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पिता पुत्र का यह बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान

पिता पुत्र का यह बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान

पूजे न शहीद गए तो फिर, यह पंथ कौन अपनाएगा? तोपों के मुँह से कौन अकड़ अपनी छातियाँ अड़ाएगा? चूमेगा फन्दे कौन, गोलियाँ कौन वक्ष पर खाएगा? अपने हाथों अपने मस्तक फिर आगे कौन बढ़ाएगा? पूजे न शहीद गए तो फिर आजादी कौन बचाएगा? फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा? पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहाँ से आएगा?

धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा? (श्रीकृष्ण सरल की कविता)
सन 1857 पूरे भारत में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जग चुकी थी । एक रोटी और एक कमल के साथ यह संदेश पूरे देश भर में फैलाया जा चुका था कि अब हमें आजाद होना है और अंग्रेजी सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकना है ।

इसके लिए सशस्त्र संघर्ष भी करना पड़े तो हम करेंगे और उसकी तैयारी प्रारंभ हो चुकी थी । दुर्भाग्य से तय तिथि से पहले क्रांति की शुरुआत के कारण 8 अप्रैल 1857 को सैनिक विद्रोह को दमन करने के लिये मंगल पांडे को फासी पे चढ़ा दिया गया था तथा सैनिक विद्रोह और क्रांति की जानकारी अंग्रेजी सरकार को लग चुकी थी ।

1857 मे भारत के बहुत सारे क्षेत्रों में क्रांति का प्रसार हो चुका था बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश बुंदेलखंड और दिल्ली में क्रांति प्रारंभ हो चुकी थी । अंग्रेजी सरकार के सभी अधिकारी सतर्क हो चुके थे वे सभी रियासतों के राजा महाराजा से बातचीत करना और अपने गुप्तचर वहां पर भेज रहे थे कि यदि वह रियासतें अंग्रेजी सरकार के विरोध में कार्य करेंगी तो उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी ।

जबलपुर की 52 वी पलटन को मेरठ के सिपाहियों के विद्रोह की जानकारी मिल चुकी थी । जबलपुर में भी वहां की जनता ने गोंडवाना साम्राज्य (वर्तमान का जबलपुर मण्डला) राजा शंकर शाह के नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति प्रारंभ कर दिया था । जबलपुर क्रांतिकारियों का गतिविधि गया केन्द्र हो गया था ।

राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह दोनो पिता पुत्र एक बहुत अच्छे कवि भी थे अपनी ओजस कविता के माध्यम से वे जनमानस में क्रांति का संदेश दिया करते थे अंग्रेजों की 52 वी बटालियन के सैनिकों को रात्रि में अपने महल में अपनी कविता सुनाकर विद्रोह की ज्वाला सुलगा रहे थे ।

यह बात भी सच है कि राजा शंकर शाह की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब थी अंग्रेज सरकार उनको अपने पक्ष में रखने के लिए पेंशन भी दिया करती थी राजा शंकर शाह चाहते तो क्रांतिकारियों एवं क्रांति का दमन करके अपनी पेंशन भी बढ़वा सकते थे और कुछ अन्य प्रकार के लाभ ले सकते थे। किंतु उन्होंने अभाव में ही जीना पसंद किया जिस तरीके से महाराणा प्रताप ने जीना पसंद किया था कुछ भी हो जाए इस क्रांति का साथ देंगे समर्पण नहीं करेंगे संघर्ष करेंगे ।

सन 1857 में सितंबर माह के अंत में मोहर्रम के दिन अंग्रेजों पर आक्रमण की योजना बनी क्योंकि उस दिन अत्यधिक भीड़ भाड़ चहल-पहल रहेगी । अंग्रेजी सरकार ने खुफिया रूप से अपने एक गुप्तचर को फकीर के रूप में भेज दिया राजा की योजना की जानकारी उन्हें प्राप्त हो चुकी थी ।

अंग्रेज सरकार की 52 वी रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क के गुप्तचर उसको समय समय पर सूचना देते थे । विद्रोह का दिन पास आ गाया था । लेकिन उसके पहले ही 14 सितंबर 1857 को आधी रात में क्लार्क के द्वारा राजमहल घेर लिया गया राजा की तैयारी पूरी नहीं हो पाई राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह सहित तेरह अन्य लोगों को भी बंदी बना लिया गया ।

उन्हें जबलपुर रेलवे स्टेशन के पास अस्थाई जेल बनाकर कैद किया गया था ,साथ ही पूरे महल में हथियार और क्रांति की सामग्री थी उन्हें भी ढूंढा गया और उनके हाथ में एक कविता लगी राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह मां काली के भक्त थे माता की भक्ति आराधना के साथ उस समय के वर्तमान परिपेक्ष मे अंग्रेजों के संहार की अभिलाषा के रूप मे माँ काली से आराधना हेतु कविता लिखी –

मूंद मुख डंडिन को, चुगलों को चबाय खाई।
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु-संहारिका।
मार अंगरेजन, रेज कर देय, मात चंडी।
बचौ नहीं बैरी, बाल-बच्चे संहारिका।
शंकर की रक्षा कर, दास प्रतिपाल कर।
दीन की पुकार सुन, जाय मात हालिका।
खाय लै मलेच्छन को, देर नहीं करौ माता।
भच्छन का, तत्छन वेग, शत्रुनको कालिका।

वह कहते हैं ना युद्धों में कभी नहीं हारे, हम डरते हैं छल छंदों से, हर बार पराजय पायी है अपने घर के जयचंदों से राजा के राज्य में भी एक जयचंद था जिसका नाम गिरधारी लाल दास था । वह क्लार्क को राजा के साहित्य की कविताओं का अनुवाद करके अंग्रेजी में बताता था । कविता के आधार पर मुकदमा चलाया गया ।

“देश के इतिहास में पहली बार था जिसमें किसी लेख कविता या साहित्य के आधार पर मुकदमा चलाकर उसे मौत की सजा दी ।’’ उन्हें माफी मांगने को कहा गया साथ ही साथ धर्म परिवर्तन करने को कहा गया और अंग्रेजों से सहयोग करने को कहा गया जिसको उन्होंने मना कर दिया।

3 दिन में मुकदमा चलाया गया निर्णय भी हो गया और सजा का भी प्रारंभ कर दिया गया । 17 सितंबर 1857 को दोनों पिता-पुत्र को मौत की सजा सुनाने वक्त उनसे कहा था कि यदि वे माफी मांग ले तो सजा माफ कर दी जाएगी परंतु,

‘’यही तो खूबी है हमारे सच्चे वीरों देशभक्तों की उनके सर कट गए लेकिन सर झुके नहीं उन आजादी के मस्तानों और दीवानों ने क्षमा नहीं मांगी’’

परिणाम स्वरूप 18 सितंबर सन 1857 को अपने डर को बनाने के लिए अंग्रेज सरकार ने राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह को जबलपुर उच्च न्यायालय के पास खुले आसमान के नीचे दोनों राजाओं को तोपों से बांध दिया गया । तोप से बांधते समय राजा और राजकुमार दोनों ने सीना तानकर निडर खड़े रहे ।

भारत माता के वीर सपूत राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह ने भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए । तोप से उड़ाते समय वहां उपस्थित एक अंग्रेज अधिकारी लिखता है कि- ‘मैं अभी-अभी क्रांतिकारी राजा और उनके पुत्र को तोप से उड़ाये जाने का दृश्य देखकर वापस लौटा हूं। जब उन्हें तोप के मुंह पर बांधा जा रहा था तो उन्होंने प्रार्थना की कि भगवान उनके बच्चों की रक्षा करें ताकि वे अंग्रेजों को खत्म कर सकें।’

अंग्रजों का इस तरह सरेआम राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को तोप से बांधकर मृत्युदंड देने का उद्देश्य लोगों और राजाओं में अंग्रजों का डर पैदा करना था परन्तु अंग्रेजों के इस कदम से क्रांती और ज्यादा भड़क गई ।

लोगों द्वारा बड़ी संख्या में दूसरे ही दिन इस स्थान की पूजा की जाने लगी । 52वीं रेजिमेंट के सैनिकों में विद्रोह फ़ैल गया और इनकी टुकड़ी पाटन की ओर कूच कर गई । विद्रोह की आग मंडला, दमोह , नरसिंहपुर ,सिवनी और रामगढ तक फ़ैल गई । जगह-जगह अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांती फ़ैल गई ।

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का शंखनाद करने वाले गोंडवाना के अमर शहीद राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता । यह बलिदान की शुरुआत थी जबलपुर ने भी 1857 के समर में कितना बड़ा योगदान किया । हिमालय से ऊंचा साहस उनका जो सर किसी के सामने झुका नहीं मातृभूमि के खातिर किया सब अर्पण ऐसे वीरों को मेरा नमन …

तुमने दिया देश को जीवन देश तुम्हें क्या देगा अपनी आंख तेज रखने को नाम तुम्हारा लेगा।