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विस्तारवादी चीन पर भारत की रणनीति

विस्तारवादी चीन पर भारत की रणनीति

1- 1962 के भारत और चीन युद्ध का इतिहास।
2- चीन पर भारत की वर्तमान रणनीति।
3-कोरोना एक अवसर काल।

1962 के भारत और चीन युद्ध का इतिहास– चीन की बात करे तो चीन पहले से ही दूसरे देशों पर अपनी सैन्य और रणनीतिक बढ़त बनाना चाहता हैं। चीन ने अनेक देशों के भूभाग पर अवैध कब्जा किया हैं, जिसमे से एक भारत भी हैं। भारत के साथ चीन का विवाद पूर्वी लद्धाख ,अरुणाचल प्रदेश, तो कभी सिक्किम को लेकर विवाद हुआ हैं।

हम बात करे तो भारत की आज़ादी के बाद से 1949 में चीन में कम्युनिस्ट शासन आते ही चीन ने तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान और इनर मंगोलिया पर कब्जा किया; हॉन्गकॉन्ग 1997 और मकाउ 1999 से कब्जे में देश, जमीन के अलावा समंदर पर भी चीन की दावेदारी, 35 लाख स्क्वायर किमी में फैले दक्षिणी चीन सागर पर हक जताता है।

यहां आर्टिफिशियल आइलैंड भी बना चुका चीन, चीन ने 1949 से भारत पर छोटे-छोटे युद्ध करने लगा था। उसके बाद 1962 में भारत का चीन से युद्ध हुआ जो भारत के लिए सही परिणाम लाने वाला नही था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री-पं जवाहरलाल नेहरु जो इस युद्ध को समझ नही पाए थे। उन्होंने स्वीकार किया था, कि वह उस युद्ध को सामान्य झगड़ा समझ रहे थे। उस समय युद्ध की हार के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति- श्री राधाकृष्णन जी ने सरकार पर आरोप लगाते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। इतिहास के पन्ने साक्षी है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को हमेशा से चीन की नीति पर शक था।

उन्होंने इसके लिए खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री-पं जवाहरलाल नेहरु से जिक्र किया किन्तु पं जवाहरलाल नेहरु ने उनकी बात को अनदेखा किया। हम परिणाम की बात करे तो दिनाँक 21 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा की साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की छवि पर बुरा असर हुआ।

इसके बाद चीन ने ऐलान किया कि वह कब्जा किए क्षेत्र को छोड़ रहा हैं। साथ ही युद्ध समाप्त होता हैं। इस युद्ध से भारत की राजनीति में असर हुआ कि भारतीय राजनीति में बहुत से अलगाव का छुपा हुआ चेहरा सामने आया।

हम बात करे तो लद्दाख का करीब 38 हजार स्क्वायर किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है।इसके अलावा 2 मार्च 1963 को चीन-पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके का 5 हजार 180 स्क्वायर किमी चीन को दे दिया था।

चीन पर भारत की वर्तमान रणनीति-बात करे तो आजादी के बाद से ही चीन भारत को धमकाता रहा हैं।एक समय था जब भारत 1962 युद्ध में अपनी गलत नीतियों के कारण युद्ध हार गया था। उसके बाद से ही सरकारों की गलत नीति का शिकार देश हुआ और अब तक गलत परिणाम देश मे देखने मिल रहे हैं।

हम वर्तमान पारिदृश्य की बात करे तो 2014 के बाद से ही मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने अपनी अंतर्राष्ट्रीय नीति में बदलाव किया जो विश्व पटल पर भारत को एक ताकतवर राष्ट्र के रूप में उभारता रहा हैं।

चाहे हम बात करे, सुपर पावर अमेरिका, रूस हो या फिर इज़राइल की बात करे तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के संबंध इन तीनों देशों से बहुत अच्छे हुए हैं। और भारत ने अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत किया हैं, और सीमा सुरक्षा को सुद्रण किया हैं।

हम वर्तमान की घटना की बात करे तो कोरोना के संकट काल मे भी चीन अपनी हरकतों से बाज नही आया और दिनाँक 15 जून 2020 को चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर गलवान घाटी पर हमला कर दिया जिसमे भारत के 20 जवान भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे गए, इस हमले में चीन के मारे गए सैनिकों की संख्या 50 से अधिक बतायी गयी।

जिसके बाद से ही पुनः भारत और चीन की सीमा के बीच तनावपूर्ण माहौल पैदा हो गया, उसके बाद लगातार भारत की नई नीति और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की कूटनीति भारत के लिए सकारात्मक साबित हुई,

बात करे तो UN परिषद में भारत का आस्थयी सदस्य पद के लिए 184 वोटों के साथ पुनः चुना जाना, प्रधानमंत्री जी की वोकल फ़ॉर लोकल नीति या हम बात करे तो भारत सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत के कदम के क्षेत्र में चीन के 59 चाइनीस ऐप को बैन करना जो चीन के लिए एक कड़ा संदेश था।

इसके बाद अमेरिका, रूस और इजरायल जैसे देशों का भारत को खुल कर समर्थन करना कही-न-कही भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति और रणनीति के मजबूत पक्ष को दर्शा रहा हैं।

कोरोना एक अवसर काल– हम बात करे तो जहाँ चीन द्वारा की गयी गतिविधियों को कही-न-कही बभारत जड़ से समाप्त कर सकता हैं।भारत के माननीय प्रधानमंत्री- नरेंद्र मोदी जी के द्वारा आत्मनिर्भर भारत की बात कही गयी जो भारतीयों को कोरोना काल को एक अवसरकाल मे बदलने की ओर आह्वान कर रही हैं।

क्योंकि ये ऐसा समय हैं जब पूरा देश कदम-से-कदम मिला कर चल रहा हैं। एवं हम बात करे आत्मनिर्भरता की तो कोरोना काल में भारत ने अनेक कार्यक्षेत्रों में अपना कीर्तिमान स्थापित किया हैं।चाहे फिर बात पीपीई किट की हो या स्वास्थ्य व्यवस्था की हो।

हमनें देखा हैं कोरोना के समय भारत में प्रत्येक वर्ग के द्वारा अपनी संस्कृति को सवारने में एक अलग ही योगदान रहा हैं। और भारत अपनी संस्कृति और पारंपरिक वस्तुओं की बात हो या फिर आयुर्वेद की बात करे तो कही-न-कही आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाते हुए, कोरोना काल को अवसरकाल में परिवर्तित करने में सकारात्मक कदम उठाए हैं।