मुस्लिम लड़कियां पर्दा पसंद करती हैं तो करें बशर्ते कानून और सुरक्षा को खतरा न हो- रवीन्द्र वाजपेयी
इस समय देश भर में मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब का इतेमाल किये जाने पर विवाद मचा है | कर्नाटक के एक शैक्षणिक संस्थान से उठा ये मुद्दा सियासत से होते हुए अदालत तक आ पहुंचा और अब इसे लेकर धार्मिक सवाल-जवाब भी चल पड़े हैं |
मुस्लिम समाज कुछ अपवाद छोड़कर इस मामले में पूरी तरह से एकजुट है | जो लड़कियां आधुनिक परिधानों की और आकर्षित हो चली थीं वे भी अचानक हिजाब पहिनकर निकलने लगीं और समाचार माध्यमों के समक्ष खुलकर स्वीकार कर रही हैं कि महिलाओं का पर्दानशीन होना इस्लाम की परम्परा है जिसे रोकने की कोशिश धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है |
ये तर्क भी दिए जा रहे हैं कि जब हिन्दू महिलाओं को सिर ढंकने और माथे पर बिंदी लगाने की छूट और सिखों को पगड़ी धारण करने की आजादी है तब मुस्लिम लड़की शाला या महाविद्यालय में सिर या चेहरा ढंककर जाए तो उस पर ऐतराज करना गलत है । धर्मनिरपेक्ष देश होने से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता संविधान प्रदत्त अधिकार है |
हालाँकि प्रत्येक धर्म में कुछ न कुछ ऐसा है जिसे समय के साथ बदलने की जरूरत महसूस की जाती है किन्तु धार्मिक बेड़ियाँ की जकड़न इतनी मजबूत होती हैं कि हर किसी में उनको तोड़ने की कुव्वत नहीं होती | समय-समय पर हर धर्म में सुधारवादी आन्दोलन भी हुए |
वोहरा मुस्लिम समाज में असगर अली इंजीनियर ने काफी लड़ाई लड़ी जिसके कारण वे समाज से तिरस्कृत भी किये गये | तीन तलाक और गुजारा भत्ते को लेकर मुस्लिम महिलाओं ने ही लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी | ये बात हिन्दू समाज के साथ जैन और सिखों में भी देखने मिलती है |
सामाजिक कुरीतियों के साथ ही कालातीत हो चुकी परम्पराओं को खत्म करने या उनमें समयानुकूल बदलाव करने के प्रक्रिया भी चलती रहती है | दुनिया के अनेक इस्लामी देशों में भी पुराने रीति रिवाजों में सुधारवादी परिवर्तन किये जा चुके हैं, जिनमें तीन तलाक और पर्दे से आजादी जैसी बातें भी शामिल हैं |
इस्लाम के सबसे कट्टर माने जाने वाली शाखा वहाबी समुदाय के प्रवर्तक सऊदी अरब तक में महिलाओं को कार चलाने , अकेले विदेश यात्रा पर जाने और माता-पिता की अनुमति के बिना विवाह करने जैसी छूट हाल ही में दी गई है | यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी तीन तलाक की प्रथा खत्म की जा चुकी है और जो वीडियो वहां के दिखाई देते हैं उनसे ये नहीं लगता कि उस इस्लामिक देश में लड़कियों और महिलाओं के लिए पर्दा करने की अनिवार्यता है | लेकिन कुछ ऐसे इस्लामिक देश अभी भी हैं जिनमें महिलाओं को उन सभी पाबंदियों का पालन करना पड़ता है जो शरीया में उल्लिखित हैं |
भारत में इस्लाम के मानने वालों में परम्परा और आधुनिकता का समावेश शुरु से रहा है | पचास और साठ के दशक में भी जब मुस्लिम लड़कियों के लिए अकेले घर से निकलना भी कठिन होता था तब फिल्मों में तमाम मुस्लिम अभिनेत्री आईं और मशहूर हुईं |
सुरैया, नर्गिस, मीनाकुमारी मधुबाला और वहीदा रहमान जैसे नाम आज भी लोगों के दिलों दिमाग पर हैं | लेकिन शायद ही किसी मुल्ला-मौलवी ने उस पर ऐतराज जताया हो | प्रणय दृश्यों के अलावा बिकिनी जैसी पोशाक भी अनेक मुस्लिम अभिनेत्रियों ने फिल्मों में पहनीं और आजकल तो खुलकर चुम्बन दृश्य भी दे रही हैं | लेकिन किसी मुस्लिम महिला संगठन या मौलवी ने उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाई | इसकी वजह यही लगती है कि मन ही मन धर्म के ठेकेदार भी ये समझ चुके हैं कि एक हद के बाद वे लोगों को अपने शिकंजे में नहीं कस पाएंगे |
हिजाब को लेकर चल रहे विवाद के भीतर जाएँ तो यदि मुस्लिम धर्मगुरु सभी मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं पर सार्वजानिक स्थलों पर हिजाब पहिनने की अनिवार्यता थोपना चाहें तब उनको एहसास हो जायेगा कि उसे लेकर उनके मन में कितनी आस्था है |
जहाँ तक बात मुस्लिम लड़कियों के पर्दा प्रेम की है तो हो सकता है वह किसी संगठन के प्रभाव में आकर उपजा हो | लेकिन कर्नाटक की घटना के बाद देश भर में जो हिजाब की हवा बनी वह स्वप्रेरित हो तो इसे मुस्लिम लड़कियों की निजी इच्छा मान लेना ही उचित होगा | यदि उनके मन में समय के साथ चलते हुए आगे बढ़ने की इच्छा नहीं है तो उनको उसके लिए बाध्य करना निःसंदेह गलत है |