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पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का : भारतीय संस्कृति व साहित्य में योगदान

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य इस युग के ब्यास हैं। उन्होंने अपने आपको युगऋषि, युगदृष्टा, अध्यात्म वेत्ता, महान तपस्वी, साधक, महान लेखक, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, गायत्री महाविद्या के प्रचारक, विराट संगठन कर्त्ता, युग साहित्य सृजेता, वेदमूर्ति इत्यादि बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया।

आपका व्यक्तित्व-कृतित्व हिमालय से भी ऊंचा (महान) रहा है। जिसका मूल्यांकन करना आसान नहीं दिखता है। उनके जीवन की ऊंचाई,  उपलब्धियां इतनी अधिक है कि जिन्हें लेखनी में बांधा जाना कठिन दिखलाई पड़ता है। बस यूं समझिए कि- ‘जैसे सूर्य को दीपक दिखाना’।आप इतिहास पुरुष,अध्यात्म विधा के विशारद,अध्यात्म के ध्रुव केंद्र देवात्मा हिमालय के महान योगी, सप्त ऋषियों के संपर्की थे। उनका जन्म ही विश्व मानवता के कल्याण के लिए हुआ था। उनका सूत्र वाक्य है-
” हम बदलेंगे -युग बदलेगा ।
हम सुधरेंगे -युग सुधरेगा ।।”

” 21वी सदी उज्जवल भविष्य “

वर्तमान में विश्व पटल पर जो घटनाक्रम घटित हो रहा है। उसे अपनी दिव्य दृष्टि से संकेत/संक्षिप्त रूप में 70 वर्ष पूर्व ही अपने साहित्य में लिख दिया था। सतयुग का पुनरागमन, समस्याएं आज की समाधान कल के, 21वीं सदी का गंगावतरण, हमारी वसीयत और विरासत, मैं क्या हूं?, Who amI?, युग परिवर्तन क्यों? कब? कैसे?, नारी जागरण ,ऋषि परंपरा का पुनर्स्थापन, अध्यात्म ही क्यों?, साधु जागे व ब्राह्मण चेतें, अध्यात्म का परिष्कृत स्वरूप, मनुस्य भटका हुआ देवता, युग परिवर्तन की सुनिश्चित संभावना, गायत्री महाविज्ञान -3 खंड, प्रज्ञा पुराण -3 खंड इत्यादि महानतम साहित्य सृजन करके ना सिर्फ भारतवर्ष पर उपकार किया वरन इस माध्यम से युग निर्माण आंदोलन की नींव डाली व भारतीय संस्कृति के विश्व संस्कृति बनने की दिशा में गुरुत्तर कार्य /प्रयास रहा है।

मध्य काल में विदेशी आक्रांताओं द्वारा भारतीय आर्ष बान्ग्ड़मय को जो अपूरणीय क्षति पहुंचाई गई,नष्ट किया गया था। आचार्य जी ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति,लेखनी द्वारा उसका पुनलेखन किया। चार वेद,18 पुराण, 32 स्मृतियां, 108 उपनिषद, एक नवीन ‘प्रज्ञा पुराण’ का सृजन ही नहीं किया। वेदों का सरलीकृत भास्य भी किया। इसी प्रकाण्ड विद्वता के परिणाम स्वरूप बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) ने उन्हें ‘वेदमूर्ति’ की उपाधि से सम्मानित किया। सामाजिक दुस्पृवृति- दहेजपृथा, नशा पर कठोर प्रहार किया, आन्दोलन चलाया। पर्यावरण संरक्षण हेतू भी ‘हरितिमा संवर्धन अभियान’ चलाया । सबसे बड़ी बात 3200 की संख्या में साहित्य का सृजन करके सारे युग की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर दिया। अपने वजन से तीन गुना साहित्य का सृजन करके ‘विश्व के सबसे बड़े लेखक’ होने का गौरव प्राप्त किया। “द बिग्गेस्ट आथर ऑफ द वर्ल्ड” कहलाए। किन्तु कभी प्रचार न्ही किया व सादा जीवन ही जिया।

आचार्य जी ने विश्व की प्रत्येक समस्या पर अपनी दिव्य दृष्टि से गहन चिंतन -मंथन करके, समाधान के सूत्र रूप में एक छोटी-छोटी पुस्तकों की श्रंखला आरंभ की इसकी संख्या सैकड़ों में है। युग की प्रत्येक समस्या का समाधान प्रस्तुत करके विश्व मानव समुदाय को उपकृत किया। आचार्य जी का साहित्य सृजन इतने बड़े पैमाने पर हुआ है कि- जिसे एक व्यक्ति यदि जीवन भर सिर्फ पढ़ने का ही काम करें, तब भी संपूर्ण साहित्य का पठन नहीं किया जा सकता है। अगले दिनों विश्व की दिशा व दशा क्या होगी? ‘विश्व का संविधान’ आचार्य जी द्वारा लिखकर रख दिया गया है। समय आने पर प्रकाशित होगा जो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ व ‘एक विश्व राष्ट्र ‘की अवधारणा को साकार करेगा।

भारतवर्ष की ज्ञान परंपरा,ऋषि परंपरा, आयुर्वेद परंपरा, ऋषियों की संस्कार परंपरा को पुनर्जीवित कर समाज में स्थापित करने हेतु युग निर्माण मिशन, देव संस्कृति दिग्विजय अभियान चलाया। गायत्री महाविद्या (सतयुग की) जिससे प्राचीन काल में संपूर्ण भारतवर्ष का समाज आप्लावित था। जिसके प्रभाव से भारत प्राचीन काल में जगतगुरु-विश्व गुरु की गरिमा से महिमामंडित था। भारतवासी ‘भूसूर’ कहलाते थे। को पुन: समाज में प्रसारित ही नहीं किया वरन विश्व मानव समाज के 20 करोड़ से भी अधिक नर- नारियों को दीक्षित कर देव मानव (नर से नारायण बनने के पथ पर) अग्रसर कर दिया। उनके जीवन का कायाकल्प कर दिया। वे सभी साधक गायत्री साधना से अपने जीवन को धन्य बनाते चले जा रहे हैं।

भारतवर्ष की शोडस संस्कार परंपरा के चलते प्राचीन काल में भारत नवरत्नों की खान था। ऋषियों की उसी संस्कार परंपरा को पुनर्जीवित किया । ‘आओ गढें संस्कारवान पीढ़ी’, अभियान आज गायत्री परिवार द्वारा संपूर्ण समाज रास्ट्र में चलाया जा रहा है।

भारतीय संस्कृति के पांच आधार स्तंभ (गो, गंगा, गीता, गायत्री, गुरु) की पुनः समाज में प्रतिष्ठा ही नहीं की वरन् समाज को इनके गूढ दर्शन व महत्व से भी परिचित कराया। इन्हीं पांच दिव्य आधारों पर भारतीय संस्कृति का महल खड़ा हुआ है। इनके विकास से ही भारत का वास्तविक उत्थान होगा। वह अभियान अब गति पकड़ चुका है। अध्यात्म विधा जिसके लिए भारत संपूर्ण विश्व में जाना जाता है। उस अध्यात्म विधा के वैज्ञानिक स्वरूप को आचार्य जी ने स्वयं भी जिया व समाज को अवगत कराया,प्रेरित किया। ‘भविष्य का धर्म वैज्ञानिक अध्यात्म’ इत्यादि ग्रंथ का सृजन किया व समाज के ‘आध्यात्मिक नव निर्माण की आधारशिला’ रखी। आचार्य जी का कथन है कि- “आत्म परिष्कार की साधना का नाम ही अध्यात्म है।”
” अध्यात्म मनुष्य को स्वर्ग तो नहीं भेजता अपितु उसे कहीं भी स्वर्ग के सृजन की सामर्थ अवश्य प्रदान करता है।”
” मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य समाज की सच्ची सेवा करते हुए अपना आत्म कल्याण कर लेना है। ”
इन्हीं दिव्य विचारों का अनुगमन करते हुए गायत्री परिवार ‘युग निर्माण -राष्ट्र निर्माण -विश्व निर्माण ‘के पथ पर द्रुत गति से बढ़ रहा है; एवं भारतवर्ष ‘विश्वगुरु की भूमिका ‘ में अग्रसर हो रहा है।

तुम्हें हिमालय अति प्यारा था, जीवन वैसा ही न्यारा था।
दुनिया भर की हर ऊंचाई,तुमने छोटी कर दिखलाई।
तपा दिया अपने जीवन को,जीवन कला सिखाई जग को।
दीन दुखी को गले लगा,जन -जन पर उपकार किया।
तुम दुनिया की पीर पी गए, युग के सच्चे पीर हो गये।।

आचार्य जी के द्वारा प्रचुर मात्रा में जो साहित्य का सृजन हुआ, उसका मूल्यांकन करना असंभव प्रतीत होता है।’ जीवन देवता की साधना आराधना’, उपासना समर्पण योग, साधना से सिद्धि -1 -2, गायत्री महाविद्या का तत्व दर्शन, गायत्री साधना के प्रत्यक्ष चमत्कार, व्यक्तित्व विकास हेतु उच्च स्तरीय साधनाएं, विज्ञान और अध्यात्म परस्पर पूरक, यज्ञ का ज्ञान विज्ञान, युग परिवर्तन कैसे? व कब?, भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व, हमारी संस्कृति इतिहास के कीर्ति स्तंभ, यत्र नार्यस्तु पूज्यंते -रमंते तत्र देवता,राष्ट्र समर्थ और सशक्त कैसे बने?, अमृत कण, मधु संचय, भावी पीढ़ी व उसका नवनिर्माण, शिक्षा एवं दीक्षा, चेतन-अचेतन एवं सुपर चेतन मन, शब्द ब्रह्मा-नाद ब्रह्मा, जैसे अदितीय ग्रंथों का लेखन करके समाज को दिशा दी, नवीन चेतना का संचार किया। दुनिया के किसी भी महापुरुष के व्यक्तित्व की ऊंचाई उसके कृतित्व, उसके विचारों,समाज के लिए किए गए योगदान से मापी जाती है।

महापुरुषों के महाप्रयाण के पश्चात उनके व्यक्तित्व- कृतित्व का मूल्यांकन, संकलन करके 10-20 खंडों में बान्ग्मय प्रकाशित किए जाते हैं। ऐसे ही आचार्य जी के महाप्रयाण 2 जून 1990 के पश्चात जीवन भर के विश्व वसुधा के लिए किए गए योगदान का जब मूल्यांकन, संकलन किया गया तब 108 खंडों में बान्ग्डमय का विशाल संच निर्मित हुआ। इसी से उनकी महानता का परिचय प्राप्त हो जाता है। उनके साहित्य का अध्ययन करने से पता चलता है की जैसे-आचार्य जी ने संपूर्ण विश्व का अध्ययन, अनुसंधान, ज्ञान, मंथन-चिंतन, प्रवास किया हो।

संपूर्ण विश्व के एक से बढ़कर एक गूढ़ उदाहरण उनके साहित्य में मिलते हैं। अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों की सरल वैज्ञानिक विवेचना भी उनकी एक विशेषता रही है। तभी ये पंक्तियाँ आचार्य जी के ऊपर सिद्द,घटित होती दिखाई पड़ती हैं-

“कहां छुपा बैठा है अब तक, वह सच्चा इंसान। खोजते जिसे स्वयं भगवान…
जिसने जानी पीर पराई, परहित में निज देह गवाई।
जिसने लगन दीप सी पाई, तिल-तिल जलकर ज्योति जलाई ।
जिसकी आभा से ही होता, देवों का सम्मान। खोजते जिसे स्वयं भगवान…

इतिहास में कभी-कभी ऐसे महामानव, इतिहास पुरुष,युगपुरुष धरती पर जन्म लेते हैं। जिनके विश्व वसुधा के कल्याण हेतु किए गए अप्रतिम,अद्वितीय, अनुपम, अतुल्य योगदान की जितनी भी प्रशंसा,साधुवाद, सराहना की जाए कम ही पड़ेगी। आपके द्वारा भारतीय संस्कृति के लिए किए गए अजस्र अनुदानों से यह समाज व वसुधा सदा ऋणी रहेगी।

युग साहित्य सृजन करके, युग का निर्माण करने हेतु एक अभिनव आंदोलन खड़ा करके संपूर्ण विश्व को विनाश के मार्ग से हटाकर सृजन व उज्जवल भविष्य की ओर ले जाने हेतु किये गए भागीरथी प्रयास, दुध्रर्स तप से विश्व मानव समुदाय,वसुधा सदा ऋणी रहेगी। युगों -युगों तक आपकी कीर्ति गाथाये गाई जाएंगी। आप गायत्री रुपी ज्ञान गंगा का धरती पर अवतरण करने वाले ‘युगऋषि’, ‘भागीरथ’ हैं। भारतीय संस्कृति और साहित्य को आपका अतुल्य योगदान रहा है। आज सम्पुर्ण भारतवर्ष की ओर से पुण्यतिथि,गायत्री जयंती-गंगा दशहरा पर युगऋषि आपको कोटिश: नमन- प्रणाम, श्रद्धांजलि।

लेख़क – डॉ. नितिन सहारिया (भारद्वाज)
संपर्क सूत्र – 8720857296