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भारत के विरुद्ध एक षड्यंत्र

सनातन धर्म विश्व के संपूर्ण धर्मों का मूल है और सनातन धर्म का मूल देवाधिदेव ,आदि अनंत देव, महादेव है जिनकी प्रसन्नता से प्रकृति का प्रारंभ होता है और जिनके क्रोधित होने पर प्रकृति में प्रलय होता है।

सनातनी संस्कृति में चाहे नगरवासियों, ग्रामवासियों हो या वनवासी सभी भगवान महादेव को पूजते मानते आ रहे हैं ।वनवासी क्षेत्र के रहवासी जो प्रकृति को अपनी माँ मानते हैं उनके लिए भगवान शिव बड़ा देव या बड़े बाबा या बूढ़ादेव के रूप में पूजे जाते हैं वही ग्रामों,नगरों और महानगरों में रहने वाले रहवासी भगवान शंकर को आदि देव ,महादेव के रूप में पूजते हैं।इससे स्पष्ट होता है कि भारत की भूमि में जन्म लेने वाला चाहे वनवासी हो, ग्रामीण हो या नगरवासी सब भारत के मूल निवासी ही है।

इतिहास इन उदाहरणों से भरा पड़ा है जब जब भारत की सीमाओं में विदेशी आक्रांताओं ने आक्रमण किया तब तक इन वनवासी, वनप्रदेश में रहने वाले लोगों ने उनसे युद्ध किया और राजा महाराजाओं को युद्ध में सहयोग दिया।चंद्रगुप्त को भी धनानंद से युद्ध में जीतने के लिए विंध्य प्रदेश की जनजाती ने सहयोग दिया।

ऐतिहासिक गौड़ साम्राज्य की महारानी दुर्गावती का नाम इतिहास के प्रथम पृष्ठ में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है जिन्होंने अफ़गानी सुल्तान बाज बहादुर हो या अकबर द्वारा भेजा गया आक्रांता आसफ़ खां इन सभी को युद्ध में महारानी दुर्गावती ने गौंड योद्धाओं के साथ साथ सामान्य योद्धाओं को साथ मिलाकर कर बनी सेना के सहयोग से ही युद्ध जीते।

                                            महारानी दुर्गावती

एक ओर महारानी दुर्गावती अकबर द्वारा भेजे आसिफ़ खान से युद्ध लड़ रही थी तो दूसरी ओर महाराणा प्रताप अकबर द्वारा भेजे मानसिंह और उसकी विशाल सेना से युद्ध लड़ कर अपने देश की रक्षा कर रहे थे।इस समय लड़ाकू भील “पूंजा भील” ने अपनी विशाल सेना के साथ मिलकर महाराणा प्रताप को अकबर के विरुद्ध युद्ध लड़ने में सहयोग दिया।

छत्रपति शिवाजी ने मुगलों के हाथों से 250 गढ़ों (किलो) को इन्हीं वनवासी मावलों के सहयोग से जीता था और अखंड हिंदवी साम्राज्य की स्थापना की थी।

अपनी संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा के लिए युद्ध चाहे मुगलों से लड़ा गया हो या अंग्रेजों से इस युद्ध में वनवासियों और नगर वासियों ने अपना विशेष योगदान दिया। एक उदाहरण भगवान बिरसा मुंडा का अगर यहाँ प्रस्तुत नहीं किया तो मेरी बात अधूरी रहेगी।

एक बार रविवार के दिन चाईबासा गांव में जब मिशन के लोग प्रार्थना कर रहे थे तब फादर नोट्रेट ने मुंडा जाति के गांव को मिशन के हाथों सौंपने की बात की, तब बिरसा मुंडा ने इसका विरोध किया और मात्र 14 वर्ष की आयु से मुंडा समुदाय की उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। अंग्रेजों के अत्याचारों के बाद भी मुंडा जनजाति ने बिरसा मुंडा का साथ नहीं छोड़ा
हर कदम पर, विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने अपनी सेनानायक अपने भगवान ,अपने आदर्श, बिरसा मुंडा का साथ दिया और भारत राष्ट्र की स्वतंत्रता में अपना अनमोल योगदान दिया।

                                        भगवान बिरसा मुंडा

आदिवासी शब्द अंग्रेजों के द्वारा प्रदान किया गया शब्द है जिन आदिवासी समाज में ईश्वर के रूप में महादेव माता पार्वती इत्यादि देवी देवताओं का पूजन किया जाता रहा है जो भारत की मूल जातियों में से एक है ये अपने आदि देवताओं को छोड़कर अन्य धर्मों में कैसे परिवर्तित हो गयें। जिनके पूर्वजों ने सदैव अपने धर्म की ,अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए अपने प्राण आहूत कर दिए आज उनका विदेशी धर्मों के प्रति समर्पण देश की एकता को खंडित करने का षड्यंत्र लगता है।

आदि काल से है हमारे वेद उपनिषदों में इसके प्रमाण मिलते हैं कि ये जनजाति समाज सनातन धर्म को मानने वाले लोग का समाज रहीहै , भील भक्त शबरी ,भक्त निषाद राज, आदि ने भगवान श्रीराम को भी धर्म की स्थापना के लिए सहयोग दिया था। वहीं महाभारत काल में भी एकलव्य के रूप में वनवासी समाज का प्रमाण मिलता है जिनका संबंध नागवंशीयों से है और इन्हीं नागवंशियों की एक शाखा गढ़ा राजवंश से मिलती है।

ऐसे अनगिनत प्रमाणों के होते हुए आज इनका सनातन धर्म से पृथक होना हमारे देश की सुरक्षा और एकता को किसी घोर संकट में डालने जैसा है।

भारत विरोधी विचारधारा के लोगों ने एक ओर भारतीय वनवासी समुदाय को आदिवासी शब्द प्रदान कर आर्य और अनार्य संस्कृति में विभाजन किया वही शेष हिंदू समाज के पंथ को धार्मिक जामा पहनाकर सनातनी संस्कृति से पृथक किया। इसके पीछे का मूल भाव जो था वो यही था कि भारत जैसे विशाल देश को यदि तोड़ना है तो हिंदुओं की एकता को सबसे पहले तोड़ना होगा जिसके माध्यम से यह भारत जैसे विशाल देश में अपने धर्म का, अपनी विचारधारा का प्रचार कर सके। जिस तरह वनवासी समुदाय प्रकृति की पूजा करते हैं उसी तरह देश के अन्य सनातनी समुदायों द्वारा प्रकृति की पूजा हजारों वर्षों पूर्व उनके पूर्वजों द्वारा की जाने वाली परंपरा का आधार है।

अखंड भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए आज समय की माँग है कि नगर ग्राम और वन में रहने वाले प्रत्येक भारतीय को अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का अनुकरण करते हुए राष्ट्र और सनातन धर्म का विरोध करने वाली विचारधाराओं के विरोध में संगठित होकर कार्य करना होगा।