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मानवता को निगलने का एक वैश्विक पैशाचिक षडयंत्र…

वैश्विक जिहाद एक प्रायोजित षड्यंत

जिहाद इस्लामी कट्टरता मजहबी उन्माद यह कोई एक देश की समस्या नहीं है। दुनिया के अनेक देश इस्लामी जिहाद, आतंक से आज ग्रसित हैं। यह जिहाद सिर्फ भारत की समस्या नहीं है। वरन इससे अमेरिका, रूस, फ्रांस ,चीन, यूरोप के देश यानी अधिकांश विश्व प्रभावित है ।

जिहाद का जो स्वरूप आज विश्व में दिखाई दे रहा है। वह मात्र 100-50 वर्ष का नहीं है। दुनिया में जिहाद लगभग 1300 बरसों से चल रहा है। इसकी जड़ वह बहावी कट्टरपंथी विचारधारा है, जो आसमानी किताब ‘क़ुरान’ से उपजी व मदरसे, मस्जिदों से बढ़ी यानी प्रसारित हुई।

इसके (जिहाद) के लगभग 100 से भी अधिक प्रकार हैं -लव जिहाद, लैंड जिहाद, फल जिहाद, सब्जी जिहाद, कटिंग जिहाद (गौ जिहाद ) जनसंख्या जिहाद ,मार्केटिंग जिहाद और भी अनेक गुप्त प्रकार हैं। जितने हल्के में इसे सरकार, समाज ले रही है, यह उतना है नहीं।

यह मानवता को निगलने का एक बहुत बड़ा वैश्विक प्रायोजित पैशाचिक षड्यंत्र है। इसके शिकंजे में आज विश्व के 57 देश आ चुके हैं। इनको इस्लामिक कंट्री बना दिया गया है। वह भी कभी अपनी मौलिक संस्कृति में जी रहे थे किंतु वह असावधान, अदूरदर्शी, स्वार्थी थे,

जो इस षडयंत्र को नहीं समझ पाए इन्हें शरण दी, बसाया, पाला-पोसा, विकसित किया और परिणाम यह हुआ कि जिन्होंने इन्हे शरण दी बे बेघर हो गए व संख्या बढ़ाकर उस देश पर जिहादी हुकूमत कायम हो गई। वह देश इस्लामिक कंट्री (देश ) बन गया।

इसके उदाहरण- इंडोनेशिया, मलेशिया, कुवैत, अफगानिस्तान, तुर्किस्तान, सीरिया, इराक, ईरान, नाइजीरिया, इजिप्ट, अल्जीरिया, बहरीन, ब्रूनेई, कोमोरोस, मिस्र, जॉर्डन, लीबिया, मालदीप, मोरक्को, ओमान, कातर, सऊदी अरबिया, सोमालिया, ट्यूनीशिया, यूएई, यमन इत्यादि हैं।

इस्लामी जेहाद के प्रसार इतिहास पर दृष्टि डालते हैं तो पता चलता है कि 622 ईसवी से लेकर 634 ईसवी तक मात्र 12 साल में अरब के सभी मूर्ति पूजको को इस्लाम की तलवार से पानी पिलाकर मुसलमान बना लिया गया।

634 ईसवी से लेकर 651 तक यानी 16 साल में सभी पारसियों को तलवार की नोक पर इस्लाम की दीक्षा दी गई। 640 ईसवी में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांव रखे और देखते ही देखते मात्र 15 सालों में अर्थात 655 ईसवी तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग मुसलमान बना लिए गए।

नार्थ आफरीकन देश जैसे -अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को ईसवी 640 से 711 ईसवी तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में बदल दिया गया। 3 देशों का संपूर्ण सुख चैन लेने मुसलमानों ने मात्र 71 साल लगाए।

711 ईसवी में स्पेन पर आक्रमण हुआ 730 ईसवी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी। यानी मात्र 19 सालों में तर्क थोडे से वीर निकले। तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईसवी में शुरू हुआ। और 751 ईसवी तक सारे तक मुसलमान बना दिए गए।

मंगोलों यानी इंडोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 साल में पूरा हुआ। ईसवी सन 1260 में मुसलमानों ने इंडोनेशिया में मारकाट मचाई और 1300 ईसवी तक सारे इंडोनेशिया के मंगोल मुसलमान बन चुके थे। नाम मात्र के लोगों को छोड़कर ।

फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 ईसवी से 650 ईसवी के बीच मुसलमान बना दिया गया। ई .700 में भारत के विरुद्ध जिहाद शुरू हुआ जो कि अब तक चल रहा है। इसी जिहादी शृंखला की एक कड़ी भारत पाक-विभाजन 1947 भी है।

इसी जिहादी संयंत्र की कड़ी कश्मीर समस्या भी थी। आज भी भारत वर्ष के अनेक हिस्सों में छोटे-छोटे पाकिस्तान के दृश्य देखे जा सकते हैं। मुस्लिम क्रूरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब मुसलमानों का ईरान पर आक्रमण हुआ,

और मुस्लिम सेना रानी राजा के महल तक पहुंच गई। जहां लगभग दो-तीन साल की पारसी राजकुमारी थी। ईरान पर आक्रमण अली ने किया था। जिसे सिया मुसलमान अपना आराध्य मानते हैं। किसी को यह भ्रम है कि अली कोई बड़ा महात्मा रहा होगा,

जबकि ऐसा कुछ नहीं कासिम, अकबर, तैमूरलंग, औरंगजेब और अली के नाम के राक्षस में सूत मात्र का भी फर्क नहीं था। फारसी राजकुमारी को बंदी बना लिया गया अब वह कन्या तो लूट की थी। तो लूट के माल पर पहला हिस्सा खलीफा मुंगीरा इव्न सूरा का था।

खलीफा को वह मासूम बच्ची भूख के लिए भेंट की गई लेकिन खलीफा ईरान में अली की लूट से इतना खुश हुआ कि अली को कह दिया कि इसका भोग तुम करो। मुसलमानी क्रूरता पशु संस्कृति का एक सबसे बर्बर नमूना देखिए कि 3 साल की बच्ची में भी उन्हें औरत देख रही थी

व उनके लिए बेटी नहीं बल्कि भोग की वस्तु थी। बेटी के प्रेम में पिता को भी बंदी बनना पड़ा। पारसी राजा ने मृत्यु चुनी। अली ने उस 3 साल की मासूम बच्ची को अपनी पत्नी बना लिया। अली की पत्नी अल सबा बिन राबियाह मात्र 3 साल की थी। और उस समय अली 30 साल से भी ऊपर था।

यह है इस्लाम और यह इस्लाम संस्कृति। यह तो मात्र ईरान का उदाहरण है। इजिप्ट हो या अफ्रीकन देश सभी जगह इस्लाम के प्रसार का यही रूप रहा। सीरिया आदि की कहानी तो और भी दर्दनाक है मुसलमानों ने सीरिया में ईसाई सैनिकों के आगे अपनी औरतों को कर दिया

मुसलमान औरतें गई और ईसाइयों से कहा की मुसलमानों से हमारी रक्षा करो। बेचारे मूर्ख ईसाइय औरतों की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी फिर क्या था। सारी सुपर्णाखाओ ने मिलकर रातों-रात सभी इसाई सैनिकों को हलाल करवा दिया। अब हम भारत की स्थिति देखते हैं।

जिस समय मुसलमान ईरान तक पहुंच कर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे। उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि वह भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंख उठाकर भी देख सकें। जब ईरान सऊदी आदि को जबरन मुसलमान बना लिया गया था।

तब मुसलमानों का मन हुआ कि अब हिंदुस्तान के क्षत्रियों को जीता जाए। लेकिन यह स्वप्न उनके लिए काल बन कर खड़ा हो गया। ई .636 में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला। मां भवानी की सौगंध एक भी मुसलमान जिंदा वापस नहीं जा पाया।

कुछ वर्ष तक तो मुसलमानों की हिम्मत तक नहीं हुई कि वह भारत की ओर मुंह करके भी सो जाएं ,लेकिन कुछ ही वर्षों में जिन्होंने गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी। दुवारा आक्रमण हुआ इस समय खलीफा की गद्दी पर उस्मान बैठा हुआ था।

उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डी दल भारत भेजा। सेना का पूर्णता से सफाया हो गया और सेनापति हाकिम बंदी बना लिया गया। हाकिम को भारतीय राजपूतों ने बहुत मारा और उसका बहुत बुरा हाल कर के वापस अरब भागने की अनुमति दे दी।

जिससे उसकी सेना की दुर्गति का हाल उस्मान तक पहुंच सके। यह सिलसिला लगभग 700 ईसवी तक चलता रहा। जितने भी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुंह किया राजपूतों ने उनका सिर कंधे से नीचे उतार दिया। उसके बाद भी भारत के वीर जवानों ने हार नहीं मानी।

जब 7 वी सदी इस्लाम की शुरू हुई अर्थात अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की आदि बड़े-बड़े देश मुसलमान बन गए। स्पेन तक की 70% आबादी मुसलमान बना ली गई। उस समय भारत में ‘बप्पा रावल’ महाराणा प्रताप के पितामह का जन्म हो चुका था।

उन्होंने नकेवल इस्लाम के पंजे में जकड़े अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को मार भगाया बल्कि वह लड़ते-लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंचे, जहां खलीफा को खुद उनसे अपनी जान की भीख मांगने पड़ी थी। उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं।

नागभट्ट प्रतिहार द्वितिय जैसे योद्धा भारत को मिले, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में राजपूती धर्म का पालन करते हुए ना केवल संपूर्ण भारत की रक्षा की बल्कि हमारी भारत की शक्ति का डंका विश्व में बजाए रखा। पहले बप्पा रावल ने साबित किया था की अरब अपराजित नहीं है।

लेकिन 836 ईसवी के समय भारत में वह हुआ कि इससे मुसलमान थर्रा गए। मुसलमानों ने अपने इतिहास में उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन कहा। वह सरदार भी राजपूत ही थे सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार। मिहिरभोज के बारे में कहा जाता है कि उनका प्रताप ऋषि अगस्त से भी ज्यादा चमकता था।

अगस्त वही हैं जिन्होंने श्री राम को वह अस्त्र दिया था जिससे रावण का वध संभव हुआ था। राम के विजय अभियान के हिडन योद्धाओं में से एक। उन्होंने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया। यह वही समय था जिसमें मुसलमान किसी युद्ध में केवल जीत हासिल करते थे

और वहां की प्रजा को मुसलमान बना लेते थे। भारतीय वीर राजपूत योद्धा मिहिरभोज ने मुसलमानों को अरब तक थर्रा दिया था। लगभग दुनिया को तलवार के दम पर मुसलमान बना चुकी इस्लाम की आंधी के विरुद्ध गत 1300 वर्षों से केवल हिंदुस्तान ही अपने वीर सपूतों के दम पर लड़ता चला आ रहा है।

तो आइए अब हमारी बारी है। अपने राष्ट्र और समाज को संगठित करें, सशस्त्र करें, जागृत करें और क्षात्र धर्म अपनाकर मानवता के लिए विश्वशांति तथा उज्जवल भविष्य का निर्माण करें। भारत की आध्यात्मिकता ही वह शक्ति है। जिसको दुनिया नमन करती है

क्योंकि वह सनातन, अतुल्य, अनुपम, अद्व्तिय, अपराजेय है। जिसकी शक्ति व सामर्थ्य अगण्य है। जिसने लगभग 2000 वर्षों के अनेक आघातों को सहकर भी भारत को अक्षुन्य रखा। जिसने दुनिया की भारत आने वाली सारी सभ्यताओं को पचा लिया।

वह गंगा की तरह है जिसमें घुललकर प्रत्येक पत्थर हड्डी गोल शंकर बन जाती है। इसीलिए तो भारतीय संस्कृति का प्रवाह अविरल व अक्षय है तभी तो आदिकाल से भारतीय संस्कृति को दुनिया ने हिंदू संस्कृति, आर्य संस्कृति, देव संस्कृति, मानवीय संस्कृति, वैश्विक संस्कृति के रूप में पुकारा, स्वीकारा था।

यह Global Culture है इसमें ऐसे दैवीय, मानवीय गुण हैं कि यही संस्कृति विश्व को अपना व्रहत परिवार मानती है। जिसका आधार या आदर्श वाक्य – ” वसुधैव कुटुंबकम “, “सर्वे भवंतू सुखिन:” है। भारतीय संस्कृति ने विश्व को परिवार माना बाजार नहीं। यह त्यागमयी ,योग मयी दैवीय संस्कृति है।

तभी तो प्राचीन काल में भारत के लोग भूसुर व भारत जगतगुरु, विश्वगुरु कहलाया था। इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी किसी देश पर अकारण आक्रमण नहीं किया, नाही एक इंच भूमि किसी की दवाई।

तभी तो दुनिया के राजे-महाराजे घांस-फूस की झोपड़ी में रहने वाले ऋषि- मुनियों के चरणों में लोट-पोट हुआ करते थे एवं एक दर्शन को पाना अपना सौभाग्य मानते थे। ऐसा था अपना भारत। भारत के लिए कुछ भी दुर्लभ, दुसाध्य नहीं रहा है। भारत ने विश्व ब्रह्मांड की प्रत्येक ऊंचाई को छुआ है।

अहम् से परम तक, अणु से विभु तक, आत्मा से परमात्मा तक, पिंड से ब्रह्मांड तक,लघु से विराट तक, नगण्य से अगण्य तक, व्यष्टि से समस्ती तक, बिंदु से सिंधु तक सभी कुछ प्राप्त कर लिया था। जान लिया था, साध लिया था, हस्तगत कर लिया था।

तभी तो दुनिया ने भारतवर्ष के बारे में कहा की —

यूनान मिस्र रोम ,सब मिट गए जहां से ,
बांकी अब तक ,नामो निशा हमारा ।।

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी,

सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जंहा हमारा ।।

 

लेखक:- डॉ. नितिन सहारिया