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शिक्षा प्रणाली में भ्रांतियों का पर्दाफाश

हमारे देश में शिक्षा व्यवस्था तथा पाठशालाएं अंग्रेजों ने प्रारंभ की ऐसा कहा जाता है. अंग्रेज़ आने के पहले देश में शिक्षा के मामले में अंधकार ही था, ऐसा भी बताया जाता है. हां, हमारे तक्षशिला, नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे होंगे, उस जमाने में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ. किन्तु, लगभग नौ सौ वर्ष पहले, जब मुस्लिम आक्रांताओं का आक्रमण होता गया, तब परिस्थिति बदली. बख्तियार खिलजी जैसे अनपढ़, लड़ाकू सरदार ने नालंदा समवेत अधिकतर विश्वविद्यालय नष्ट कर दिये. हमारी ज्ञान परंपरा खंडित हो गई. तो हमने समझा, हमारी सारी शिक्षा व्यवस्था ठप्प हो गई.

किन्तु ऐसा नही था, मुस्लिम आक्रांताओं ने हमारे बड़े, छोटे विश्वविद्यालय ध्वस्त किए. अनेक गुरुकुल जला दिये. लेकिन उनके पास कोई शिक्षा का समानांतर मॉडल थोड़े ही था. उन के पास तो शिक्षा का ही मॉडल नही था.

वे तो, खैबर के दर्रे के उत्तर – पश्चिम में स्थित, अनेक कबाइलियों में से थे. ये कबाइले अनपढ़, गंवार, खूंखार, लेकिन अपने धर्म के प्रति अत्यधिक कट्टर थे. कट्टरता के इसी जुनून ने उन्हे भारत में सत्ता दिलाई. लेकिन इस विशाल देश में प्रशासन चलाने का कोई विशेष ज्ञान या कोई व्यवस्था उनके पास नही थी.

आज जिसे हम मुगल आर्ट और मुगल स्थापत्य कहते हैं, वह मूलतः भारतीय स्थापत्य ही हैं, जो इस्लामी राजाओं के लिए, या इस्लामी व्यवस्था के लिए बनाया गया हैं. यदि यह वास्तुकला इन आक्रांताओं के पास होती, तो इस शैली के अनेक वास्तु हमे भारत के बाहर, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, किरगिस्तान, उझबेकिस्तान आदि में मिलते. किन्तु ऐसा नही हैं. इसलिए बड़े विश्वविद्यालय न सही, किन्तु प्राथमिक / माध्यमिक स्तर की शालाओं का जाल, सारे देश में था. यदि हिन्दू राजा, मांडलीक के रूप में थे, तो भी उन्होने शालाएं बनवाई और चलवाई.

अंग्रेज़ जब भारत में हुकूमत करने की स्थिति में आएं, तो उन्होने सबसे पहले, भारत की शिक्षा प्रणाली का सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षण की रिपोर्ट इंग्लंड, स्कॉटलैंड और कुछ अंशों में भारत में भी उपलब्ध हैं. ये सारी रिपोर्ट सनसनीखेज हैं. हमारी सारी मान्यताओं को और हमे आज तक पढ़ाए गए इतिहास को झुठलाने वाली ये सारी रिपोर्ट्स हैं. 

जी. डब्लू. लेटनर नाम के ब्रिटिश आई सी एस अधिकारी ने शिक्षा व्यवस्था संबंधी सर्वेक्षण का काम किया था. उनमे से कुछ सर्वेक्षणों के रिपोर्ट के आधार पर उसने पुस्तक भी लिखी – History of Indigenous Education in Punjab : Since Annexation and in 1882. इसमे लेटनर बड़ी जबरदस्त बातें लिखता हैं. वो कहता हैं, ‘भारत में बड़ी अच्छी विकेंद्रित शिक्षा व्यवस्था हैं. लगभग प्रत्येक गांव की अपनी पाठशालाएं हैं, जो गांव वाले चलाते हैं. इन पाठशालाओं को जमीन आंबटित हैं, जिसकी आमदनी से पाठशाला का खर्चा निकलता है.’

सन १७५७ में प्लासी का युध्द जीतने के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी का बंगाल पर कब्जा हो गया. जब उन्होने अपना प्रशासन तंत्र अंमल में लाने का प्रयास किया, तो उन्हे पता चला की पूरे बंगाल में, कर वसूली लायक भूभाग में से, ३४ प्रतिशत जमीन से कोई कर वसूली नही होती हैं. इस का कारण हैं, की ये सारी जमीन पाठशालाओं के लिए हैं.

लेटनर आगे लिखता हैं, ‘इन में से अनेक स्कूलों का स्तर तो हमारे ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज विश्वविद्यालय के बराबर का हैं. शिक्षकों को अच्छा वेतन दिया जाता है।

यह जी डब्लू लेटनर (G. W. Leitner) बड़े जबरदस्त व्यक्तित्व का धनी था. Dr. Gottlieb Wilhelm Leitner का जन्म १४ अक्तूबर १८४० में हंगेरी की राजधानी बुडापेस्ट में हुआ था. लेटनर का परिवार यहूदी (ज्यू) था. उसे भाषाओं पर विलक्षण प्रभुत्व हासिल था. जब वो आठ वर्ष का था, तब कोन्स्टेंटिनोपोल (आज का ‘इस्तांबुल’) गया और वहां से अरबी तथा तुर्की भाषा सीख कर आया. दस वर्ष की आयु में वह इन दो भाषाओं के साथ, अधिकतर यूरोपियन भाषाएं सहजता से बोल लेता था. पंद्रह वर्ष की आयु में वह क्रिमिया में ब्रिटिश कमिशनरेट में अनुवादक की नौकरी करने लगा. 

इस यहूदी नौजवान ने बाद में मुस्लिम धर्म अपना लिया, और वह अरेबिक का व्याख्याता बन कर विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगा. लंदन के किंग्स कॉलेज में पढ़ाते समय, उसे ब्रिटिश सरकार ने भारत में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया. १८६४ में लेटनर, लाहौर की Government University का प्रमुख बनकर, आई सी एस अधिकारी के रूप मे, भारत आया. १८८२ में उसी ने पंजाब यूनिवर्सिटी की स्थापना की. भारत में इस मुकाम में, उसने भारतीय प्रणालियों का गहन अध्ययन किया.

लेटनर ने १८७०-१८७५ के बीच मे, उत्तर पंजाब के होशियारपुर जिले का बृहद आर्वेक्षण किया, जो पुस्तक के रूप में उपलब्ध हैं. लेटनर ने लिखा हैं, ‘इस होशियारपुर जिले में साक्षरता की दर ८४% हैं.‘  (अंग्रेजों के, भारत से जाते समय, सन १९४८ में किए गए सर्वेक्षण में यह दर मात्र ९% बची थी. इस दरम्यान अंग्रेजों ने, गांव के पाठशालाओं को आंबटित जमीन हड़प ली. विकेंद्रित शिक्षा व्यवस्था बंद की. उसे केंद्रीकृत किया, और अंग्रेजों के अनुसार पाठ्यक्रम निर्धारित होने लगा.)

विलियम एडम यह और एक नाम हैं, शिक्षा प्रणाली संबंधी अध्ययन करने वाले व्यक्ति का. १७९६ में स्कॉटलैंड में जन्मे विलियम, बाप्टिस्ट मिशनरी के रूप में सन १८१८ में भारत आए. तब मराठों को हराने के बाद, अंग्रेजों ने लगभग पूरे देश पर अपनी हुकूमत कायम कर ली थी. विलियम २७ वर्ष भारत में रहे. यहां वे राजा राम मोहन रॉय के संपर्क में भी रहे.

लॉर्ड विलियम बेंटिक उन दिनो भारत के गवर्नर जनरल हुआ करते थे. अंग्रेजी सत्ता की राजधानी कलकत्ता थी. बेंटिक ने, विलियम एडम्स को शिक्षा विभाग में अधिकारी पद पर नियुक्त किया तथा उन्हे बंगाल और बिहार की पाठशालाओं के बारे में रिपोर्ट देने को कहा. 

विलियम एडम्स ने सन १८३५ से १८३८ तक, तीन रिपोर्ट प्रस्तुत किए, जो ‘एडम्स रिपोर्ट्स’ के नाम से प्रसिध्द हैं. अपने पहले रिपोर्ट में एडम लिखता हैं, ‘बंगाल _(उस समय का पूरा बंगाल, अर्थात आज का बंगला देश मिलाकर)_ और बिहार में एक लाख के लगभग स्कूल्स हैं. इन दोनों प्रान्तों की जनसंख्या चार करोड़ के बराबर हैं. अर्थात प्रति ४०० व्यक्तियों पर एक शाला हैं.‘ 

विलियम एडम ने जिसे शालाएँ कहा हैं, वे सारी बड़ी बड़ी शालाएँ नही हैं. उन में से अधिकतर शालाएँ, मंदिरों मे, खुले आहाते मे, बरगद के पेड़ के नीचे या पढ़ने वाले मास्टर जी के घर पर लगती हैं. सभी प्रकार की मूलभूत प्राथमिक शिक्षा यहां दी जाती हैं. 

एंड्रयू बेल नामक शिक्षाविद ने सन १८०२ के आसपास, भारतीय शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन कर के इंग्लंड की शालाओं में एक प्रणाली विकसित की, जो आज भी ‘मोनिटोरियल सिस्टम’ या ‘मद्रास सिस्टम’ के नाम से जानी जाती हैं. मद्रास सिस्टम इसलिए, क्यूँ की एंड्रयू बेल और जोसफ लंकास्टर ने मद्रास इलाके के एगमोर में शालाओं का अध्ययन कर के, यह प्रणाली विकसित की. 

एक और शिक्षाविद अलेक्जेंडर वॉकर ने इस भारतीय प्रणाली के बारे में लिख रखा है– ‘The children were instructed without violence and by a process, peculiarly simple. The system was borrowed from the Bramans and brought from India to Europe. It has been made the foundation of National Schools in every enlightened country. The pupils were the monitors of each other and the characters (अक्षर/आंकड़े)_ are traced with finger on the sand.’ (page no 263 of his book) 

अर्थात भारत में स्वतंत्र विकसित, प्राथमिक शिक्षा की प्रणाली, इंग्लंड ने अपनाई, और हमारी विकेंद्रित शिक्षा पध्दति को नष्ट कर के हम पर अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली थोप दी…!

क्या अब भी हम यही कहेंगे की भारत में विकसित शिक्षा प्रणाली अंग्रेज़ लाये थे…?

(यह लेखक के अपने विचार हैं)