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विश्वव्यापी हिंदू संस्कृति/03

भारतीय पुराण साहित्य का अध्ययन करने से पता चलता है कि विश्वामित्र के पतित पुत्रों को जब देश से निकाला मिला तो वे ऑस्ट्रेलिया चले गए और उस देश को नए सिरे से बसाया। इस प्रकार तृणबिंदु राजकुमार के भी उस देश में जा बसने का विवरण मिलता है। ऋषि पुलस्त्य भी उस देश में धर्म स्थापना के लिए गए थे।

ऑस्ट्रेलिया की आदिम जातियां अभी तक जो भाषा बोलती हैं, उनमें भारतीय ‘कोल’, भील, संथाल एवं द्रविण क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाओं के शब्दों का बाहुल्य है। इन लोगों में भारत जैसी वर्ण व्यवस्था एवं जाति-पाति की ऊंच-नीच की मान्यता अभी भी प्रचलित है। शब्दभेदी बाण का एक प्रकार इन आदिवासियों का ‘बूमरांय’ अस्त्र है, जो निशाना भेद कर वापस लौट आता है। पुनर्जन्म के संबंध में इन लोगों की भारत जैसी ही ऐसी मान्यता है।

अमेरिका को भारतीय इतिहास पुराणों में पाताल लोक कहा गया है। और वहां नागराज के शासन की चर्चा की गई है। अभी भी उस देश में प्राप्त प्रतिमाओं और अवशेषों में नाग देवताओं की आकृतियां मिलती हैं। यह ‘नाग’ भारत की एक जाती थी। नागालैंड इन्हीं लोगों का क्षेत्र था। यह जाति आसाम से लेकर मध्य भारत तक फैली हुई थी। नागपुर आदि नगर आजकल जहां है, वहां नागवंशी लोग ही रहते थे। अभी भी ‘नाग’ गोत्र वालों की संख्या अन्य गोत्र वालों की जितनी ही है। यही लोग आगे बढ़कर अमेरिका पहुंचे थे।

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भारत की नाग पूजा प्रख्यात है। अनंत, वासुकी, वासुदेव के नाम से सर्प पूजा का देवाराधन में महत्वपूर्ण स्थान है। नागपंचमी तो नाग पूजा का विशेष पूजन पर्व है। संभवत: सर्प पूजक होने के कारण उन्हें भी नाग कहा जाने लगा है। उस वर्ग के अमेरिका पहुंचने के प्रमाणों की कमी नहीं है। रावण के भाई अहिरावण का पाताल लोक में निवास बाल्मीकि रामायण से सिद्ध है। दोनों भाइयों के समय-समय पर कई प्रकार के आदान-प्रदान होते रहते थे। अन्य असुर भी परिस्थिति बस पाताल लोक गए और बसे हैं। दुर्गा सप्तशती में एक श्लोक है-

दैत्यास्च देवा निह्ते सुम्भे देवीरपौ युधि:।
निसुम्भे च महाविर्यै शेषा: पातालमाययु:।।
आर्थत – देवी ने जब शुंभ- निशुंभ को मार डाला तो बचे -खुचे असुर भाग कर पाताल लोक चले गए। अमरकोश में पाताल लोक कई नाम गिनाए गए हैं –
अधौ, भुवन, पाताल, बलिसद्ध: रामादलम। नाग लोकोश्थ कुहरं सुषिरं, विवरं विलम्ं ।।

“पाताल, रसातल, बलीगृह ,नाग लोक, कुहुर, विवर आदि शब्द एक ही अमेरिका देश के बोधक हैं।”

दक्षिण अमेरिका के बोलीविया नगर के समीप खुदाई करके पुरातत्व विभाग ने जो अवशेष प्राप्त किए हैं। उनसे उस क्षेत्र पर सूर्यवंशी ‘इंका’ राजाओं के शासन का प्रमाण मिलता है। कुछ ऐसे भी आधार हैं, जो प्राचीन काल में इस देश पर राजा ‘बलि’ का राज्य होने की साक्षी देते हैं।

मेक्सिको (अमेरिका) मे आदि निवासियों की एक जाति ‘अपाच्य’ है । अपाच्यों के बारे में ऐतरेय ब्राह्मण के रूद्रमहा विषयक प्रकरण में वर्णन आता है ।

“तस्मा देत्तस्यां प्रतिचयां दिशी नचक्षते।”

वर्णन में पश्चिम दिशा के सुदूर देश में’ उपाच्यं ‘ एवं ‘नीच्य्ं’ लोगों के निवास की चर्चा है।

महाभारत में उद्दालक ऋषि के पाताल जाने का वर्णन है। महाभारत के पाताल नरेश अपनी सेना समेत लड़ने आए थे। अर्जुन की पत्नी ‘उलूपी’ अमेरिका से ही विवाह होकर भारत आई थी । सम्राट चंद्रगुप्त को यूनान के सेल्यूकस की बेटी विवाही थी। मेवाड़ के राजा ‘गोह’ की पत्नी ईरान के राजा नोशेरवा की पुत्री थी।

अमेरिका महाद्वीप में मानवीय सभ्यता चिर प्राचीन है। वहां भी उसी समय से मनुष्य बसते हैं जबसे कि अन्य देशों में बसे और बढे हैं। प्राचीन काल में रूस और अलास्का के बीच वाला समुद्र नहीं था। मध्य एशिया के वे लोग जिन्होंने भारत बसाया, दूसरे रास्ते अमेरिका पहुंचे थे और वहां आवाद हुए थे। कोलंबस के पहुंचने की समय उस देश में प्रायः दस लाख के लगभग आदिवासी (इंडियन) रहते थे।

आधुनिक अमेरिका का इतिहास थोड़े ही दिनों का है। यूरोप से भारत के लिए सीधा रास्ता तलाश करने के लिए निकला हुआ क्रिस्टोफर कोलंबस का जलयान 12 अक्टूबर 1492 को रास्ता भूल कर संयोगवश इस महाद्वीप के तट पर जा लगा, जिसे आजकल अमेरिका कहते हैं। कोलंबस ने सर्वप्रथम वहां स्पेन का झंडा गाढ़ा। पीछे से वहां की प्राकृतिक संपदा से लाभान्वित होने के लिए यूरोप के दूसरे देशों से भी लोग वहां पहुंचे और बसें। हालैंड, फ्रांस ,इटली ,इंग्लैंड पुर्तगाल आदि के लोगों ने वहां अपनी बस्तियां बसाई।

जब यूरोपियन लोग अमेरिका महाद्वीप मैं पहुंचे तब वह भूखंड सर्वथा जन शून्य था। वहां बहुसंख्यक आदिवासी रहते थे, जिनके चेहरे भी भारतीयों से मिलते -जुलते थे और चूंकि कोलंबस भारत की तलाश में निकला था, इसलिए उतरते ही उसने यह समझा कि वह भारत आ पहुंचा। अस्तु, वहां के निवासियों को उसने भारतीय (इंडियन) कहकर संबोधित किया। उनके शरीर अपेक्षाकृत अधिक लालिमा लिए हुए थे, इसलिए उस विशेषता के अनुरूप उन्हें (रैड इंडियन) कहा जाने लगा।

गोरों ने जब उन्हे उजाड़ना शुरू किया और उनके अधिकृत क्षेत्र को हाथीयाया तो उन्होंने संघर्ष भी किया किंतु पुराने हाथ से चलाए जाने वाले शस्त्रों और पुरानी युद्ध कला के बारूदी अस्त्रों और चतुर्य पूर्ण युद्ध कौशल के मुकाबले में सफलता नहीं मिली।

रेड इंडियनों का भारी विनाश हुआ। वे बहुत थोड़े रह गए। वंशनाश को बचाने के लिए पीछे गोरों को भी समझ आई और उन्हें सन 188 7 में कानूनी संरक्षण मिला। अब उनकी संख्या सारे अमेरिका में पांच लाख के करीब है। उनकी कुछ बस्तियां कैलिफ़ोर्निया, आरीजोना, न्यू मैक्सको आदि में बस गई हैं।

इन रेड इंडियनों के दो कबीले ‘होपी’ और ‘हूजा’ बनवासी होते हुए भी शाकाहारी हैं। भारतीयों की तरह वे अहिंसा पर विश्वास करते हैं। वनस्पति और अन्न पर गुजारा करते हैं। अपने को देवता की संतान मानते हैं। इनकी सरल और शांत प्रकृति देखते हुए उनकी धर्म प्रकृति में भारतीय आचार की अभी भी झांकी मिल सकती है।

कहा जाता है कि यूरोपियन के जाने के पूर्व अमेरिका वीरान पड़ा था। उन्होंने जाकर उसे बसाया और सुसंस्कृत बनाया, पर वस्तुतः बात ऐसी है नहीं। स्पेनिश सैनिकों और अधिकारी जब मैक्सको पहुंचे तो वहां भी उन्होंने ऐसे ही एंडीज सभ्यता के प्रमाण पाये।

पुरातत्व वेत्ताओ ने ग्वाटेमाला में ‘माया सभ्यता’ Maya culture के अवशेष पाए और ‘युक्जाक्टन’ नगरी में ऐसे अवशेष देखे जो वहां ईसा की प्रथम शताब्दी में एक समुन्नत सभ्यता का परिचय देते हैं। यह खोज बीन जारी रही उस देश में विखरे हुए अनेक अवशेष खोजे गए तो स्पष्ट हुआ कि वहां ईसा से 1000 वर्ष पूर्व भी सुयोग्य और साधन संपन्न हुआ कि मनुष्यों की बस्तियां मौजूद थी।

कोलंबिया, इक्वेडर ,पेरू, बोलविया, चिल्ली आदि में जो प्रमाण बिखरे पड़े हैं उनसे पता चलता है कि वह देश सर्वथा सदा से वीरान नहीं रहा है। किसी समय उस देश की स्थिति सुबह सुबिकसित देशों जैसी ही थी। वहां ‘माया’, कुज्का, एंड्रीज सभ्यताओं के समुन्नत लोग निवास करते थे।

शोध प्रयत्नों से स्पष्ट होता है कि ‘माया’ सभ्यता के लोगों को गणित का अच्छा ज्ञान था। उनका अपना पंचांग था। उसमें 365 दिन होते थे। नक्षत्र विद्या भी वे जानते थे और ग्रहण कब पड़ेगा उसकी पूर्ण जानकारी रखते थे। उनके भव्य मंदिर से ,जिनमें अखंड अग्नि की स्थापना रहती थी तथा पूजा होती थी। शुक्र ग्रह को अपनी सूर्य परिक्रमा पूरी करने में 52 वर्ष लगते हैं, इसी आधार पर अखंड अग्नि का नवीनीकरण भी 52 वर्ष उपरांत होता रहता था।

भारतीय पौराणिक उल्लेख और मेक्सिको में प्रचलित ‘फिजिक्स’ गाथाओं में आश्चर्यजनक साम्य था। दोनों की तुलना करने पर लगता है कि बिना तथ्य पूर्ण आधारों के दंत- कथाओं में इतना अधिक साम्य नहीं हो सकता है। महाभारत के अनुसार माया नगरी पातालपुरी में थी। ‘विष्णु पुराण’ में पाताल लोक का और भी अधिक विस्तार पूर्वक वर्णन है और वह अमेरिका की प्राचीन स्थिति पर वैसा ही प्रकाश डालता है जैसा कि उस तत्व के ज्ञाता पुरातत्व वेता बताते हैं।

मेक्सिको की दंत कथाओं में ही नहीं वहां के सरकारी इतिहास में भी ऐसा ही वर्णन है कि उनके पूर्वज पूर्व से आए थे। जेम्स चर्चमूर ने उन पूर्वजों को विशाल भूखंड के स्वामी, अत्यंत शक्तिशाली और जलयात्रा करने में निशनांत बताया है। वाल्मीकि रामायण में भी माया सभ्यता के अनुयाई भारतीयों की चर्चा लगभग इन्हीं शब्दों में की गई है। डॉक्टर मार्टिन का प्रतिपादन है कि पूर्व से सूर्यवंशी लोग पुरातन अमेरिका में आकर बसे थे।

मेक्सिको की पुराण कथा है कि इस देश में एक लंबी दाढ़ी, ऊंचे कद ,काले बाल और श्वेत वर्ण का महापुरुष किसी अज्ञात देश से आया उसने इस देश में कृषि, शिल्प तथा शिक्षा का प्रशिक्षण दिया। उसका नाम ‘क्वेट साल कटली’ था। उसकी कृपा से मैक्सको समुन्नत हुआ। ‘कांकेस्ट ऑफ मेक्सिको’ के लेखक पोस्कार का अनुमान है कि यह महापुरुष भारत से आया था। उसका भारतीय नाम ‘सालकण्टकट’ था।

लेख़क – डॉ. नितिन सहारिया (भारद्वाज)
संपर्क सूत्र – 8720857296