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भारत के अमर बलिदानी गोंड राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह

भारत भूमि में राष्ट्र को अपना सर्वस्व निछावर करने वाले सपूतों की कभी कोई कमी नहीं रही, बस दुख इस बात का है की इस भूमि में अपनी लालच और स्वार्थ से वशीभूत होकर लूटने वाले भी बहुत थे और आज भी है। भारत की संगठित सुदृढ़ ढाँचे को इन्हीं लोगों ने स्वार्थी जामा पहनाकर सदैव लूटने का सफल प्रयास किया। तभी तो आज हम ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र वर्ण व्यवस्था के अतिरिक्त अलग-अलग पंत व्यवस्था, धर्म व्यवस्था में बांटे गए। यहाँ तक की हमें आर्य अनार्य बताकर हमारे जनजाति परिवारों को भी खंड खंड कर दिया।

किंतु हमारे पूर्वज सदैव से एकता का संदेश देते रहे। जनजाति समाज भी इन्हीं में से एक है। गोंड साम्राज्ञी रानी दुर्गावती, बिरसा मुंडा, टंट्या भील या गोंड वंश के वंशज शंकर शाह रघुनाथ शाह इन सभी ने अपने राष्ट्र की एकता अखंडता को अक्षुण्ण बनाएँ रखने के लिए अपने प्राणों की आहुतियाँ देदी।

 भारत माँ के पैरों में पड़ी परतंत्रता की बेड़ियों को काटने के लिए भारत का प्रत्येक जनमानस अपने – अपने सामर्थ्य से प्रयास करता रहा। इसी श्रंखला में मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले की ग्राम मंडला साम्राज्य के वंशज राजा शंकर शाह, राजा रघुनाथ शाह आते हैं।

Balidan Diwas Real Story Of Raja Raghunath Shah And Shankar Shah - balidan diwas तोप के मुंह के सामने बांधकर उड़ा दिया था इन बाप बेटे को, छंद सुन कांप गए थे

यह साम्राज्य हजारों वर्ष प्राचीन था जिसकी वंशबेल इतिहास के पन्नों में आज भी संरक्षित है गोंड साम्राज्य का अभ्युदय 358 ईसवी में हुआ था। आप की वंश परंपरा महाभारत कालीन एकलव्य से जुड़ी हुई मानी जाती है। लेख प्रदेशों में प्रमाण है कि यदुराव मरावी जी को भगवान रामजानकी का आशीर्वाद मिला उसके पश्चात् इन्होंने नागवंशी कन्या से विवाह कर अपनी वंश परंपरा को आगे बढ़ाया आपकी 48 वी पीढ़ी में संग्राम शाह का जन्म हुआ जिन्होंने गढ़ा मंडला साम्राज्य का विस्तार किया 52 गढ़ 52 परगनों की स्थापना आप के शासनकाल में ही हुई। आपको भगवान भैरव बाबा की सिद्धियाँ प्राप्त थी, जिनके प्रताप से आपने बाजनामठ मठ की स्थापना की।

संग्राम शाह के 2 पुत्र थे दलपत शाही या दलपत शाह मरावी और चंद्र शाह मरावी दलपत शाह जेष्ठ पुत्र होने के साथ-साथ नेतृत्व क्षमता में कुशल थे, अतः संग्राम शाह के पश्चात राजपाट की बागडोर दलपत शाह के मजबूत हाथों आ गयी, किंतु दलपत शाह की मृत्यु के पश्चात उनके अवयस्क पुत्र “वीर नारायण” का राज्याभिषेक किया गया और दलपत शाह की पत्नी महारानी दुर्गावती ने आपने पुत्र वीर नारायण की संरक्षिका बनकर राजपाट चलाना प्रारंभ कर दिया।

लगभग साढे 16 वर्ष कुशल शासन चलाते हुए 24 जून 1564 को आदिल खां और उनके देवर चंद्र शाह के षड्यंत्र से रानी परास्त होकर वीरगति को प्राप्त हुई। यहाँ से सत्ता को पाने का स्वार्थी संघर्ष प्रारंभ हो गया। चंद्र शाह ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। उनकी 11 वीं पीढ़ी में शंकर शाह का जन्म हुआ आपके पिता सुमेर (सुमेदशाह) शाह (1790) के पश्चात इस वंश के राजा नाम मात्र के शासक बन कर रह गए। प्रजाजन आज भी अपने राजा को अपने पूर्वजों की भांति ही मान सम्मान देती थी।

शंकर शाह रघुनाथ शाह जी का जन्म मंडला के किले में हुआ था जिसका निर्माण उनके पूर्वज नरहरी शाह अर्थात नरेंद्र शाह ने 1698 में कराया था इसके किले का वैशिष्ट्य यही था कि यह किला सुरक्षा की दृष्टि से तीन और माँ नर्मदा जी की अथाह जल राशि से घिरा हुआ था तो एक ओर से ऊँची ऊँची प्राचीर से। नरहरी शाह और सुमेर (सुमेद) शाह आपस में चचेरे भाई थे दोनों में गोंड साम्राज्य की सत्ता को लेकर संघर्ष से चल रहा था। सुमेर शाह को सागर के मराठा राजा का संरक्षण था तो नरहरी शाह को नागपुर के भोंसले राजा का संरक्षण, किंतु 1818 में मंडला का गोंड साम्राज्य अंग्रेजों के संरक्षण में आ गया।

शहीद राजा शंकर शाह - रघुनाथ शाह मडावी | Raja Shankar Shah-Raghunath Shah Madavi - ~ Dindori MP Tourism

शंकर शाह अपने पूर्वजों की भांति स्वतंत्र राजा नहीं रहे। अब इनके पास गढ़ा पुरवा और आसपास के कुछ गाँव की जागीर मिलाकर कुल 947 बीघा जमीन ही थी और शेष अंग्रेजों ने कूटनीति से हथियाकर अपने अधिकार क्षेत्र में ले ली। इन्हें मात्र कुछ रुपए की पेंशन प्राप्त होती थी। शंकर शाह का विवाह रानी फूलकुंवर से हुआ था। इनका एक पुत्र था रघुनाथ शाह। रघुनाथ शाह का विवाह रानी मनकुंवर से हुआ था। आपका भी एक पुत्र था जिसका नाम था लक्ष्मण शाह। जब शंकर शाह और रघुनाथ शाह जब अपने देश के लिए शहीद हुए तब शंकर शाह की आयु 70वर्ष और रघुनाथ शाह की आयु 32वर्ष थी। इन पिता पुत्र के बलिदान के पश्चात सास बहू ने साथ मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया और वे भी वीरगति को प्राप्त हुई।

लॉर्ड डलहौजी की राज्य को हड़प नीति के अंतर्गत अंग्रेजों ने भारत की ऐसी कई छोटी बड़ी रियासतों को अपने शासन में विलय कर लिया था। दूसरा गाय एवं सूअर की चर्बी वाले कारतूसों की घटना ने आम भारतीयों को एक कर दिया था। राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह यह सब देख कर बहुत आहत थे।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय शंकर शाह के नेतृत्व में जबलपुर में क्रांतिकारियों की घटनाएँ बढ़ने लगी। जबलपुर इन्हें प्रश्रय देने का गढ़ बन गया था। उस समय जबलपुर में 52 वी रेजीमेंट तैनात थी, जिसके कई सिपाही अंग्रेजों के विरुद्ध थे। लगभग 10 से 12 सिपाहियों ने मिलकर अंग्रेजों को मारने की योजना बनाई। योजना थी कि मोहर्रम के दिन क्रांतिकारी अंग्रेजों पर आक्रमण करेंगे। इसकी भनक अंग्रेजी अधिकारियों को लग गई,डिप्टी कमिश्नर ने इस संबंध में और जानकारी जुटाई तथा 13 सितंबर को एक चपरासी को फकीर के भेष में भेजकर स्वयं प्रमाण जुटाने का सफल प्रयास किया।

शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने फकीर पर विश्वास करके अपनी पूरी योजना फकीर भेष रखे चपरासी को दे दी। 14 सितंबर को डिप्टी कमिश्नर ने ले वर्ल्डविन के साथ 20 घुड़सवार और 40 पैदल सिपाहियों को लेकर गढ़ा पुरवा का घेराव कर दिया और शंकर शाह रघुनाथ शाह सहित 14 लोगों को बंदी बना लिया।

एक सूत्र ऐसा भी है जिसके अनुसार इन पिता पुत्रों ने अपने साथ के लोगों को जागरूक करने के लिए अपनी कुलदेवी माँ चंडी भवानी को एक कविता समर्पित की जो संदेश के रूप में थी। 18 सितंबर 1857 को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के अपराध में पिता-पुत्र को मृत्यु दण्ड दिया गया। मृत्यु के पूर्व पिता पुत्र ने अंतिम इच्छा के रुप में इसी कविता का वाचन करते हुए अपनी प्रजा को जगाने का प्रयास किया। कविता इस प्रकार थी-

मूँद मूख डण्डिन को चुगलों की चबाई खाई
खूब दौड़ दुष्टन को शत्रु संहारिका।

मार अंगरेज रेज कर देई मात चण्डी
बचे नाहिं बैरी (शत्रु) बाल बच्चे संहारिका।

संकर की रक्षा कर दास प्रतिपाल कर
वीनती हमारी सुन अब मात पालिका।

खाई लेइ मलेच्छन को झेल नाहिं करो अब
भच्छन ततत्छन (इसी पल) कर बैरिन कौ कालिका।।

दूसरा छन्द पुत्र ने और भी उच्च स्वर में सुनाया।

 कालिका भवानी माय अरज (प्रार्थना) हमारी सुन
डार मुण्डमाल गरे (गले) खड्ग कर (हाथ) धर ले।

सत्य के प्रकासन औ असुर बिनासन कौ
भारत समर माँहि चण्डिके संवर ले।

झुण्ड-झुण्ड बैरिन के रुण्ड मुण्ड झारि-झारि
सोनित की धारन ते खप्पर तू भर ले।

कहै रघुनाथ माँ फिरंगिन को काटि-काटि
किलिक-किलिक माँ कलेऊ खूब कर ले।।

बाद में अंग्रेजी सरकार ने दोनों को तोप के मुँह में बाँधकर उड़ा दिया। यह स्थान जबलपुर के हाई कोर्ट और रेलवे कार्यालय के पास स्थित है। शंकर शाह की पत्नी रानी फूल कुंवर ने पति-पुत्र के बिखरे शरीर को एकत्रित कर विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया और अंग्रेजों से बदला लेने का प्रण भी लिया। इन राज वंशियों को उनकी प्रजा के सामने खुले मैदान में तोप के मुँह में बांधकर उड़ाने के पीछे अंग्रेजों का मूल उद्देश्य आम जनमानस को भयभीत करना था, किंतु इस घटना के पश्चात गढ़ा मंडला के पूर्व साम्राज्य में (मंडला, दमोह, सिवनी, नरसिंहपुर, रामगढ़ इत्यादि में) सशस्त्र क्रांति फैल गई। जिसमें रानी अवंती बाई भी सम्मिलित थी रानी अवंतीबाई ने अंग्रेजों को परास्त करके पुनः मंडला स्वतंत्र करा लिया। धूर्त अंग्रेजों ने अपनी कूट नीतियों से इस आंदोलन को दबा दिया जिसमें रानी फुलकुंवर, रानी मनकुंवर, रानी अवंती बाई आदि शहीद हुई स्वतंत्रता संग्राम के इन महान नायकों को, इन अमर बलिदानियों को इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में स्थान नहीं मिला।

गोंड राज्यवंश का आदि काल से भारत के इतिहास में अद्वितीय योगदान रहा। आज भी “फूट डालो शासन करो नीति” के अंतर्गत वनवासी समाज को हिंदू समाज से तोड़ने के लिए राजनीतिक षड्यंत्र चलाएं जा रहे हैं ,परंतु साँच को आंच कहाँ गोंड साम्राज्य की वंश बेल में दिए गए राजा राजाओं की नामावली हिंदु देवी देवताओं से जुड़े हुए है। स्वयं साम्राज्ञी रानी दुर्गावती का नाम दुर्गा देवी के नाम पर आधारित था। गढ़ा मंडला साम्राज्य का साहित्य सनातन धर्म प्रधान था। यहाँ तक कि गढ़ा में स्थित लघु काशी, पचमठा मंदिर, देवताल में ठाकुर जी की गद्दी, बाजनामठ में स्थित श्री भैरव मंदिर इस बात का प्रमाण है, कि गौंड प्राचीन काल से ही सनातनी हिंदुओं ही थे। 1857 की क्रांती में अपना अमूल्य योगदान देने वाले अमर शहीद राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को हमारा शत-शत नमन्

लेखिका:- डॉ. नुपूर निखिल देशकर