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“मातृभाषा ‘हिंदी’ व्याकरण के जनक-जबलपुर के अनमोल रत्न, श्रीयुत कामताप्रसाद गुरु”

अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर शुभकामनाओं के साथ विशेष

संस्कृत व्याकरण के जनक माने जाने वाले पाणिनि (पाणिनी) का नाम तो सर्वश्रुत है, लेकिन हम बात कर रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर मातृभाषा हिंदी के पाणिनि (पाणिनी) श्रीयुत कामताप्रसाद गुरु की। जी हां, जाने माने जबलपुर के प्रख्यात विद्वान आचार्य, कामताप्रसाद जी को आज भी हिंदी के व्याकरणाचार्य पाणिनि कहकर ही पुकारते हैं।

आचार्य कामताप्रसाद गुरु ने 1913 में ही हिंदी व्याकरण की पुस्तक लिखी थी, जिसे प्रख्यात हिंदी विद्वानों की समिति ने सर्व सम्मति से 1920 में मान्यता प्रदान की।

प्रमाण पत्र

आचार्य कामताप्रसाद गुरु व्याकरण को मान्यता प्रदान करने के लिए 14 अक्टूबर 1920 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के सदस्यों द्वारा एक कमेटी बनाई गई थी। सभा में उस समय देश के प्रख्यात हिंदी लेखक व साहित्यकार शामिल हुए थे। इसमें महावीर प्रसाद द्विवेदी, जगन्नाथ दास रत्नाकर, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, बाबू श्याम सुंदर दास, रामचंद्र शुक्ल व लज्जाशंकर झा शामिल रहे। इनकी प्रसिद्धि इतनी थी कि मोहल्ले के पास स्थित तिराहा इनके नाम से मशहूर हो गया था, जो आज भी गुरु तिराहा नाम से जाना जाता है।

लेखक :- डॉ. आनंद सिंह राणा