आज हर व्यक्ति के पास समाज के समक्ष अपनी बात रखने की एक ताकत है
सोशल मीडिया कुछ लोगों के लिए सिर्फ मनोरंजन का साधन हो सकता है, पर जब हम वैश्विक पटल पर इसका प्रभाव देखेंगे तो किसी भी लोकतांत्रिक देश के संविधान में दी हुई ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की कल्पना सुयश त्यागी को वास्तविक स्वरूप इसके उदय के बाद ही मिला है।
आज हर व्यक्ति के पास समाज के समक्ष अपनी बात रखने की एक ताकत है। सोशल मीडिया पर एक आवाज है ना जाने कब सामूहिक आवाज़ का रूप बन जाये, उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। देश में कई प्रतिभाशाली लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम एक ऐसा मंच मिला है,
जिसके चलते उनमें छुपी रचनात्मकता और सृजनशीलता का समाज से परिचय हुआ है। एक वर्ग ऐसा भी है, जो ना कोई न्यूज़ चैनल देखता और ना ही कोई अखबार पढ़ता है पर सोशल मीडिया की जानी-मानी हस्तियों से देशभर की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त कर लेता है।
यहां तक कि कई लोगों को उनके अधिकार सोशल मीडिया पर आंदोलन खड़े करने से ही मिले हैं। इसे हम देश का दुर्भाग्य और शासन-प्रशासन की विफलता भी मान सकते है कि पीड़ित व्यक्ति को सोशल मीडिया पर न्याय की गुहार लगानी पड़ती है। कभी एक दौर हुआ करता था,
जब टीवी और अखबार पर आने वाली सभी खबरों को सच माना जाता था। किसी के पास उन समाचारों पर विश्वास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। समाचारों की प्रमाणिकता जांचने का कोई माध्यम ही नहीं था। परन्तु आज हर किसी के पास सही-गलत तय करने की एक ताकत है
और यही निष्पक्ष ताकत कभी-कभी देश में बड़े सकारात्मक बदलाव लेकर आती है। हाल ही में सोशल मीडिया पर आपने सुना होगा- ‘भारत के लोगों को वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो रही और सरकार विदेशों में निर्यात कर रही है। वास्तव में यह सच को छूते हुए बोला गया झूठ है।
इस प्रकार का ‘आधा सत्य’ झूठ से भी अधिक घातक होता है। अनेक लोगों ने विविध माध्यमों पर इस समाचार को शेयर किया, बिना इसकी सत्यता जाने। इस तरह के समाचारों को सच मानने से पहले हम क्यों नहीं उनकी सत्यता परखते? आखिर गूगल पर फैक्ट चेक करने में समय ही कितना लगता है?
हम अपने सोशल मीडिया एकाउंट से गलत खबर प्रसारित कर देंगे लेकिन थोड़ा समय निकालकर उसकी प्रमाणिकता नहीं देखेंगे! इस आदत में बदलाव आवश्यक है। वैक्सीन के विषय में बात करें, तो अभी हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक साक्षात्कार में बताया कि-
वैश्विक स्तर पर देशों के बीच अनेक करार होते हैं। देशों के बीच का व्यापार वैश्विक बाजार की शर्तों पर होता है ना कि घरेलू शर्तों पर। वैक्सीन बनाने के लिए लगने वाला कच्चा माल कई देशों से लिया जा रहा, उसके तहत उत्पादन के बाद उन्हें कुछ वैक्सीन देने का करार हुआ था,
जिसके तहत वैक्सीन निर्यात करने पड़े। अगर हम करार तोड़ेंगे तो विदेशों से आने वाला कच्चा माल रुक जाएगा और वैक्सीन के उत्पादन के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। पहले जब वैक्सीन लगवाने लोग आ नहीं रहे थे और उत्पादन लगातार बढ़ रहा था
आज हर व्यक्ति के पास समाज के समक्ष अपनी बात रखने की एक ताकत है। सोशल मीडिया पर एक आवाज है ना जाने कब सामूहिक आवाज़ का रूपबन जाये, उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।
तब एक-दो देशों को वैक्सीन दी भी गई, पर जब से भारत के लोगों में वैक्सीन लगवाने के लिए जागरूकता आई है, लगभग पूरा उत्पादन भारत में ही लगाया जा रहा है। भारत एक विकासशील देश है, आज हम वैक्सीन बनाकर इस क्षेत्र की कड़ी में विकसित देश की कतार में खड़े हैं,
दुनिया की नजरें हमारी ओर हैं और हमें हमारी ताकत पर ही विश्वास नहीं।वैक्सीन के सम्बन्ध में भ्रम फैलाने वाले ज्यादातर लोग वहीं हैं, जो इससे पहले कांफ्रेंस आयोजित करके यह दावा कर रहे थे कि ये वैक्सीन कारगार नहीं हैं और लोगों को नहीं लगवाने के लिए आग्रह कर रहे थे।
भारत की जनता को फिजूल के मुद्दों पर उलझाकर देश में एक नकारात्मक वातावरण बनाना ही इस प्रकार के वर्गों का एकमात्र लक्ष्य है। ये कभी मंदिर को देश के विकास में बन रहा रोड़ा बताएँगे तो कभी किसी व्यक्ति को। मंदिरों की अस्पताल से तुलना करना,
विज्ञान के क्षेत्र में कोई नवोन्मेष ना होने के लिए डेरी व पशुपालन विभाग को जिम्मेदार बताया जाना कितना बड़ा कुतर्क है। ये वर्ग आपको अपने वर्षों तक रहे कार्यकाल पर सवाल नहीं करने देंगे। ये इस बात पर चर्चा नहीं करने देंगे की आजादी के इतने वर्षों बाद भी देश में स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति कमजोर क्यों है?
ये नहीं बताएंगे कि कांग्रेस ने अपने इतने लम्बे कार्यकाल में कितने एम्स और शैक्षिक संस्थान स्थापित किये? कुछ दिन पहले एक जाने-माने पत्रकार ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट से एक टेंट के नीचे लेटे कुछ मरीजों की फोटो साझा की, जिन्हें बॉटल व ऑक्सीजन लगी हुई थी और उस पर हेडिंग दी ‘गुजरात का स्वास्थ्य मॉडल’।
उनकी उसी पोस्ट पर एक दूसरे पत्रकार ने पूछा कि ‘यह तस्वीर और खबर, गुजरात के किस जिले की है?’ उन्होंने जवाब दिया- ‘जिला तापी गुजरात’ । कुछ देर बाद ही दूसरे पत्रकार ने वीडियो शेयर कर बताया कि यह तस्वीर महाराष्ट्र से है, ना कि गुजरात से और इस घटना की रिपोटिंग उन्होंने ही की है।
अपनी किरकिरी होते देख मजबूरन पत्रकार महोदय को अपनी पोस्ट हटानी पड़ी। लेकिन इतने समय में वह कितने लोगों तक एक झूठ पहुंचा चुके होंगे, उसकी कल्पना हम कर सकते हैं। ऐसे एजेंडा आधारित प्रसंगों को देख आज सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत के साथ उसके दुरुपयोग की भी चिंता है।
इसलिए आज देश के प्रत्येक नागरिक का जागरूक रहना और तकनीक का जानकार होना बहुत आवश्यक है। हमारा देश आज एक महामारी से गुजर रहा है। ऐसे में जब व्यक्ति घरों में बंद हो, कोई काम ना हो, तो जाहिर सी बात है कि सोशल मीडिया उसके मनोरंजन का अंतिम व आसान विकल्प होगा।
ऐसे में फेक न्यूज़ की मंडियां भी जोरों पर हैं। कब वहां से कोई फेक न्यूज़ पढ़कर, व्यक्ति अपने परिचितों को भेज दे, उन्हें भी समझ नहीं आता है। आज देश की अधिकांश जनता इन्हीं भ्रामक खबरों के चलते कोरोना एक्सपर्ट भी बन बैठी है,
जो कभी-कभी अपने घर पर किसी कोरौना से पीड़ित मरीज का व्हाट्सएप्प के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर ही उपचार शुरू कर देते हैं। इन नादानियों से आज हमें स्वयं भी बचना है और समाज को भी बचाना है।
बिना सोचे-समझे और डॉक्टर के परामर्श के बिना हमें किसी भी प्रकार के प्रयोग से बचना चाहिए और शासन द्वारा जारी किये गए निर्देशों का ही पूर्ण रूप से पालन कर देश व समाज की भलाई में अपना योगदान देना चाहिए।