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यह वीरगति है….

योगेंद्र योगी जी हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी स्मृति असंख्य संघ कार्यकर्ताओं की दीपमालिका की याद दिलाती है. यह यात्रा जारी रहने वाली है. यह वीरगति है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक और स्वयंसेवक ने सेवा कार्य करते हुए अपना बलिदान दिया है. योगेंद्र योगी जी हमारे बीच नहीं रहे. कोरोना से उनका लंबा संघर्ष चला. पहले लॉकडाउन के समय में समाज में  सेवा व राहत कार्य करते हुए, और फिर जब वो स्वयं कोरोना पीड़ित हो गए, और अस्पताल में उनका इलाज चला. वो  ऊँचे, मजबूत शरीर वाले व्यक्ति थे. ऊर्जावान और परिश्रमी थे. आयु लगभग 63 वर्ष. किसी को कल्पना नहीं थी कि वो इतने जल्दी चले जाएँगे.

जैसा कि कोरोना के गंभीर मामलों में होता है, कोरोना ने उनके फेफड़ों को प्रभावित किया था. साँस लेने में काफी तकलीफ थी. बाहर से लगातार आपूर्ति के बावजूद शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही थी. सभी को चिंता हो रही थी. हर संभव इलाज किया जा रहा था. अंततः 25 जुलाई को चिकित्सकों ने प्लाज्मा थैरेपी के लिए उन्हें भोपाल भेजने का निर्णय लिया परन्तु भोपाल से 25 किलोमाटर पहले ही साँसें थम गईं.

योगी जी उन लाखों संघ कार्यकर्ताओं की श्रंखला की एक कड़ी थे जिन्होंने कोरोना महामारी के दौरान में स्वयं की परवाह न करते हुए समाज के रक्षण के लिए दिन रात कार्य किया. वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक महाकौशल प्रांत के सेवा विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य कर रहे थे.

                       स्वयंसेवकों की प्रेरणा के आजावन स्रोत रहे योगी जी

कॉलेज  के उनके साथी बतलाते हैं कि उन दिनों वे काफी जोशीले और उग्र स्वभाव के हुआ करते थे. कुछ गलत दिखने पर दो-दो हाथ करने को तैयार रहते थे. निकट मित्र हंसकर कहते हैं कि वो इस गुण की तारीफ़ भी करते और थोड़ा भयभीत भी रहते थे, क्योंकि “झंझट कौन पाले…” शिक्षा पूरी करने के बाद जबलपुर के रक्षा उत्पादन कारखाने में लग गए. वहाँ भारतीय मजदूर संघ के अंतर्गत काम करने वाले संगठन भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ से जुड़ गए. वहीं से उनका संपर्क राजनैतिक क्षेत्र से हुआ. जुझारू युवा भाजपा कार्यकर्ता के रूप में उनकी पहचान बनती गई. लेकिन राजनीति का क्षेत्र रपटीला है, और योगेंद्र जी बेबाक बोलने वाले व्यक्ति थे. जो ठीक लगा बेहिचक कहने का स्वभाव था. श्रीमति जयश्री बैनर्जी जबलपुर से भारतीय जनता पार्टी की सांसद रहीं हैं. जनसंघ के दिनों से उनका संघ से निकट संपर्क रहा. एक दिन श्रीमति  बैनर्जी ने योगेंद्र जी से कहा कि वो संघ से भी जुड़कर देखें. इसके पूर्व में योगी जी का संघ कार्यालय आना-जाना हुआ था अत: वो शाखा जाने लगे.

संघ का वातावरण और कार्यशैली उन्हें ऐसा भायी कि राजनैतिक जीवन सदा के लिए समाप्त हो गया और इसके बाद का सारा जीवन स्वयंसेवक के रूप में, संघ कार्यकर्ता के रूप में बीता. चर्चा निकलने पर वो कहते थे कि “राजनीति उठापटक की जगह है, संघ का काम सच्चा-सीधा है. यहाँ जो है, आँखों के सामने है. इसलिए जब एक बार संघ का माहौल हमारी बुद्धि में उतर गया तो फिर और कुछ करने की इच्छा ही नहीं हुई.” संघ का आकर्षण कैसे लाखों –लाख लोगों को अपनी ओर खींचता रहा है, योगेंद्र जी इसका अच्छा उदाहरण थे. संघ प्रवेश के बाद उनकी स्वाभाविक रूचि सेवा कार्य की तरफ हुई. उन्हें इसका भरपूर अवसर भी मिला. वो नगर सेवा प्रमुख के रूप में कार्य करने लगे. फिर महानगर सेवा प्रमुख, तत्पश्चात प्रांत के सह-सेवा प्रमुख और अंततः प्रांत सेवा प्रमुख के रूप में काम किया. इस तरह उनके 15-16 वर्ष सेवा विभाग में ही बीते.

इस बीच अनेक अन्य कार्य उन्हें सौंपे जाते रहे, जिन्हें उन्होंने लगन और परिश्रम से पूरा किया. संघ कार्य को अपना काम समझकर करते थे. यदि कभी उन्हें लगता कि उन्हें दिया गया कार्य जैसा होना था वैसा नहीं हुआ तो वो दुखी हो जाते थे. संकल्प महाशिविर में सारे प्रांत से 35 हजार स्वयंसेवक जबलपुर में एकत्रित हुए. भोजन व्यवस्था के प्रमुख के रूप में योगेंद्र जी को जिम्मेदारी सौंपी गयी. कार्य अच्छी तरह चला. लेकिन जब एक स्थान पर व्यवस्था में कुछ परेशानी आ गयी और कुछ कार्यकर्ता भूखे रह गए, तो योगी जी की आँखें बह निकलीं. भावना प्रधान ये स्वभाव अंत तक बना रहा.

शासकीय सेवा के दौरान योगी जी का स्वयं ट्रांसफर लेकर अंडमान निकोबार जाना और वहाँ दो वर्षों तक संघ कार्य करना एक ऐसा विषय है जो जबलपुर  के लगभग हर  कार्यकर्ता को पता है. संघ कार्यकर्ताओं में अंडमान पर चर्चा हो तो योगेंद्र योगी जी का जिक्र आता ही था. वहाँ का प्रसंग उल्लेखनीय है. बैंक में सबको पता था कि वो संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हैं. एक बार उनके वरिष्ठ अधिकारी ने, जो कि एक मुस्लिम थे, उनसे इस संबंध में पूछताछ की. योगेंद्र जी ने कहा “देखिए साहब ! मैं आपसे पहले आफिस पहुँच जाता हूँ. जो काम बताते हैं, कर के देता हूँ. लेकिन शाम 5 बजे के बाद का समय मेरा है. शाम के बाद का समय संघ का है.” मुस्लिम सज्जन उनकी इस बात से प्रभावित हुए और धीरे-धीरे संघ के प्रति उनका नज़रिया भी बदला. उनके कार्यालय में उनके साथी भी उन्हें बेबाक, लेकिन मेहनत से काम करने वाले और सहयोग माँगने पर इनकार न करने वाले साथी के रूप में याद करते हैं.

शासकीय सेवा से स्वेचच्छिक सेवा निवृत्ति के बाद पूरा समय संघ कार्य को देने लगे. संघ कार्यकर्ता सतत समाज के संपर्क में रहता है, तभी वो ठीक से काम कर सकता है. उनका संपर्क व्यापक था. योगेंद्र जी का भी समाज के हर वर्ग में परिचय और उठना-बैठना था. पहले भाजपा में काम किया था लेकिन हर राजनैतिक दल के लोगों से उनके अच्छे व्यक्तिगत संबंध थे और सभी से वो संघ की बात किया करते थे.

हमेशा सादा कुर्ता-पैजामा और कंधे पर झोला देखकर किसी को यह आभास नहीं हो सकता था कि वो हॉलीवुड फिल्मों के सुधी दर्शक हैं. मेरे सामने उनका यह पहलू तब आया जब हम प्रवास के निमित्त एक साथ कार से मैहर जा  रहे थे. बात मर्लिन ब्रांडो की गॉडफादर से शुरू हुई. फिर कासाब्लांका, गुड बैड एंड अगली, रेबेल विदाउट अ कॉज, ऑन द वाटर फ्रंट, शिंडलर्स लिस्ट, कैच मी इफ यू कैन और अ ब्यूटीफुल माइंड से से होते हुए नरेंद्र कोहली जी  के उपन्यास ‘तोड़ो कारा तोड़ो’ पर समाप्त हुई. पढ़ने के वो शौक़ीन थे. बातचीत के अंत में उन्होंने कहा  कि मैं लेखक या अच्छा वक्ता नहीं हूँ, थोड़ा अच्छा बोल सकूं इसका प्रयास कर रहा हूँ, लेकिन पढ़ता हूँ. और ये सच था. रेल यात्रा के दौरान जब ट्रेन किसी स्टेशन पर थोड़ी देर के लिए रुकती तो रेलवे बुक स्टाल पर मेरे साथ खड़े होने वाले योगेंद्र जी होते थे. लेखकों और प्रकाशनों का नाम ले-लेकर पुस्तक विक्रेताओं से किताबों  की माँग करते थे.

अच्छे स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवनशैली के वो आग्रही थे. कोरोनाकाल  के दौरान सभी स्वयंसेवकों के साथ सेवाकार्य करते हुए वो काफी सावधानी रखते थे और सभी को मास्क पहनने और हाथ सैनीटाइज़ करने के लिए टोकते थे. दैववश वो इस महामारी की चपेट में आ गए. उन्हें जानने वाले लोगों के लिए ये एक झटका है, क्योंकि स्वस्थ-सक्रिय योगेंद्र जी ऐसे अचानक चले जाएँगे किसी ने नहीं सोचा था. अपने एक साथी के इस प्रकार अचानक चले जाने से संघ के कार्यकर्ताओं में शोक होना स्वाभाविक है, परन्तु मन में विश्वास की लौ भी है कि राष्ट्र निर्माण की संघ साधना चलती रहने वाली है.