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मंडला के प्रत्येक घाट पर डोल ग्यारस में भगवान करते हैं जलविहार…

मंडला के प्रत्येक घाट पर डोल ग्यारस में भगवान करते हैं जलविहार…

“तन पवित्र सेवा किए धन पवित्र कर दान मन पवित्र हरी भजन कर हो त्रिविध कल्याण

सनातन धर्म के अनुसार व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी व्रत को कहा जाता है जिस प्रकार नदियों में गंगा, प्रकाशक तत्वों में सूर्य ,देवताओं में भगवान विष्णु की प्रधानता है उसी तरह व्रतों में एकादशी व्रत की प्रधानता है…

भौतिक जगत में हमारी प्रवृत्ति भोगों की रहती है किंतु भगवत प्राप्ति के लिए वैराग्य होना चाहिए ।अतः संसार के सभी कार्यों को करते हुए भी कम से कम पक्ष में एक बार अपने संपूर्ण भोगों से विरत होकर अपने ‘स्व’ मे स्थित हो सके इसीलिए एकादशी व्रत का विधान है अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार जो संभव करना चाहिए पुराणों में 26 एकादशी की अलग-अलग कथाएं आती है।

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु विश्राम के दौरान करवट बदलते हैं। इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी को पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। परिवर्तिनी एकादशी व्रत और पूजा का महत्व वाजपेय यज्ञ के समान माना गया है।

श्रीकृष्ण जन्म के अठारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जल पूजन (घाट पूजन) किया था। इसी दिन को ‘डोल ग्यारस’ के रूप में मनाया जाता है। जलवा पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरुआत होती है। कहीं इसे सूरज पूजा कहते हैं तो कहीं दश्टोन पूजा कहा जाता है। जलवा पूजन को कुआं पूजा भी कहा जाता है। इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी, वामन एकादशी आदि के नाम से भी जाना जाता है।

आज के दिन मंडला में नर्मदा तट के किनारे बहुत बड़ा मेला लगता है जो कि काफी प्रसिद्ध है लेकिन कोरोनावायरस के कारण इस बार सभी श्रद्धालु अपने घर पर ही रहकर इस पवित्र त्यौहार को मना रहे हैं इस दिन लक्ष्मी पूजन करना अभी श्रेष्ठ माना जाता है ।’डोल ग्यारस’ के अवसर पर कृष्ण मंदिरों में पूजा-अर्चना होती है।

भगवान कृष्ण की प्रतिमा को ‘डोल’ (रथ) में विराजमान कर उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। इस अवसर पर कई गाँव-नगर में मेले, चल समारोह और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। अखाड़ों के उस्ताद व खलीफा तथा कलाकार अपने प्रदर्शन से सभी का मन रोमांचित करते हैं मान्यता है कि वर्षा ऋतु में पानी खराब हो जाता है…

लेकिन एकादशी पर भगवान के जलाशयों में जल विहार के बाद उसका पानी निर्मल होने लगता है। शोभायात्रा में सभी समाजों के मंदिरों के विमान निकलते है। कंधों पर विमान लेकर चलने से मूर्तियां झूलती हैं। ऐसे में एकादशी को जल झूलनी कहा जाता है।