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मेरे प्रभु श्रीराम…

एक बार दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी के मुख से सुना था ‘‘हम पल-पल – क्षण-क्षण उसी रामत्व को जीते हैं। वो कभी हमारी मति बनते हैं, कभी हमारी गति बनते हैं, कभी हमारा कर्म बन जाते हैं और कभी हमारा धर्म बन जाते हैं।’’

श्रीराम कथा तो भारत की आत्मा है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम, माता जानकी सहित भरत, लक्ष्मण हनुमान, निषाद राजगुरू जैसे श्रेष्ठ महापुरूषों के जीवन चरित्र ने भारतीय संस्कृति को सुन्दर एवं आकर्षक स्वरूप प्रदान किया है। यही कारण है कि सम्पूर्ण विश्व में श्रीराम कथा लोकप्रिय है, व आदरणीय भी। विश्व के अनेकानेक देशों मंे श्रीराम कथा से संबंधित कलाकृतियाँ, साहित्य, स्मारक समादर पूर्वक संग्रहीत कर रखे गये हैं।

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘‘श्रीरामचरितमानस’’ के अस्तित्व में आने के लगभग सात सौ वर्षों पूर्व तमिल के प्रख्यात महाकवि कम्ब ने भी रामायण की रचना की थी, जिससे यही सिद्ध हुआ कि सम्पूर्ण भारतवासियों के हृदय में आराध्य श्रीराम का विलक्षण चरित्र विराजमान है। यह कहावत भी जन जन को प्रभावित कर गयी कि ‘राम से बड़ा है, राम का नाम।’

त्रेतायुग में जन्में श्रीराम के गुणों का अलौकिक वर्णन किया है। वे धर्म के ज्ञाता थे, सत्य प्रतिज्ञ थे, प्रजापालक दुष्टों के संहारक एवं धर्म रक्षक भी। विनय शीलता में वे भगवान के अवतार थे।

श्रीराम के संबंध में अधिकाधिक जानकारी दने वाला ग्रंथ, आदि कवि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’ है। हिन्दी-संस्कृत के अलावा अन्य अनेक भाषाओं में श्रीराम कथा लिखी गयी। विदेशों में तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तान की खोतानी रामायण, इन्डोनिेशिया ककर्बिन, जावा सेरतराम सैरी राम, राम केलिंग, पातानी रामकथा, इन्डोचायना की रामकेति (राम कीर्ति), खमैर रामायण, वर्मा(म्यांमार) की यूतो रामायागन, थाई लैण्ड की रामकियेन आदि में विशेष उल्लेख मिलता है।

कम्प्यूटर को माध्यम बनाकर जो कुछ निष्कर्ष निकाला गया है, उसके अनुसार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ई. पू. (अर्थात् आज से लगभग 7130वर्ष पूर्व हुआ था।) यद्यपि ज्योतिषीय गणितज्ञ इसे सही नहीं मानते। वायु पुराण व महाभारत के प्रमाणों के आधार पर श्रीराम का जन्म त्रेता (वर्तमान चतुर्युगी) में माने तो 24वे त्रेता का आधार लिया जाता है।

विभिन्न मत-मतान्तरों के यही मान लेना श्रेयस्कर होगा कि चली आ रही मान्य परम्परा के अनुसार श्रीराम को जन्मोत्सव ‘श्रीराम नवमीं’ तिथि के दिन ही हम अपनी आस्था व्यक्त करें। क्योंकि श्रीरामचरितमानस ज्ञान और भक्ति का अलौकिक संगम है। इस संगम में अवगाहन करने पर आत्मा के ऊपर चढ़ी कुसंस्कारों की परतें उतर जाती हैं। इस महान गं्रथ में ज्ञान के असीमित अमूल्य तत्व भरे पड़े हैं। उतनी ही अधिक संख्या में भक्ति के मोती भी हैं।

श्रीराम के बिना भारत के लिये विश्व को देने के लिये कोई संदेश नहीं है। राष्ट्रपुरूष के रूप में वे न केवल अयोध्या के राजकुमार या राजा थे वरन् विश्व के करोड़ों -करोड़ लोगों के आराध्य बने हुये हैं। तुलसी के आराध्य श्रीराम भी अपनी भक्ति पर बिना किसी भेदभाव के स्नेह की वर्षा करते हैं। तुलसी के राम को वही व्यक्ति प्रिय है जो निष्काम भाव एवं ईमानदारी और परिश्रम की आय से अपने परिवार का पालन-पोषण करता है।

गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार रामराज्य समत्व का राज्य था। गुणों और सुलक्षणों के विकास का युग था। रामराज्य-सुशासन, सुव्यवस्था, धर्म-शांति, सदाचारादि की पूर्णता का दिव्य शासन था। श्रीराम के ईश्वरीय गुण अनन्त हैं, उनके सम्पूर्ण गुणों का वर्णन किया जाना सम्भव नहीं है। सभी सांसरिक मनुष्यों का कर्तव्य-धर्म यही है कि वे श्रीराम के गुणों को अपने जीवन में यथाशक्ति उतारने का प्रयास करते रहें।

दैहिक सुख और विचारों में नैतिक गिरावट आज के आधुनिक विकसित राज्यों की मुख्य विकट समस्या बने हुये हैं। विश्वास का अभाव और परस्पर मैत्रीपूर्ण संबंधों की कमी के कारण ही विश्व में इतनी भौतिक व वैज्ञानिक उन्नति के बावजूद अशान्ति एवं अराजकता का वातावरण व्याप्त है।

असुरक्षा की भावना न केवल व्यक्तियों के बीच विद्यमान है, वरन् यह तो राष्ट्रों के बीच की डरावनी शक्ल लिये उपस्थित है। विश्वभर के विभिन्न मतावलम्बियों और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के बीच टकराव आज आम बात हो गयी है। आज वर्तमान परिदृश्य में हमें उन आदर्शों की तलाश है, वे सब आदर्श व्यक्ति और आदर्श राष्ट्र की कल्पना को भी सार्थक कर सकते हैं।

लंका विजय के उपरांत जब श्रीराम अयोध्या लौटकर आये, तब उन्होंने सभी सखाओं, श्रृक्षों, वानरों को आदर पूर्वक विदा किया और अपने सर्वश्रेष्ठ सखा निषाद को बुलाकर प्रसाद स्वरूप वस्त्राभूषण प्रदान कर भाव-विव्हल होकर उससे कहा-
तुम ममसखा भरत समभ्राता। सदा रहतु पुर आवत जाता।।

समरसता को उच्च स्थान प्रदान करने वाला, ऊँच-नीच के भेदभाव को समाप्त करा देने वाला अनेक दिल को छू लेने वाले प्रसंगों से युक्त गोस्वामी तुलसीदास जी का काव्य ‘श्रीरामचरित मानस’ सामाजिक प्रगति और विकास के प्रत्येक मोड़ पर हमारे पथ प्रदर्शन के लिये नये-नये दिशा संकेतों से युक्त निसंदेह अद्भुत है। चिर प्राचीन होते हुये भी चिर नवीन प्रतीत होता है।

श्रीराम भारतीय जनजीवन के संघर्षों तथा आदर्शोंं के पावन प्रतीक हैं। ‘‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता।’’ कहकर तुलसी दास जी महाराज ने हमारे चक्षुओं को खोल दिया है। जहाँ महर्षि वाल्मीकि ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का गुणगान किया है, वहाँ तुलसीदास जी ने ब्रह्म राम की आराधना की है। तुलसी के राम पूर्ण ब्रह्म हैं।