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बालाघाट जिले का प्राचीन शिव मंदिर – दादा कोटेश्वर धाम

बालाघाट मध्यप्रदेश का एक बहुत ही महत्वपूर्ण जिला है | बालाघाट शहर इस जिले का जिला मुख्यालय है | बालाघाट जिले की सीमायें मध्य प्रदेश के मंडला, सिवनी, डिंडोरी जिलों से, महाराष्ट्र राज्य के गोंदिया, भंडारा जिलों से और छत्तीसगढ़ राज्य के राजनंदगांव जिला से लगी है | बालाघाट जिला वनों और प्राकृतिक संसाधनों के संपन्न है |

मलाजखंड में भारत की सबसे बड़ी ताम्बे की खदान है | वेनगंगा बालाघाट की सबसे प्रमुख नदी है | बालाघाट पहले देवगढ गोंड साम्राज्य का हिस्सा था जो 1743 में नागपुर के भोंसले मराठों के अधीन आ गया और बाद में अंग्रेजों ने कब्ज़ा कर लिया |

बालाघाट जिले का गठन अंग्रेजों द्वारा 1867 में मंडला, भंडारा और सिवनी जिले के हिस्सों को मिलाकर किया गया था | वर्तमान (2022) में बालाघाट जिले के अंतर्गत 10 तहसील आती है जो हैं-बालाघाट, बैहर, बारासिवनी, लांजी, खैरलांजी, परसवाडा, कटंगी, बिरसा, किरनापुर और लालबर्रा | 2011 की जनगणना के अनुसार बालाघाट जिले की जनसँख्या लगभग 17 लाख है |

बालाघाट में घूमने के लिए कई दर्शनीय पर्यटन स्थल और पिकनिक स्पॉट है परन्तु यहाँ के पर्यटन स्थलों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है । और ये स्थान अपनी सही पहचान नहीं पाना पाए हैं | फिर भी आस्था और संस्कृति के परिचायक हमारे तीज त्यौहार अपनी परंपराओं को बचाए हुए हैं इसी क्रम में श्रावण मास का महत्व हमारे ग्रंथों में बहुत अधिक पाया गया है । बालाघाट जिले का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। वहीं लांजी का प्राचीन शिव मन्दिर कोटेश्वर महादेव अपने आप में पौराणिक महत्व रखता है । यूं बात करें तो

लांजी तहसील की बात ही निराली है। एतिहासिक आध्यात्मिक नगरी कही जाने वाली नगरी लांजी संस्कृति को समेटे हुए तथा यहां की बेशकीमती वनसंपदा का अपना अलग महत्व है। अध्यात्म की धरती आशुतोष व देवाधिदेव महादेव की पूजा अर्चना करने हर शिव भक्त उत्सुक रहता है। क्योंकि वहां पर स्थित हैं दादा कोटेश्वर धाम से पहचान रखने वाला यानि शिव जी का प्राचीन मन्दिर । श्रावण मास हो या महाशिवरात्रि पर्व ,भोलेनाथ की आराधना करने भक्तगण वर्ष भर इंतजार करते हैं ।

इस मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी में किया गया था।  कल्चुरी कालीन कलाकृतियों से पता चलती है इस मन्दिर की प्रचीनता । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा मंदिर को स्मारक के रूप में वर्गीकृत किया गया है ।

इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। मंदिर में मुख मंडप, महा मंडप, अंतराला और गर्भगृह शामिल हैं। मुख मंडप और महा मंडप हाल ही में जोड़े गए हैं । अंतराला और गर्भगृह मूल संरचना हैं। गर्भगृह में एक गोलाकार योनि के भीतर एक शिव लिंग है । गर्भगृह के द्वार को अलंकृत रूप से उकेरा गया है। गर्भगृह की बाहरी दीवारों को बड़े पैमाने पर मूर्तियों से सजाया गया है। मंदिर परिसर में टूटी हुई मूर्तियाँ और स्थापत्य के टुकड़े देखे जा सकते हैं ।

यहां मंदिर के सामने श्मशान होने व प्राचीन नरसिंह मंदिर होने से यह तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले साधकों के लिए खास है। यहां दधिचि ऋ षि के तप करने का भी उल्लेख मिलता है । यह उनकी तपोभूमि भी रही है ।

श्रावण मास में लगने वाले मेले का अपना महत्व है । कोटेश्वर धाम लांजी परिसर को पहले से ही पुष्पों से सजाकर और भी आकर्षक कर‌ दिया जाता है । यहां की कावड़ यात्रा अपने आप में ही अनूठी है ।

श्रावण मास प्रारंभ होते ही कोटेश्वर महादेव मंदिर में जो कि 108 उपलिंगो में से एक है, कावड यात्रा में लांजी से 42 कि. मी. दुर स्थित चहेली (सीतापाला) छोटी बाघ नदी के उद्गम से कांवड़ द्वारा कावडिय़े नंगे पैर जंगल के कठिन रास्ते नदी नाले पार करते हुए सीतापाला जंगल, टिमकीटोला, रिसेवाड़ा, बम्हनवाड़ा वारी, लोहारा, कालीमाटी, नीमटोला, लांजी को पार करते हुए कोटेश्वर मंदिर पहुँच कर जलाभिषेक करते हैं ।

शिवरात्रि पर्व हो या नवरात्रि या कोई भी धार्मिक प्रसंग ऐसे अवसर पर कोटेश्वर धाम, पांढरी पाठ धाम व बालाजी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है । इन त्रिवेणी संगम स्थलों का दर्शन कर भक्त अपने को धन्य मानते हैं। बाहर से आने वाले श्रद्धालु भक्त इन तीनों स्थलों का दर्शन करने अवश्य पहुंचते हैं । एतिहासिक आध्यात्मिक नगरी लांजी के प्रसिद्ध स्थल‌कोटेश्वर धाम, पांढरी पाठ धाम, बालाजी मंदिर, लांजी किला, लंजकाई मंदिर, काली मंदिर भी बहुत प्रसिद्व है ।

लेखिका – सुषमा यदुवंशी
सम्पर्क सुत्र – 8793360333