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विश्व के लिये चुनौती है अफगान में आतंकी सत्ता

अफगानिस्तान से अमेरिका के चले जाने का मतलब साफ है कि आतंक की समस्या का हल सेना के पास नहीं है। वर्तमान बिगड़े हालातों को देखते हुये अमरीका वहाँ कुछ ज्यादा कर सकने की स्थिति में था ही नहीं। अमरीका सहित कई देशों के दूतावास मजबूरन बन्द कर देना पड़े हैं। वैश्विक स्थित डाँवाडोल है।

अमरीका, तुर्की, पाकिस्तान व सऊदी अरब जैसे देश अपने अपने घरों के भीतर अपने सहयोगियों को भी नियंत्रित कर सकने की स्थिति में नहीं हैं। इराक की स्थिति अत्यन्त विस्फोटक बन चुकी है, जहाँ, ऐसे राजनेताओं की सक्रियता बढ़ चुकी है, जो ईरानी उग्रवादी अथवा आतंकी गुटों के सदस्य समझे जाते हैं। ब्रिटेन स्वयं तालिबान पर अंकुश लगाने के लिये चीन और रूस से अपने प्रभाव के उपयोग करने का पक्षधर है। इसमें भी अनेक आशंकायें हैं।

इस नये घटनाक्रम के पीछे एक नये खतरनाक दौर की आहट मिलने लगी है। तालिबान अफगान में अलकायदा का हस्तक्षेप नहीं चाहता। इसके बावजूद अलकायदा उन आतंकियों का सहयोगी बना हुआ है जो ओसामाबिन लादेन द्वारा दिलायी गयी शपथ के अनुसार अफगा निस्तान में अपनी सक्रियता दिखा रहे हैं। ऐसी अनेक कठिनाईयों को झेलते हुये अमेरिका ने और संयुक्तराष्ट्र के एक निरीक्षण समूह के समक्ष गतमर्ड में ही यह स्पष्ट हो चुका था कि तालिबानियों को अलकायदा के आतंकी सहयोगियों से अलग करना आसान काम नहीं है।

कैसी होगी अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार? दोहा में हाई लेवल बैठक में हो रहा तय - How will the Taliban government in Afghanistan be Talks going on in high level meeting

गत माह काबुल एअरपोर्ट पर बमबारी करने वाला समूह भी आई.एस.आई. से संबंधित था। इनसे भी यहाँ खतरा बना हुआ है। अब समस्या यह उत्पन्न हो चुकी है कि एक बार फिर अफगानिस्तान को आतंकी समूहों का केन्द्र बन जाने से कैसे रोका जा सकेगा? जबकि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर अपना आधिपत्य जमा लेने के पूर्व से ही वहाँ अनेक उग्रवादी गुटों की सक्रियता बनी हुयी है। बाकायदा वहाँ उनके ट्रेनिंग केम्प भी चल रहे हैं। ये केम्प वहाँ पिछले लम्बे समय से संचालित हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भी इस तथ्य का उल्लेख मिलता है कि अरब, मध्य-एशिया और चीन के शिजियांग प्रान्त के आन्दोलनकारी उईगर मुस्लिम गुटों के लगभग दस-बारह हजार विदेशी आतंकी यहाँ मौजूद हैं। इस्लामिक संवादों के चलते इस बात को सरलता से समझा जा सकता है कि सीरिया और दक्षिणपूर्व एशिया जैसे अत्यंत दूरस्थ स्थानों के इलाकों में सक्रिय आतंकी गुट अपना अधिकार और स्थान बना लेने के लिये अफगान की धरती पर जा पहुँचे हैं।

अमेरिका द्वारा आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने के लिये मिसाईल और ड्रोन का इस्तेमाल करने की बात कही जाती थी लेकिन सन् 2015 में उसे अलकायदा के एक बड़े आतंकी अड्डे को ध्वस्त करने में पसीना छूट गया था। उस समय 63 एयरस्ट्राईक और 200 सैन्य टुकड़ियों की जमीनी पहल की जरूरत पड़ी थी। इसी घटना से अनुमान लगाया जा सकता है कि अफगान स्थित आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करने के लिये विश्व की शांति चाहने वाली शक्तियों को कैसे-कैसे और कितनी मशक्कत करना पड़ेगी।

अब परिस्थितियाँ और भी कठिनाई भरी निर्मित हो चुकी हैं। क्या लीबिया, क्या सोमालिया, यमन, लेबनान और ईराक के बड़े भू-भाग तक अपना पैर पसार चुके आतंकी गुट ईरान स्थित तथाकथित कूटूस आतंकी ताकतों से सलाह-मशविरा के चलते उत्तरी आफ्रीका से लेकर दक्षिण आफ्रीका तक के क्षेत्रों में अस्थिरता के लक्षणों को देखा समझा जा सकता है। ये सब ताकतें अमेरिका विरोधी भी हैं।

वास्तव में पाकिस्तान की जबरिया दखलअंदाजी को अफगा निस्तान में एक दूसरे नजरिये से देखा जा रहा है। उसकी घुसपैठ चीनी इशारों का परिणाम है। पाकिस्तान के अपने हित तो है ही, लेकिन वह चीन के हितों को सुरक्षित रखने की मंशा पाले हुये हैं। यद्यपि वह पाकिस्तान स्वयं अपने देश के हालातों को काबू में रख पाने में सफल नहीं हो पा रहा है।

तालिबानों द्वारा ढ़िंढौरा पीटा जा रहा है कि पंजशीर घाटी पर उसने अपना कब्जा जमा लिया है। लेकिन यह तालिबानी दावा सच्चाई से बहुत दूर है। उसे बहुत ही मामूली सफलता अब तक प्राप्त हो सकी है। तालिबानी आतंकी इस इलाके में आगे बढ़े जरूर हैं।

पंजशीर क्षेत्र करीमखेल के मुहाने से लेकर अंजुमन पर्वतीय दर्रे तक फैला हुआ है। इस पर्वतीय क्षेत्र और पंजशीर नदी के पास से निकलकर सरीचा रोड पर पहुँचना आसान नहीं है। पंजशीर के अंतर्गत सात जिले हैं। इसमें से एक जिला जो मैदानी क्षेत्र में है, उस पर कब्जा कर लेने का तातिबानों द्वारा दावा किया जा रहा है। जबकि पंजशीर में पाक वायुसेना बमबारी कर रही-ऐसा सूत्रों का दावा है।

वामियान में भगवान बुद्ध की मूतियाँ तुड़वाने वाले आतंकी मुल्ला हसन आखुंद को प्रधानमंत्री बनाया जाना खतरनाक मंशा को व्यक्त करता है। उसका नाम संयुक्त राष्ट्र संघ की आतंकी सूची में दर्ज है। बताया जाता है कि जब मुल्ला उमर ने आतंकी संगठन का गठन किया था, तब भी आखुंद उसका करीबी था। वह पाकिस्तान के खैबर पख्तूूनवा प्रांत का है। साथ ही आई.एस.आई. के संरक्षण में चलाये जा रहे आतंकी संगठन के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी को अफगा निस्तान का गृहमंत्री बनाया गया है। यह भी एफ.बी.आई. का कुख्यात-इनामी  आतंकी है। इस पर 36.7 करोड़ रूपये का ईनाम है।

एक से एक कुख्यात आतंकियों को अफगान मंत्रिपरिषद में स्थान दिये जाने से स्पष्ट है कि यह आतंकियों की सरका है, जिसके कार्यकलाप किस ढंग से सम्पन्न होंगे-इसकी सहज ही कल्पना की सकती है। एक भी महिला को उसमें न शामिल करना यह दर्शाता है कि पहले की सरकार की भाँति महिलाओं के खिलाफ क्रूरता अब भी जारी रहेगी।

वैश्विक चिन्ता बढ़ा देने वाली तालिबान सरकार जिसमें विश्व के कुख्यात आतंकी शामिल हैं, जिस तरह के कट्टर फैसले ले रही है, सत्ता की भागीदारी में अफगानों और महिलाओं की उपेक्षा की है, बंदूकधारियों की आवाजाही बढ़ी है, इसके लिये उसके लिये अमेरिका का छोड़कर जाना और तालिबान को मदद देने वाले मुल्कों को गुनहागारी से मुक्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि इसकों लेकर मध्यएशिया में शान्ति को लेकर चिंता कुछ ज्यादा बढ़ गयी है।

भारत सहित लोकतंत्र और कानून व्यवस्था के समर्थक देशों की चिंता का बढ़ना गैरबाजिब नहीं माना जा सकता। एक तो भारत अफगानिस्तान के नवनिर्माण में अपनी अहं भूमिका का निर्वाह कर रहा था, वह व्यवस्था पटरी से उतर चुकी है। इसके अलावा चीन और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकियाँ क्या गुल खिलायेंगी, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने व्रिक्स में दिये अध्यक्षीय संबोधन में आतंकवाद पर अपनी चिंता से अवगत कराते दो टूक शब्दों में कह दिया है कि आतंकवाद का कोई भी रूप वैश्विक शांति, विकास व सुरक्षा के लिय खतरा है।

खतरा आंतरिक भी है। अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत आने के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों के हौसलों में बढ़ोत्तरी होना स्वाभाविक है। यह कि वे दुनिया की बड़ी ताकत को भी मात दे सकते हैं। ऐसी इस्लामिक कट्टरवादी ताकतों छुटपुट साजिशें को अंजाम दे सकती हैं। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

जो शक्तियाँ अफगान मामले में भारत को अलग-सलग रख रहीं थी, वे अब भारत की चैखट पर हैं। ब्रिटेन, अमेरिका की खुफिया एजेंसियों के एक सप्ताह के भीतर ही उनकी गतिविधियाँ भारत से जुड़ना क्या साधारण बात है? अब भारत फ्रंट लाईन स्टेट माना जा चुका है। चीन की अफगानिस्तान में दखलअंदाजी बढ़ेगी, पाकिस्तान लगभग उसके साथ है ही। चीन के ताकतवर होने से सभी देश आशंकित हैं। इस संदर्भ में भारत का साथ और सहयोग का आकाँक्षी होना स्वाभाविक है। यही कारण है भारत के द्वार पर दस्तक देना।

चीन और भारत का लक्ष्य तो एक ही है और वह है भारत को कमजोर करना। वहीं चीन अफगानिस्तान की खनिज सम्पदा पर आर्थिक लाभ हेतु नजर गड़ाये हुये हैं, वहीं पाकिस्तान का उद्देश्य तालिबानी मदद से कश्मीर में आतंक का विस्तार करना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में भारत की भूमिका उन देशों के बीच आपसी संबंध बनाने की कोशिश है, जो आतंक के खिलाफ अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये उत्सुक हैं।

खूखाँर आतंकी समूह जब किसी देश की सत्ता पर काबिज हो जाता है, तब उसके मनसूबों को समझना, आकलन करना या सहज ही भरोसा कर लेना खतरनाक साबित हो सकता है। लोकतंत्र की रक्षा और विश्व में अमन-शांति कायम रह सके-इसके सुदृश प्रयासों में कोई कोताही नहीं बरती जा सकती।

संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व के आतंकवाद विरोधी सशक्त देशों को धता बताते हुये अफगानिस्तान में खौफनाक मोस्ट वांटेड आतंकियों को शामिल करते हुये तालिबान की सरकार बना ली गयी है। यह शांति के दुश्मनों की विश्व को खुली चुनौती है।

13 वें ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुये भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ने की बात कही है। इस संगठन में ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण आफ्रीका का सक समूह शामिल है।

Afghanistan: Taliban & Panjshir's 'lion' ready for war - India TV Hindi News

पंजशीर घाटी में तालिबान के साथ मिलकर नरसंहार करने के आरोपों से घिरे पाकिस्तान को ईरान के पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदी नेजाद ने भी कड़ी चेतावनी दी है। अमेरिका की सुपर पावर इमेज को धक्का लगा है। उसके सामने अहं प्रश्न है कि वह सहयोगी राष्ट्रों के विश्वास को कैसे हासिल करें?

अफगानिस्तान का इतिहास रक्तरंजित है। कई बार शासक और ध्वज बदले हैं। अब तालिबानी सशक्तता सामने आ चुकी है। इसी को कहा जाता है कि इतिहास अपने को दोहराता है।  भारत की महत्वपूर्ण पहल पर रूस और अमरीका के अफगानी संकट के मद्देनजर, निकट आने की संभावना बढ़ चली है।

आगामी 16-17 सितम्बर को होने वाली शंघाई को आपरेशन आर्गनाईजेशन ए.सीओं की समिट आयोजित है। इसमें रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्वेकिस्तान, कजाकिस्तान व किर्गिस्तान सदस्य हैं। इसमें इमारान खाँ, ब्लादिमिर पुतीन और सेन्ट्रल एशिया देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी बर्चुअली भी समिट से जुडेंगे। इसमें भी आतंक को सवाल उठाया जा सकता है तथा पाकिस्तान पर भी निशाना पर लिया जा सकता है।

        लेख
डॉ. किशन कछवाहा