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मस्जिदों में लाउड स्पीकर और सड़कों में नमाज के मायने

हमारे देश में मुस्लिमों के लिये विवाह, उत्तराधिकार एवं अन्य मामलों को लेकर उनके मजहब के हिसाब से पर्सनल ला लागू है। जिसके तहत वह इस्लाम के अनुसार चार विवाह तक कर सकते हैं।

जब तक इस देश में तीन तलाक प्रथा मोदी सरकार द्वारा नहीं समाप्त कर दी गई, तब तक तीन तलाक भी एक तरह से वह निजी या धार्मिक अधिकार ही जैसा था। यह बाते तो अपनी जगह पर हैं पर देश में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञों की तुष्टिकरण या वोट बैंक की राजनीति के चलते इस देश में मुस्लिम समुदाय ने और भी बहुत से मामलों में अपना विशेषाधिकार समझ लिया।

उदाहरण के लिये एक दशक पूर्व तक सड़कों में नमाज पढ़ना- इसके चलते मुम्बई जैसे महानगरों और दूसरे नगरों में भी जनजीवन कई-कई घंटो तक रूक जाता था। इसी प्रवृत्ति में लगाम लगाने के लिये बाला साहब ठाकरे के दौर में शिवसेना और हिन्दू संगठनों ने मुम्बई की सड़कों पर महाआरती करने का अभियान चलाया था, जिससे सड़कों पर नमाज पढ़ने की प्रक्रिया पर बहुत कुछ रोक लगी।

namaz yogi government order: namaz done on road in deoria uttarpradesh yogi adityanath order not followed देवरिया में ईद की नमाज सड़क पर पढ़ी गई, देवरिया में नमाज को लेकर पुलिस प्रशासन

यद्यपि केन्द्र में मोदी सरकार आने के बाद सड़कों पर नमाज पढ़ने जैसी प्रवृत्ति पर बहुत कुछ रोक लगी, लेकिन गैर भाजपा शासित राज्यों में अब भी यह समस्या गम्भीर रूप से बनी हुई है। अभी ईद के दिन बंगाल, महाराष्ट्र और राजस्थान में खास तौर पर सरकारी संरक्षण में सड़कों में नमाज पढ़ी गई, जिसमें घंटो-घंटो तक आवागमन बाधित रहा और लोग बहुत परेशान हुये।

वर्तमान दौर में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने में चैंपियन ममता बनर्जी ने तो पुलिस के संरक्षण में पूरे बंगाल में सड़कों में नमाज पढ़ाई और इसे मुस्लिमों का धार्मिक अधिकार बताते हुये भाजपा पर विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप लगाया। इतना ही नहीं, तुष्टिकरण की सभी हदें पार करते हुये ईद की छुट्टियाँ दो दिन की घोंषित कर दी। इसके उलट उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में जहाँ मुस्लिमों की अच्छी-खासी आबादी है, वहाँ पूरे प्रदेश में कही भी सड़क पर नमाज नहीं पढ़ी गई। लेकिन इसका मतलब नहीं कि वहाँ पर मुस्लिम समुदाय का कोई हिस्सा नमाज पढ़ने से वंचित रह गया है।

जहाँ मुस्लिमों और ईदगाह में नमाज पढ़ने को जगह नहीं मिली, वहाँ पर महाविद्यालय और स्कूल के मैदान तथा सार्वजनिक पार्क मुस्लिमों को नमाज पढ़ने के लिये उपलब्ध कराये गये। इसका मतलब एक है कि सड़क पर नमाज पढ़े वगैर और आवागमन बाधित किये वगैर भी नमाज पढ़ी जा सकती है। पर विडम्बना यह कि इस देश में कुछ राजनीतिक दल इस दिशा में मुस्लिमों को कानून हाथ में लेने को लेकर आँख ही बन्द नहीं करते, बल्कि उनका परम हितैषी दिखाने के चलते उन्हें उकसाते और प्रोत्साहित भी करते हैं।

अब रहा सवाल मस्जिदों में नमाज के लिये लाउड स्पीकर के प्रयोग का! जैसा कि अभी हाल मे ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मस्जिदों में लाउड स्पीकर का उपयोग कोई मौलिक अधिकार नहीं है।

न्यायालय ने कहा अजान इस्लाम का हिस्सा है, लेकिन लाउड स्पीकर से अजान देना इस्लाम का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि लाउड स्पीकर आने से पहले मस्जिदों में मानव आवाज में अजान दी जाती थी। सच्चाई यही है कि लाउड स्पीकर का अविस्कार ही सन् 1925 में हुआ और मस्जिदों में भारत में इसका उपयोग 1970 के दशक से आरम्भ हुआ। यह भी उल्लेखनीय है कि इस्लाम का उदय छठवीं शदी में हुआ और वहाँ उनकी नमाज, अजान सभी कुछ बिना लाउड स्पीकर के ही 1970 तक होती रही, फिर यह इस्लाम का हिस्सा कैसे?

भारत का सर्वाेच्च न्यायालय भी मस्जिदों में लाउडस्पीकर की आवाज की इस हद तक नियंत्रित करने को कह चुका है जिससे आस-पास रहने वाले लोगो को कोई परेशानी नहीं। एक सीमा से ज्यादा आवाज की सुप्रीम कोर्ट नागरिकों की सुरक्षा पर खतरा बता चुका है। अरब देशो में भी लाउड स्वीकर को लेकर इस तरह का कोई आग्रह नहीं है।

परन्तु इस देश में कई राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दल इसे मुस्लिमों के धार्मिक आजादी से जुड़ा या उनका निजी मामला बताते हैं। महाराष्ट्र में नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे इसे सामाजिक समस्या बता रहे हैं। पर वस्तुतः यह सामाजिक समस्या से ज्यादा राजनीतिक समस्या है।

बड़ी बात यह कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार 53942 लाउड स्पीकरों को मस्जिदों से उतरवा चुकी है, तो 60295 लाउड स्पीकरों की ध्वनि को नियमानुसार कम करवा चुकी है। ऐसा नहीं कि यह कार्य उन्होंने सिर्फ मस्जिदों में किया हो, यह कार्य उन्होंने मंदिरों में भी किया है। इतना ही नहीं सर्व प्रथम उन्होंने यह कार्य गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में किया है, जिसके प्रमुख व स्वतः हैं। इसी लिये ऐसा कहने का कोई मतलब ही नहीं कि यह कार्य मुस्लिम विरोधी है।

जैसा कि एकात्म मानववाद के प्रणेता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय कहते थे कि- ‘‘हमे हाथ घुमाने की स्वतंत्रता तो है, पर इतना नहीं कि किसी के नाक में चोट लग जाये।’’ लाउड स्पीकर का मामला भी ऐसा ही है, जो आपको उतनी ही आवाज में इसका प्रयोग करने की आजादी है, जिससे किसी दूसरे व्यक्ति की सुविधा या आजादी पर कोई बाधा न पहूँचे। परन्तु मुस्लिमों से जुड़ी हर समस्या को राजनीतिक रंगत (वोट बैंक) दिये जाने से आज देश में मुस्लिम समस्या एक अहम समस्या बन गई है। इसी से भविष्य में आने वाले संभावित कानून कामन सिविल कोड का भी अभी से विरोध होने लगा है। जबकि वह विभेद का उच्छेद कर समाज में समता लाने वाला कानून होगा।

लेख़क – वीरेन्द्र सिंह परिहार
संपर्क सूत्र – 8989419601