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वैश्विक स्तर पर चीन, तिब्बत, मंगोलिया में सिद्धी विनायक…

वैश्विक गणेश / 5

चीन में ‘भगवान विनायक’…

चीन और भारत के संबंध बहुत प्राचीन हैं. कितने प्राचीन हैं…? कुछ ठोस कहना कठीन हैं. पहली शताब्दी के प्रमाण मिले हैं, चीन में हिन्दू मंदिरों के. किन्तु हिन्दू धर्म का प्रादुर्भाव चीन में उससे भी और अधिक पहले से रहा होगा।

आज भी चीन में अनेक हिन्दू मंदिर हैं. और जहां हिन्दू मंदिर हैं, वहां भगवान गणेश का होना अवश्यंभावी हैं. चीन के हिन्दू मंदिरों में भगवान गणेश की अनेक प्राचीन मूर्तियां हैं. यहां गणेश जी को बुध्दी तथा समृध्दी की देवता माना गया हैं।

 

चीन के फुजीयान प्रांत मे, क्वांझाऊ नाम के शहर मे, लगभग बीस हिन्दू मंदिर हैं. ये सारे डेढ़ हजार वर्ष पुराने हैं. कहा जाता हैं, उन दिनों चीन का भारत के तामिल भाषिक क्षेत्र से बड़ा व्यापार चलता था. तामिलनाडु से अनेक वस्तुएं चीन को जाती थी और चीन से शक्कर वगैरे पदार्थ आयात होते थे।

स्वाभाविकतः इस क्वांझाऊ शहर में बड़ी संख्या में तामिल व्यापारी रहते थे. उन्होने ही यह मंदिर बनवाएं, जिन्हे बाद में स्थानिक चीनी लोग भी पूजने लगे. सन ६८५ के आसपास, तेंग राजवंश के काल में यह मंदिर बने हैं।

इन मंदिरों पर मेंदारिन (चीनी), संस्कृत और तामिल भाषा के शिलालेख मिले हैं. इन सभी मंदिरों में भगवान गणेश विराजमान हैं. चीन के गंसू प्रांत में तुन-हुआंग (या दून-हुआंग) शहर में स्थित बौध्द मंदिर में भगवान गणेश, कार्तिकेय के साथ हैं…

उत्तर चीन में उत्खनन में जो गणेश प्रतिमा मिली हैं, वह कार्बन डेटिंग के अनुसार सन ५३१ की हैं. ‘ग्वांडडोंग’ यह दक्षिणी चीन का बंदरगाह हैं, तो क्वांझाऊ या चिंचू, यह भी बंदरगाह का शहर हैं. तामिल व्यापारी समुद्री मार्ग से, इन्ही बंदरगाहों के रास्ते से, चीन में आते थे।

स्वाभाविकतः, इन बंदरगाहों के पास, आज भी अनेक हिन्दू मंदिरों के अवशेष मिलते हैं. इन शहरों के पुरातत्व संग्रहालयों में भगवान शिव, गणेश, दुर्गा देवी आदि की प्राचीन प्रतिमाएं मिलती हैं.आसाम के कामरूप से, ब्रह्मदेश होते हुए भी, भारतीय व्यापारी चीन जाते थे, तो कश्मीर के सुंग-लिंग से जाने वाला भी एक रास्ता था, चीन से संपर्क का…

दूसरी शताब्दी से बारहवी शताब्दी तक, डेढ़ सौ से ज्यादा चीनी विद्वानों ने, भारत के संस्कृत ग्रन्थों को चीनी भाषा में अनुवाद करने को ही अपना जीवन ध्येय समझा था. वेदों को चीनी भाषा में ‘मींग – लून (ज्ञान और बुध्दी का विज्ञान) कहा गया हैं।

अनेक ‘संहिता’ और शास्त्रों का अनुवाद चीनी भाषा में उपलब्ध हैं. इनमे कुछ ग्रंथ तो ऐसे हैं, जो भारत में मुस्लिम आक्रांताओं ने नष्ट किए थे, किन्तु उनका चीनी अनुवाद उपलब्ध हैं. उदाहरण के लिए, ‘सांख्यकारिका’. यह ग्रंथ मूल संस्कृत में कही भी उपलब्ध नहीं था।

किन्तु उसका चीनी अनुवाद – ‘जिन की शी लून’ (Jin Qi Shi Lun) उपलब्ध हैं. अब इस चीनी ग्रंथ का पुनः संस्कृत में अनुवाद किया गया हैं. ऐसे और भी ग्रंथ हैं।

आज भी चीन में, चीनी भाषा बोलने वाले, किन्तु हिन्दू जीवन पध्दती, परंपरा मानने वाले लोग रहते हैं. ये तुलना में कम संख्या में हैं. इसलिए, चीन के पांच प्रमुख उपासना पंथों में उनका समावेश नहीं हैं. किन्तु यह समुदाय आज भी भारतीय त्यौहार उत्साह से मनाता हैं. यहां ‘गणेश उत्सव’, चीनी पध्दति से मनाया जाता हैं।

तिब्बत

कभी सार्वभौम राष्ट्र रहा तिब्बत, आज चीन का एक प्रदेश मात्र हैं. पहले तिब्बत यह चीन का हिस्सा नहीं था. तिब्बत पहले से ही हिन्दू और बौध्द परंपराओं का देश रहा हैं. इसलिए, तिब्बत में अनेक स्थानों पर गणेश मंदिर, गणेश भगवान के चित्र और उनकी प्रतिमाएं हैं।

बौध्द परंपरा के महायान और वज्रायान पंथों में, गणेश जी का विशिष्ट स्थान हैं. वह मात्र विघ्नहर्ता ही नहीं, तो बुध्दी के देवता भी हैं. तिब्बती भाषा में उन्हे गणपति या ‘महा-रक्त’ भी कहा जाता हैं. तिब्बत में ही विनायक गणेश प्रसिध्द हैं. यह आर्य महा गणपति परंपरा के गणेश हैं।

‘तिब्बत’ इस विषय के अभ्यासक, रॉबर्ट ब्राउन (Robert L. BROWN) ने एक पुस्तक लिखी हैं – ‘Ganesh, studies of an Asian God’. इसमे वे लिखते हैं की तिब्बत की काग्युर परंपरा में ऐसा कहा जाता हैं की महात्मा बुध्द ने अपने प्रिय शिष्य आनंद को ‘गणपति हृदय मंत्र’ (या ‘आर्य गणपति मंत्र’) की दीक्षा दी थी. इसीलिए इन देशों मे, बौध्द मंदिरों या स्तूपों के बाहर भगवान गणेश की मूर्ति रहती हैं।

(तिब्बती भाषा में ‘विनायक स्तुति’, रोमन लिपि में) –
oṃ namo ‘stu te mahāgaṇapataye svāhā |
oṃ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ |
oṃ namo gaṇapataye svāhā |
oṃ gaṇādhipataye svāhā |
oṃ gaṇeśvarāya svāhā |
oṃ gaṇapatipūjitāya svāhā |
oṃ kaṭa kaṭa maṭa maṭa dara dara vidara vidara hana hana gṛhṇa gṛhṇa dhāva dhāva bhañja bhañja jambha jambha tambha tambha stambha stambha moha moha deha deha dadāpaya dadāpaya dhanasiddhi me prayaccha |

मंगोलिया

मात्र ३२ लाख जनसंख्या वाले, चीन के इस पड़ोसी देश में ‘गणेश भगवान’ की प्रभावी उपस्थिती हैं. दुर्भाग्य से मंगोलिया को हम जानते हैं, छिगीज खान (जिन्हे हम ‘चंगीज खान’ कहते हैं) के नाम से. किन्तु मंगोलिया, जो किसी जमाने में पूर्णतः हिन्दू संस्कृति मे रचा बसा देश था।

आज भी हिन्दू संस्कृति के प्रतीक गर्व से धारण करता हैं. उनके राष्ट्रध्वज को वे सोयंबू (स्वयंभू) कहते हैं. वहां अनेक मंगोल, अपना नाम संस्कृत शब्द से रखते हैं. मंगोलिया के पूर्व राष्ट्राध्यक्षों के नाम हैं – आनंदिन अमर (१९३२ से १९३६) और जम्सरांगिन शंभू (१९५४ से १९७२). मासों के नाम तथा सप्ताह के दिनों के नाम भी भारत से ही हैं।

जैसे रविवार को आदिया (आदित्यवार), सोमवार सोमिया, मंगल के लिये संस्कृत का अंगारक शब्द है. बुद्धवार – बुद्ध, बृहस्पतिवार – व्रिहस्पत, शुक्रवार – सूकर, शनिवार के लिये सांचिर बोलते हैं। ऐसे मंगोलिया में भगवान गणेश का पूजा जाना स्वाभाविक हैं. यहां अनेक बौध्द मंदिरों में गणेश जी की प्रतिमाएं हैं।

हमारे पूर्वज, अपने विश्व व्यापी प्रवास के दौरान अपने आराध्य देवताओं को भी साथ लेकर जाते थे. स्थानिक लोगों में भारतियोंकी अच्छी स्विकार्यता थी. तो सहज रूप से हमारे आराध्य भी वहां पूजे जाते थे. विशेषतः गणेश जी यह विघ्नहर्ता भगवान माने जाते हैं. इसलिए विश्व के कोने कोने में हमारे गणपति का स्वीकार हुआ।