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मध्यप्रदेश की पावन धरती का लाल : छत्रसाल

केशव राय मंदिर की रत्न जड़ित मूतियों को आगरा में स्थित नबाब बेगम की मस्जिद की सीढ़ियों में लगाया जाना जैसे अनेक कुकृत्यों को देखकर वीर छत्रसाल का मन अत्यधिक व्यथित हो गया था. उन्होंने स्वदेश, स्वधर्म और स्वाभिमान की रक्षा के लिये अपना पूराजीवन मुगल शासकों और मुगलों के अनाचारों के खिलाफ समर्पित कर दिया.

वे मध्यप्रदेश की वीर भूमि में जन्म लेने वाले एक महानायक थे. उनका नाम अत्यन्त ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है. उनकी विशेषता भी यही थी कि वे न तो किसी राजपरिवार में जन्मे थे, न ही उन्हें राजशाही की तनिक सी भी सुविधायें उपलब्ध थीं. वे शून्य से उपजे परिस्थिति जन्य महायोद्धा बने थे, और तमाम विपरीतताओं से जूझते हुये समाज का नेतृत्व किया, वह भारत का वैसा काला युग था, जब विदेशी आततायियों का अत्याचार चरम पर था.

इस प्रकार की तमाम विपरीत परिस्थितियों में शिवाजी महाराज और राणा प्रताप, गुरूनानक  आदि पूर्ववर्ती महापुरूषों से प्रेरणा लेते हुये भारत के हृदय स्थल में इस वीर बुंदेला सरदार ने अपने कृतित्व एवं अपने अदम्य साहस के बल पर आततायियों को रौंद देने के संघर्ष का बिगुल फूँका.

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यह महामानव केवल एक वीर योद्धा मात्र नहीं था, वह प्रतिभावान कवि ओजस्वी वाणी वाला चमत्कारिक व्यक्तित्व युक्त साहसी युवक था. इसके आवाहन पर हजारों की संख्या में युवक हाथों में तलवारें लेकर घरों से बाहर निकल पड़ते थे. इन युवकों को अपने साथ लेकर बुंदेलखण्ड की भूमि से बाहर मालवा, बघेलखण्ड, पंजाब व राजस्थान पहुंच कर अलख जगाने का महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया.

विदेशी मुगल आततायियों के विरूद्ध एक अनोखा इतिहास रचने वाले वीर छत्रसाल की यश-गाथायें आज भी स्थान- स्थान पर सुनने को मिल जाती हैं, जिन्हें सुनकर, तलवारों की खनक भरा उत्साह आँखों के सामने साकार हो उठता है.

इस महान वीर अत्यधिक साहसी महामानव का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत् 1706 सन् 1649 को वर्तमान मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले के लिघौड़ा ब्लाक स्थित कंकर-कंचन ग्राम में हुआ था. 12 वर्ष की आयु होते होते माता-पिता शत्रुओं/आततायियों की भेंट चढ़ चुके थे, ऐसी विषम विपरीत परिस्थितियों में इस अबोध बालक का लालन-पालन कैसे हुआ होगा- इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है. लेकिन यह बालक न झुका, न टूटा और न ही रूका। चल पड़ा अगले पड़ाव की ओर.

माता-पिता की धरोहर के रूप में कुछ गहने जब पड़ोसी ने वापिस दिये, तब उनके उत्साह को और गति मिल सकी. उन्हें बेचकर छत्रसाल ने पाँच घोड़े पच्चीस सवार की एक छोटी सेना तैयार की. एक टिमटिमाते दीपक ने आगे बढ़ने का अपना संकल्प दोहराया और आगे बढ़ता चला गया  कारवाँ.

अपनी बहादुरी का ध्वज फहराता यह युवक धामौनी, पवाया, मैहर बघेलखण्ड पर अधिकार करते हुये ग्वालियर पर आक्रमण किया और उसे भी अपने अधिकार में लिया. अनेकों वीरतापूर्ण कृत्यों के द्वारा स्थानीय रणबाँकुरों का साथ लेते विदेशी आक्रान्ताओं के खिलाफ अपने संघर्षों से इतिहास रच दिया.

सन् 1675 में महामति प्राणनाथ जी महाराज का सानिध्य प्राप्त हो गया जिससे उन्हें अपूर्व ऊर्जा प्राप्त हुयी. सन् 1687 में उन्होंने पन्ना को अपनी राजधानी में तब्दील कर दिया तथा अपना ध्वज फहरा दिया. यह विजय पताका यहीं नहीं थमी. विजयरथ आगे बढ़ता हुआ चित्रकूट से ग्वालियर कालपी तक जा पहुँचा.

महाराजा छत्रसाल - विकिपीडिया

वीर छत्रसाल ने अपनी 82 वर्ष की आयु में नौगाँव के समीप पौष शुक्ल 3, दिसम्बर 1731 को अपने शरीर का परित्याग कर दिया.

उन्होंने अपने संघर्ष काल के दौरान ही अनेकों ग्रंथों की भी रचना की. उनके साहित्य का सम्पादन प्रख्यात कवि, लेखक वियोगी हरि ने सन् 1726 में छत्रसाल ग्रंथावली के रूप में किया था. उनके एक और ग्रंथ ‘छत्रसाल विलास ग्रंथ’ का भी उल्लेख मिलता है. वे कवि और साहित्यकारों का बड़ा सम्मान करते थे.

इस इतिहास के महानायक को बुन्देलखण्ड केशरी के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने विदेशी मुगल सत्ता के अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ जीवन समर्पित कर देने के संकल्प का पूरी तरह निर्वाह किया.  यह वह समय था, जब इस देश पर मुगलों द्वारा पाश्विक घटनाओं की डोर थम नहीं रही थी, मन्दिरों और मूर्तियों को तोड़ा जा रहा था, इतिहास, भाषा साहित्य, कला और शिल्प आदि का विनाश/विध्वंश किया जा रहा था. हिन्दुओं के श्रद्धा केन्द्रों, तीर्थ स्थलों को अपमानित किया गया था. हिन्दू महिलाओं के शीलयंग की घटनाओं को योजनाबद्ध तरीके से चलाया जा रहा था. मुगल आक्रान्ता अपनी धर्मान्ध कट्टरता को घिनौने कृत्यों द्वारा तांडव मचा रहे थे, साथ ही तलवार की नौंक पर सत्ता, कपटाचार के साथ प्रलोभन द्वारा धर्मान्तरण कराया जा रहा था. इन कुकृत्यों को कैसे भुलाया जा सकता है?

12 अप्रैल 1769 को हिन्दुओं पर ‘जजिया कर’ थोपा गया, 9 अप्रैल 1669 का हिन्दुओं के मन्दिर और और विद्यालय नष्ट कर देने औरंगजेब ने अपना आदेश जारी किया. मथुरा का नाम इस्लामावाद कर दिया गया था. केशवराव मन्दिर ध्वस्त किया गया था.

लेखक :- डॉ. किशन कछवाहा 
संपर्क सूत्र :- 9424744170