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लातों के भूत बातों से नहीं मानते

विश्वासघाती चीन के कायर सैनिकों को मारते मारते बलिदान होने वाले भारत के वीर सैनिकों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साहस पूर्वक कहा है कि हमारे जवानों के बलिदान व्यर्थ नहीं जाएंगे. हमें हमारी अखण्डता और सम्प्रभुता की रक्षा करने से कोई नहीं रोक सकता. भारत की सेना प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने में सक्षम है.

देश के प्रधानमंत्री के इस निडर और चुनौतिपूर्ण वक्तव्य में देश की 135 करोड़ जनता के लिए एकजुट हो जाने का गहरा संदेश भी है. हमारे पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान दोनों ही लातों के भूत हैं. इन्हें बातों से मनाते रहने की मूर्खता करना भारत की सुरक्षा को खतरे में डालना होगा.

यह दोनों देश और इनकी सेनाएं सभ्यता के दायरे में नहीं आतीं. इन दोनों देशों की सेनाएं और सरकारें एक साथ मिलकर सभी अंतर्राष्ट्रीय नियमों, सैनिक और राजनैतिक संधियों, ‘प्रोफेशनल आर्मी’ जैसा सभ्य व्यवहार और मानवता के सभी शिष्टाचारों का खुला उल्लंघन करती रहती हैं. यह दोनों ही देश ‘शठे शाठ्यं समाचरेत’ की भाषा ही समझते हैं.

इस संक्षिप्त लेख में हम केवल चीन का ही उल्लेख करेंगे. कुछ दिन पहले लद्दाख की सीमा पर गलवान घाटी में गश्त कर रहे भारतीय सैनिकों पर जिस तरह का कायराना हमला चीन के सैनिकों ने किया था, उसका मुंहतोड़ जवाब देते हुए हमारे जवानों ने दुश्मन के चालीस से ज्यादा सैनिकों को यमलोक पहुंचाया है. इसी तरह का एक वीरव्रती प्रसंग तब आया था, जब 1967 में चीन की एक ऐसी ही हरकत के उत्तर में भारतीय जवानों ने दुश्मन के लगभग पांच सौ सैनिकों को मार गिराया था.

वास्तव में चीन एक ऐसा भूमाफिया विस्तारवादी देश है जो सदैव अपनी सीमा के साथ लगने वाले छोटे-छोटे देशों को अपनी आर्थिक एवं सैनिक शक्ति से हड़प लेने की फिराक में रहता है. पहले अपने आर्थिक मकड़जाल में फंसा कर और बाद में सैनिक हस्तक्षेप के द्वारा छोटे देशों को अपना गुलाम बनाने की नीति पर चल रहा है चीन. अपनी इस विस्तारवादी नीति में किसी हद तक चीन को सफलता भी मिली है.

सर्वविदित है कि चीन ने मंगोलिया, तिब्बत, मंचूरिया और गोइत्स जैसे छोटे देशों को पहले भरपूर आर्थिक मदद दी और फिर मौका देखकर सेना के बल पर इन्हें अपने अधिपत्य में जकड़ लिया. उल्लेखनीय है कि चीन ने अपने इसी जाल को पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, सिंगापुर जैसे भारत के पड़ोसी देशों पर बिछा रखा है. इसी नीति के अंतर्गत चीन हिन्द महासागर में अपने समुद्री ठिकानों को मजबूत कर रहा है.

अब वही विस्तारवादी नीति चीन द्वारा नेपाल में लागू की जा रही है. नेपाल के सामने आर्थिक सहायता के पिटारे खोले जा रहे हैं. दुर्भाग्य से सनातन हिन्दू संस्कृति से ओतप्रोत नेपाल में इस समय साम्यवादियों की सरकार है. जिसकी हमदर्दी चीन के साथ होना स्वाभाविक है. यह चीन के षड्यंत्रों का ही परिणाम है कि नेपाल अब भारत को भी ‘लाल आखें’ दिखा रहा है. चीन का यही इरादा है कि वह नेपाल को भी तिब्बत की तरह अपने सैनिक अधिपत्य में लेकर वहां अपनी सैनिक छावनियों का विस्तार कर ले.

अत: भारत की सरकार, सेना और 135 करोड़ नागरिको को सतर्क हो जाना चाहिए. पुरानी सरकारों की घुटने टेक नीतियों को ठुकरा कर आक्रामक रणनीति अपनानी होगी. तभी चीन और पाकिस्तान के किसी खतरनाक भावी षड्यंत्र को विफल किया जा सकेगा. 1962 जैसी कायरता को दोहराना देश की अखण्डता के लिए खतरनाक साबित होगा. तब हमारी तत्कालीन सरकार ने ‘हिन्दी चीनी भाई-भाई’ के झांसे में आकर चीन को भारत पर हावी होने का अवसर प्रदान कर दिया था.

सारा संसार जानता है कि 1962 में भारत की स्थल, नभ एवं समुद्री शक्ति चीन से अधिक थी. परन्तु राजनीतिक इच्छा और राष्ट्रीय दृष्टिकोण के ना होने से हमारी सेना को पराजित होना पड़ा था. यही देशघातक नीति 1948 में पाकिस्तान के साथ अपनाई गई, जब हमने मोर्चे पर आगे बढ़ रहे भारतीय सैनिकों के पांवों में सयुक्त राष्ट्र संघ की बेड़ियां डाल दी थीं. आज समय की आवश्यकता है कि पूर्व की इस रणनीतिक भूल को दोहराया ना जाए.

समस्त भारतवासियों के सुभाग्य से आज भारत में एक ऐसी सरकार है जो शत्रुओं को परास्त करने का साहस रखती है. एक ऐसा राजनीतिक नेतृत्व है जो पूर्व की बुजदिल सरकारों द्वारा की गईं भयंकर भूलों को सुधारकर आक्रामक रणनीति पर चल रहा है. एक ऐसा नेता है जो सैनिकों द्वारा जीती गई बाजी को समझौते की मेज पर हरा देने की अदूरदर्शी नीतियों को ठुकरा रहा है.

तो भी समस्त देशवासियों, सरकार और सेना को सतर्क रहने की आवश्यकता है. आज भी अपने देश में अनेकों पंचमांगी तत्व, रूस और चीन के एजेंट, पाकिस्तान के जेहादी समर्थक, टुकड़े-टुकड़े गैंग और प्रधानमंत्री के लिए घटिया अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाले राजनीतिक पप्पू सक्रिय हैं.

       नरेंद्र सहगल
(लेखक पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)