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विभाजन टल सकता था..!

विभाजन की चुभन / १

 ‘और १५ अगस्त १९४७ को हमारा देश बट गया..!’

इस वाक्य के साथ कहानी का अंत नहीं हुआ. वरन एक अंतहीन से दिखने वाले लंबे संघर्ष का प्रारंभ हुआ..!

बंटवारे का दर्द बहुत तीखा होता हैं. डेढ करोड़ से ज्यादा भारतीयों ने इस दर्द को झेला हैं. लगभग बीस लाख हिन्दू – सिक्ख इस बंटवारे के कारण मारे गए हैं. लाखों माता – बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ हुई हैं. अनेक घर – बार, आशियाने उजड़ गए हैं.

उन मारे गए अभागे हिन्दू – सिक्ख भाइयों की लाशों पर, हमारे मां- बहनों की करुण चीख पुकारों पर, अभागे शिशुओं की बीभत्स मौत पर, हमारे तत्कालीन नेताओं की हठधर्मिता पर और तुष्टीकरण की राजनीतिक नपुंसकता पर.. हमारी स्वतंत्रता खड़ी हैं..!

विभाजन तो टल सकता था, यदि १९२३ के काकीनाडा अधिवेशन में पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी को वन्दे मातरम के गायन के विरोध को गांधीजी गंभीरता से लेते. १९२३ में कांग्रेस के काकीनाडा अधिवेशन का पहला दिन. अधिवेशन के शुरुआत में वंदे मातरम् गाया जाने वाला था. प्रख्यात गायक पं. विष्णु दिगंबर पलुस्कर खुद इस राष्ट्रगान को गाने वाले थे. मंच पर गांधीजी और कांग्रेस के अध्यक्ष, अली बंधुओं में से एक, महंमद अली जौहर, उपस्थित थे. जैसे ही पं. पलुस्कर ने वंदे मातरम् गाना प्रारंभ किया, तो गांधीजी की उपस्थिति में महंमद अली ने उन्हें रोकने का प्रयास किया. पर पलुस्कर जी कहां रुकने वाले… वे तो गाते ही चले.. यह देखकर गुस्से में महंमद अली ने मंच छोड़ दिया. हमारा दुर्भाग्य इतना की गांधीजी ने महंमद अली की भर्त्सना करना तो दूर, उनका साथ दिया..!

मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति का प्रारंभ हो चुका था.. जिसका सबसे बड़ा पड़ाव था, भारत विभाजन..!!

इन्ही अली बंधुओं ने गांधीजी को खिलाफत आन्दोलन के लिए तैयार किया था.. इन्ही अली बंधुओं ने भारत को दारुल हरब (संघर्ष की भूमि) बनाने का फतवा जारी करवाया था… यही अली बंधू बाद में देश का बंटवारा करने वाले मुस्लिम लीग में शामिल हुए. और जिन्हें महात्मा गांधी अपना भाई कहकर पुकारते थे, उन्ही महंमद अली जौहर ने गांधीजी के बारे में कहा, “पतित से पतित, गिरे से गिरा और व्यभिचारी से व्यभिचारी मुसलमान भी मुझे गाँधी से प्यारा हैं..!”

हमारे देश का दुर्भाग्य था.. की फिर भी हमारे तत्कालीन नेतृत्व की आँखे नहीं खुली.. मुस्लिम लीग को पुचकारना जारी रहा… अगले बीस / पच्चीस वर्ष तुष्टीकरण का यह सिलसिला चलता रहा… मुस्लिम लीग मांगे रखती गई, तत्कालीन कांग्रेस का नेतृत्व प्रारंभ में ना – नुकुर करने के बाद उन्हें मानता रहा.. हामी भरता रहा. मुस्लिम लीग झुकाती गई, कांग्रेस झुकती गई..! किसी जमाने में विश्व व्यापार में सिरमौर रहा, दुनिया का सबसे समृध्दशाली और वैभवशाली राष्ट्र इस विटंबना को, इस आपमान को सहता रहा..!

पूरे भारत वर्ष को एक रखने का आग्रह करने वाले, राष्ट्रवादी और स्वाभिमानी नेतृत्व को कांग्रेस ने बाजू में रखा, उनको अपमानित भी किया. सुभाषचंद्र बोस जैसा क्रांतिकारी और दूरदर्शी नेतृत्व कांग्रेस को रास नहीं आया. राजश्री पुरषोत्तम दास टंडन जैसे स्वाभिमानी व्यक्ति को कांग्रेस ने मुख्य धारा से अलग किया, महामना मदन मोहन मालवीय जैसे व्यक्ति की अहमियत नहीं रखी और जवाहरलाल नेहरु जैसे माउंटबेटन परिवार के प्रेम में आकंठ डूबे व्यक्ति के हाथों कांग्रेस की बागडोर आई..

और देश का भविष्य उसी समय लिखा गया..!!

(क्रमशः)