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वैश्विक आतंकवादः 25000 लोगों को जान गंवानी पड़ी – डाॅ. किशन कछवाहा

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरूमूर्ति ने 76 साल पुराने इस संगठन को पूर्वाग्रहों ग्रस्त बताया। उन्होंने वैश्विक आतंकवाद जिसके कारण हर साल 25000 लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़ रहे हैं, के खिलाफ लड़ाई को नजरअंदाज करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने आतंक की परिभाषा को सुविधानुसार बदलने की प्रवृत्ति की भी आलोचना की और उस ओर ध्यान आकर्षित कराया।
भारतीय विदेश मंत्री एक जयशंकर के वक्तव्य का स्मरण कराते हुये तिरूमूर्ति ने कहा कि आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी है और कोई आतंक अच्छा या बुरा नही। आतंक की घटनाओं पर लगाम लगाना ही आतंकवाद के खिलाफ चुनौती का समाधान है।
सन् 1893 में स्वामी विवेकानन्द ने विश्व धर्म संसद में अपने प्रख्यात उद्बोधन में ही साफ-साफ कह दिया था कि यह धारणा अब्राहमिक और गैर- अब्राहिमक मतपंथ दो अलग-अलग आदर्शों का पालन करते हैं, पर उन पर सामान्य लेबल-पंथ लग गया है, पंथ के लेबल को छोड़कर उनके बीच ज्यादा समानतायें नहीं। यह धारणा कि दोनों पंथ समान हैं सच नहीं।

फंडा मेंटलिज्म ऑब्जब्र्ड में निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है कि मजहबी पुस्तक में चिह्नित ‘यहूतियों, ईसाईयों, और मुसलमानों’ पर ज्यादा मजबूत प्रभाव डालता है, मिशनरी प्रयासों को तेज करना हो या चरम पंथ को सही ठहराना हो दोनों परिस्थितियों को ईसाई और इस्लामी मजहबी पुस्तकें प्रभावित करती है। लेकिन तीनों अब्राहमिक मत (यहूदी ईसाई और इस्लाम) इसे स्वीकार नहीं करते। अब्राहमिक मतों का एकेश्वरवाद अन्य सभी मत ग्रंथों को असत्य मानता है। उनकी यही मान्यतमा कट्टर, आक्रामक और असहिष्णु रूख व्याख्या करती है।
अपार सहिष्णुता एक दिन सहिष्णुता के अस्तित्व को ही समाप्त कर देती है। यदि समाज की रक्षा नहीं कर पाये, तो सहिष्णु मिट जायेंगे। विज्ञान के एक अत्यन्त प्रभावशाली दार्शनिक कार्लपाॅपर ने (ओपन सोसाईटी एंड इट्स एनीमीज 1945) में लिखा है कि असहिष्णु समुदाय (ईसाई-इस्लाम समर्थक) ‘अपने उन्हें बल और पिस्तौल से तर्कों का जबाव देना सिखायेंगे।’ क्या विश्व में छाया आतंक उसी विचारधारा के साथ सक्रिय नहीं है? पाॅपर ने तो वर्तमान समय की ही भविष्यवाणी कर दी थी।
सहिष्णु हिन्दुओं पर ही असहिष्णु होने का आरोप मढ़ दिया जाता है। इस तरह भारतीय पंथों को तीन तरफा आघात झेलना पड़ता है। वे असहिष्णु समूहों द्वारा सताये जाते हैं, उदारवादी उन्हें ही असहिष्णु ठहराते हैं और असहिष्णु को सहिष्णु का प्रमाणा पत्र थमा देते हैं। यह प्रवृत्ति विकृत मानसिकता की परिचायक हैं।
अगर एक अब्राहमिक मत-इस्लाम या ईसाई हिन्दू धर्म या किसी भारतीय पंथ को असहिष्णु के रूप में प्रचारित करते हैं तो साफ हैं कि इसका सीधा असर भारत की छवि पर पड़ेगा।
महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द-स्वराज’ में कहा है कि ‘हिन्दू धर्म भारत को एक जुट करता है।’ महर्षि अरविन्द ओर डाॅ. एनीबेसेन्ट ने कि भारत तब तक जीवित रहेगा, जब तक हिन्दूधर्म जीवित रहेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि हिन्दू धर्म भारत की परम्परा, संस्कृति और जीवन शैली है। स्पष्ट है कि भारत की छवि और हिन्दू धर्म की छवि अविभाज्य है। हिन्दू धर्म केवल सैद्धान्तिक रूप से सहिष्णु नहीं, बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी अन्य मतों को उदार हृदय से स्वीकार करता है, वह कट्टरवाद का बिल्कुल पोषण नहीं करता। इसके विपरीत इस्लाम के असहिष्णु के अनुयायी क्या करते हैं?
25 जनवरी 2022 को गुजरात के धुंधका में किशन करवाड़ की हत्या शबीर और इम्तियाज ने कर दी। इस मामले में छैः लोग गिरफ्तार हुये। जाँच में एटीएस को पाकिस्तान के इस्लामिक संगठन दावत-ए- इस्लामी के लिये चंदा मांगने वाली 2,000 से अधिक दान पेटियाँ अमदाबाद में मिली है। यह संगठन आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देता है। दान राशि पाकिस्तान भेजी जाती है। वहाँ से यह संस्था मुसलमानों को इस्लामी शिक्षा देने की आड़ में दुबई के रास्ते भारत भेज देती है। इस राशि का उपयोग मुसलमानों का ब्रेनवाश करने के लिये होता है। हत्याकांड का आरोपी मौलाना उस्मानी ही दावत-ए-इस्लामी का केन्द्र संचालित करता है।
संयुक्त राष्ट्र का यह मंच अब्राहमिक यानी इस्लाम, ईसाई यहूदी पर होने वाले अत्याचारों की बात तो करता है, लेकिन हिन्दू, सिख, बौद्ध जैसे मत पंथों के विरूद्ध होने वाली हिंसा पर कभी चर्चा नहीं करता। तिरूमूर्ति ने दुनिया का ध्यान भारतीय पंथों की स्पष्ट लेकिन अव्यक्त चिन्ता की ओर आकर्षित किया है।
संयुक्त राष्ट्र में हिन्दू समाज के प्रति पूर्वाग्रह उजागर किये जाने पर झूठी बातों के आधार पर बरगलाने मटकाने की चेष्टायें प्रारम्भ हो गयी हैं। यू.एन. में भारत द्वारा कही गयी बातों सं अमेरिका में रहने वाले पाकिस्तान-परस्त लोग तिलमिला गये हैं।
केरल, कश्मीर और बंगाल में हिन्दूओं का बुरा हाल – जम्मू कश्मीर के हिन्दू शरणार्थी अभी भी शिविरों मं रह रहे हैं। ‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र’ के अनुसार जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा लगभग 1,000 हिन्दू मारे गये हैं। वे वहीं के नागरिक थे। केरल में माकपा, पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और मुस्लिम लीग के कट्टरवादी तत्व आये दिन हिन्दुओं की हत्या करते हैं। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में सन् 2019 से लेकर अब तक बंगाल में 56 हिन्दुओं की हत्या की गई है। इससे पहले सन् 2017 से 2019 तक पश्चिम बंगाल में 148 कार्यकर्ता मारे गये थे। इनमें संघ भाजपा, विहिप, बजरंग दल जैसे संगठनों के कार्यकर्ता शामिल थे।
पड़ोसी देशों में भी हिन्दू सुरक्षित नहीं – इस समय पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और यहाँ तक कि श्रीलंका में अल्प संख्यकों, जिसमें हिन्दू भी शामिल हैं, की स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है। इन देशों का बहुसंख्यक समाज मानता है कि इन्हें रहने का कोई अधिकार नहीं है।
उत्पीड़न और कन्वर्जन के कारण यहाँ लगभग 1.75 प्रतिशत हिन्दू हो शेष रह गये हैं। हिन्दुओं का ऐसा ही हाल मलेशिया और बाँग्लादेश में भी है। भारतीयों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि भूटान, म्याँमार और श्रीलंका जैसे बौद्ध बहुल देशों में भी हिन्दुओं की स्थिति ठीक नहीं है।
हिन्दुओं के उत्पीड़न की बढ़ती घटनायें – यदि किसी ने सोशल मीडिया पर इस्लाम की आलोचना कर दी तो उसे जान से मार दिया जाता है। एक रपट के अनुसार सन् 2014 के बाद देश में भीड़ द्वारा लोगों की हत्या करने की 165 घटनायें हुईं हैं। इनमें मरने वाले अधिकतर हिन्दू हैं। केवल दिल्ली में मार्च 2016 से लेकर जनवरी 2022 तक 12 हिन्दुओं को पीट-पीट कर मारा गया है।
दूसरी और अपनी कौम की शरारत को ढंकने के लिये हामिद अंसारी, मुनब्बर राणा जैसे लोग हिन्द समाज क उत्पीड़न पर पर्दा डालने का प्रयास करते हैं।
बोलते आंकड़े – देश का कोयला उत्पादन जनवरी 2020 की तुलना में इस साल जनवरी में 75 मिलियन टन से बढ़कर 79.60 मिलियन टन हो गया। यानी कोयला उत्पादन में 6.13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कोयला मंत्रालय के अनंतिम आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष जनवरी के दौरान कुल उत्पादन में से कोल इंडिया लि. ने 2.35 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 64.50 एमटी व एससीसीएल ने5.42 प्रतिशत वृद्धि के साथ 6.03 एमटी कोयले का उत्पादन किया।

 लेखक:- डाॅ. किशन कछवाहा