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रूठा सा मौसम सहमा सा पर्यावरण

मौसम में हर क्षण हो रहे बदलाव के परिणाम मनुष्य सहित सभी जीवों को रोजमर्रा की जिन्दगी में झेलना पड़ रहा है। हम भले ही पर्यावरण प्रेमी न बन पाये हों, पर सारी दुनिया इन परिवर्तनों से प्रभावित हुये बिना नहीं रह पाती, यह गहन चिन्ता का विषय बनता जा रहा है।

जीवन जीने के हर पक्ष पर विचार करें, चाहे वह स्वास्थ्य से संबंधित हो, चाहे जीवनी शक्ति, अनाज की सुरक्षा, जल की उपलब्धता के साथ बढ़ती गर्मी-सर्दी, आसपास का वातावरण सभी के लिए नुकसान दायक सिद्ध हो रहा है। यह भी कहा जा सकता है कि हमारा जीवन अब उतना सुरक्षित नहीं रह गया, जितना पहले महसूस किया जाता रहा है।

जहाँ तक प्रदूषण का सवाल है, वह तो खतरनाक स्तर को भी पार कर चुका है, वायु प्रदूषण की इस खतरनाक स्थिति से बहुतेरे अनजान बने हुये हैं। क्या इस बेढंगी परिस्थिति में हम बीमारियों के प्रकोप से बच पायेंगे? न अपने को बचा पायेंगे, न ही अपने परिवार को। क्या एैसे हालात हम आने वाली पीढ़ी को सौंप कर जाना चाहेंगे।

इस संजीदा मामले में कृषि की स्थिति भी अत्यन्त चिन्ताजनक बनती जा रही है, यदि इन हालातों को सुधारने के लिये जल्द से जल्द प्रयास प्रारम्भ नहीं किये जाते, तो न केवल हम वरन् सारे विश्व को दुष्परिणाम झेलने मजबूर होना पड़ेगा-ऐसा विशेषज्ञों का मानना है। जिस जल को हम जरूरत के मुताबिक पीने आदि के उपयोग में लाते हैं, वह चाहे सीधे भूमि से प्राप्त किया जाता हो, बाँधों के माध्यम से एकत्रित किया गया हो, या सतह पर बहने वाला जल हो, उस सम्बंध में भी डरावनी तस्वीर प्रस्तुत हो चुकी है।

भूमि से जल खींच लेने वाली प्रक्रिया तेजी से बढ़ी है, जिसका सीधा असर गहराई में पहुंच गये जल स्त्रोत्रों की स्थिति देखकर भली भाँति समझा जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जितनी अधिक गहराई से भूमि के जल को प्राप्त किया जायेगा, उसमें उतनी ही अधिक नुकसानदायक मिलावट की आशंका बढ़ती जायेगी।

इस तथ्य की ओर लोगों का ध्यान कम ही जाता है कि बढ़ते तापमान के कारण स्थान विशेष और उसके आसपास का क्षेत्र सूखा ग्रस्त बनता जा रहा है, परिणाम स्वरूप वन-मंडल क्षेत्रों में आग लगने की घटनाओं में भारी वृद्धि हुयी है। जंगल जलकर खाख हो रहे हैं। पशु-पक्षी भी उससे प्रभवित हुये बिना कैसे रहे सकते हैं? मौसम के बदलाव ने समुद्रों पर भी अपना असर दिखाया है, समुद्रों का जलस्तर घटा है, कहीं ग्लेशियर पिघलने के कारण जल स्तर बढ़ा भी है, जिसके कारण कतिपय आबादी वाले क्षेत्रों के डूबने तक की आशंका बढ़ चली हैं।

ऐसे अनेक परिवर्तन मौसम में बदलाव अपने के कारण देखने को मिल रहे हैं। सामान्य लोग इस प्रकार की बदलती परिस्थितियों से लगभग अनभिज्ञ हैं, उन्हें इससे होने वाली जानकारी देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में होने वाली अनेक प्रकार की क्षति से बचा जा सके। उन कारणों को भी जान लेना जरूरी है, जिनके कारण मौसम में तरह-तरह के बदलाव महसूस हो रहे हैं।

प्रदूषण ने अनेक शहरों को अपनी चपेट में ले रखा है। यह सामयिक चेतावनी है। आश्चर्य का विषय तो तब बन जाता है, जब प्रदूषण से होने वाले नुकसान को जानने वाले लोग भी, उस ओर गम्भीरता से ध्यान देने की बजाय उसे हल्के में लेना शुरू कर देते हैं। त्यौहारों में चलाये जाने वाले फटाकों के धुँये से कितना नुकसान हो सकता है, इसे जानने, समझने और गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। वाहनों में उपयोग किये जाने वाला पेट्रोल और डीजल जैसे पदार्थों का धुँआ हमारे वातावरण को कितना नुकसानदायक है, क्या यह समझ के बाहर की चीज है?

ये तथ्य नजर अन्दाज करने के नहीं है। यह प्रदूषण क्रमशः जानलेवा सिद्ध होता जा रहा है। सेहत पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। इसी क्रम में ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, प्रकाश से उत्पन्न प्रदूषण, मोबाईल टावरों से उत्पन्न प्रदूषण आदि हमारे शरीर को तरह-तरह से प्रभावित कर रहे हैं।

यद्यपि इससे बचाव का सरल रास्ता नजर नहीं आता। विशेषज्ञों का भी मानना है कि प्रदूषित वायु और कोलाहल के बीच हम अपना जीवन जीने मजबूर होते जा रहे हैं। पर हमें यह तो जान ही लेना चाहिये कि इस प्रकार के प्रदूषण से हार्टफेल जैसे भयंकर खतरों को मोल लिया जा रहा है। यह स्थिति दिनोंदिन भयावह होती जा रही है।

एक नये शोध के माध्यम से पता चला है कि अगर हम जल्द नहीं चेते और इसी प्रकार की दूषित वायु आदि से प्रभावित होते रहे और ट्रेफिक के कानफोड़ू कोलाहल के बीच अपना जीवन व्यतीत करते रहेंगे तो हार्टफेल जैसी बीमारियों के दुष्परिणामों से बचे नहीं रह सकते। विशेष रूप से वे लोग जो धूम्रपान का शौक पाले हुये हैं और ब्लड-प्रेशर जैसे रोगों से ग्रसित हैं, उनका मामला और भी अधिक खतरनाक सिद्ध हो सकता है।

इस प्रकार के निष्कर्ष लम्बे अध्ययन अैर शोध के बाद सामने आये हैं, जिनका प्रकाशन ‘‘जर्नल ऑफ अमेरिकन हार्ट एसोसियेशन’’ में प्रकाशित हुआ है। डेनमार्क यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगेन में पब्लिक हेल्थ से सम्बंधित प्राध्यापक गोन ही लिम  का मानना है कि इस निष्कर्ष को ध्यान में रखते हुये लोगों को हृदय सम्बंधी रोगों से बचाव के लिये उपाय करना चाहिये। ताकि इन कारणों से उत्पन्न दोषों के असर को कम किया जा सके।

यह अध्ययन 15-20 वर्षों से किया जा रहा है और इस अध्ययन के लिये स्वास्थ्य विभाग  से सम्बंधित व्यक्तियों को ही इसीलिये चुना गया था ताकि समय पर उनका परीक्षण कर आवश्यक जानकारी और विवरण सरलता से प्राप्त होता रहे।

बढ़ते प्रदूषण के कारण स्थिति कितनी चिन्ताजनक बन गयी है, इसे समझना अब मुश्किल नहीं रह गया है। भारतीय जल शक्ति मंत्रालय के एक कार्यक्रम के माध्यम से एकत्रित आँकड़ों से भी अभी हाल में पता चला है कि पेयजल में अशुद्धियाँ, पृथ्वी की सतह पर प्राकृतिक तौर पर मौजूद रसायन तथा मिनरल्स जैसे आर्सेनिक, फ्लोराईड, आयरन और यूरेनियम आदि के कारण बढ़ रही है।

Plastic pollution | Friends of the Earth

इस अध्ययन में यह भी आशंका व्यक्त की गयी है कि जल स्त्रोतों के निकट भारी धातु की उत्पादन इकाईयों के कारण भी जल में अशुद्धियाँ इसके अलावा जल शोधन संयंत्रों के सही रखरखाव के तरीके नहीं अपनाये जाने तथा जलापूर्ति तंत्र सही नहीं होने से भी पानी में अशुद्धियाँ होना स्वाभाविक है। आँकड़ों के अनुसार 13,17,028 नमूने जाँच के लिये, गये थे, जिनमें 1,17,474 नमूनों में अशुद्धियाँ पायी गयी।

भारतीय चिन्तन तो अनादिकाल से हमें सचेत करता आया है-‘‘क्षिति जल पावक, गगन, समीरा, पंच रचित यह अघम शरीरा।’’ इस चिन्तन को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। अच्छे पर्यावरण से तात्पर्य है-इन सभी घटकों के बीच समुचित सन्तुलन बनाये रखना। पर्यावरण से तात्पर्य है- चारों ओर से घेरे हुये यह परिवेश या वातावरण।

क्षण-क्षण बदलता मौसम, बढ़ता तापमान, पिघलते ग्लेशियर, बाढ़, सूखा, आदि इनसे न केवल मनूष्य, वरन् जीव-जन्तुओं, पेड़- पौधों तक को संकट की स्थिति में ढकेल दिया है। पर्यावरण जीवन के लिये कितना आवश्यक है, यह तो सभी जानते हैं-पानी और वायु हमारी आवश्यकता है, लेकिन समय बीतते सचेत न हो पाये तो कितनी क्षति हो सकती है, इसका अनुमान भी लगा लिया जाना चाहिये। जब जागे, तभी सबेरा।

       आलेख
डाॅ. किशन कछवाहा