी कार्यकारी समूह-द्वितीय की रिपोर्ट के दूसरे खण्ड में इसका विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि यदि उत्सर्जन को तेजी से समाप्त नहीं किया गया तो वैश्विक स्तर पर गर्मी और आद्रता मानव सहनशीलता से परे जाकर कष्टदायक स्थितियाँ पैदा करेंगी। भारत उन स्थानों में शामिल होगा, जिन्हें इन असहनीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।

जलवायु की परिभाषा, प्रकार और जलवायु परिवर्तन के कारण - HTIPS

रिपोर्ट में आग्रह किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के साथ ही एशिया में कृषि और खाद्य प्रणालियों से संबंधित जोखिम पूरे क्षेत्र में बढ़ेंगे। हालाँकि इसका प्रभाव अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग किस्म का हो सकता है। यदि अनुमानतः तापमान में एक डिग्री सेल्सियस से चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोत्तरी होती है तो चांवल का उत्पादन 10 से 30 प्रतिशत तक, जबकि मक्के का उत्पादन 25 से 70 प्रतिशत तक घट सकता है। रिपोर्ट के अनुसार तापमान, सापेक्षिक आद्रता और वर्षा के अन्तर से भारत वैश्विक स्तर पर डेंगू जैसी बीमारियों या उसके संसरण दर में वृद्धि भी हो सकती है।
प्लास्टिक प्रदूषण रोकने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है विश्व-
केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने भी गत दिवस कहा था कि विश्व के नेता पाँचवी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए) में प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। इस दौरान भारत सतत उपयोग और रिसाईकिल इकोनामी के मुद्दों को उठाने में यू.एन.ए.ई. में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है।
शुद्ध पेयजल- एक अनुमान के अनुसार भारत में बड़े और सम्पन्न वर्ग के आय के स्त्रोतों में वृद्धि के परिणाम स्वरूप सेवा और उद्योग क्षेत्र में बढ़ते योगदान के चलते घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में भी पेय शुद्धजल की माँग बढ़ती जा रही है। यह समझने लायक है कि एक ओर पानी की उपलब्धता में भारी कमी की आशंकायें दूसरी ओर पानी की बढ़ती खपत के साथ मुनाफाखोरों की बढ़ती मुस्कराहट। भविष्य में आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखते हुये यदि विचार किया जाये तो उन परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिये आज ही उपाय खोज लिये जाना चाहिये।
आश्चर्य तो इस बात का है कि हम अभी भी भविष्य की संभावनाओं पर विचार कर लेने सक्रिय नहीं हो पा रहे हैं। जबकि विदेशी कम्पनियाँ कनाडा, इजरायल, जर्मनी, इटली, अमेरिका, चीन, बेल्जियम जैसे देश पानी की घरेलू जरूरत के बाजार में बीस अरब डालर से भी अधिक निवेश का अवसर तलाशने में जुट गईं हैं। ई.ए. बाटर की रिपोर्ट से स्पष्ट संकेत प्राप्त होते हैं कि उद्योग क्षेत्र को आगामी वर्षों में अठारह से बीस हजार करोड़ से अधिक की राशि मिल जाने की उम्मीद है। इसका तात्पर्य यह है कि हमारे देश में पानी की आपूर्ति और दूषित जल के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास सहित संबंधित अलग- अलग क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इन कम्पनियों को अवसर प्राप्त हो जायेगा।
वर्तमान परिपेक्ष्य में इस दिशा में दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि पेयजल की बढ़ती समस्या के चलते बाॅटल बंद पानी का व्यवसाय पच्चीस हजार करोड़ से ऊपर तक पहुँच सकता है।
यह स्थिति अत्यन्त दुःखदायी एवं विचारणीय है कि देश के असंख्य ग्रामों एवं शहरों के विभिन्न इलाकों में पीने के स्वच्छ पानी की उपलब्धता जरूरत से बहुत कम है, जिसके कारण कालरा(हैजा), टाइफाइड, पेचिस एवं अन्य बीमारियाँ अपना पैर पसारती जाती हैं।
यह अत्यन्त प्रशंसनीय एवं संतोष का विषय है कि भारत सरकार ने जल जीवन मिशन की सम्पूर्ण परिकल्पना में गाँवों को ही केन्द्र बिन्दु बनाकर अद्भुत कार्यक्रम चलाया है। इसके अंतर्गत ग्राम पंचायत गाँव में पेयजल की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये एक उपसमिति बना रही है, जो अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है, क्योंकि वह गाँव में प्रणाली की रूपरेखा तैयार कर, उसे लागू करने में पूरी तरह सक्रिय है। इस योजना में देशभर के लगभग 3.82 लाख से ज्यादा 9 करोड़ ग्रामीण घरों को सीधे नल कनेक्शन से शुद्ध पीने के पानी का उपलब्ध हो जाना है।
अन्त्योदय अर्थात् पंक्ति के अंतिम छोर पर स्थित व्यक्ति तक सुविधा पहुंचाने की भावना। इसी का सुपरिणाम है कि देश के छः प्रदेश के हर घर में नियमित और भरोसे मंद पेयजल की आपूर्ति करायी गयी है। समाज के कमजोर और उपेक्षित लोगों के घरों तक यह सुविधा पहुंचा दी गयी है। नौ करोड़ ग्रामीण घरों तक नल कनेक्शन पहुँचाना सरकार की अभूतपूर्व उपलब्धि है। यह प्रधानमंत्री की दूरगामी सोच का परिणाम है।

लेखक:- डाॅ. किशन कछवाहा